————– 1950 से आई सखियां सोमवार मेले में रौनक
सन 1881 में महाराणा सज्जनसिंह ने सज्जन निवास बाग का निर्माण कराया। इसे ही गुलाबबाग कहा जाने लगा। इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू के अनुसार, 1885 के आसपास यहां लोगों का आना जाना शुरू हुआ। पहले रियासत व सामंतों के लोग ही आते थे। मेले की रौनक 1950 से आई। इसे सुखिया या सखियां सोमवार का मेला कहा जाता है क्योंकि सावन में प्रसन्न होता है, जीवन सुखी होता है। सावन में सात सुख हैं- सावन, सोमवार, शिव सान्निध्य, सरिता, सागर, संगम, सौभाग्यवती। ये सब जब एक साथ मिलते हैं तो जीवन का आनंद बढ़ जाता है। इसी सोच से इस मेले में लोग आनंद लेने आने लगे। महिलाएं सखियां और परिवार के साथ आने लगीं।
सन 1881 में महाराणा सज्जनसिंह ने सज्जन निवास बाग का निर्माण कराया। इसे ही गुलाबबाग कहा जाने लगा। इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू के अनुसार, 1885 के आसपास यहां लोगों का आना जाना शुरू हुआ। पहले रियासत व सामंतों के लोग ही आते थे। मेले की रौनक 1950 से आई। इसे सुखिया या सखियां सोमवार का मेला कहा जाता है क्योंकि सावन में प्रसन्न होता है, जीवन सुखी होता है। सावन में सात सुख हैं- सावन, सोमवार, शिव सान्निध्य, सरिता, सागर, संगम, सौभाग्यवती। ये सब जब एक साथ मिलते हैं तो जीवन का आनंद बढ़ जाता है। इसी सोच से इस मेले में लोग आनंद लेने आने लगे। महिलाएं सखियां और परिवार के साथ आने लगीं।