– उदयपुर. श्रावण मास की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन इस बार पेड़ों पर ना सावन के झूले पड़े हैं और ना ही बाग-बगीचों में सखियों की रौनक है। जबकि हर साल सावन लगते ही बाग-बगीचों में लोग झूलों का आनंद लेने और मौज-मस्ती के लिए पहुंच जाते थे। वहीं, सावन की बरसती बूंदें मौसम का मजा और दोगुना कर देती थी। इस बार बाग-बगीचे सूने ही रहे और सावन का पहला सोमवार लोगों ने घरों पर ही मनाया। दरअसल, कोरोना महामारी के कारण इस बार गुलाबबाग में सावन माह में लगने वाला सखियां सोमवार का मेला भी सुरक्षा की दृष्टि से स्थगित कर दिया गया। सावन के हर सोमवार को लगने वाले इस मेले में लोग खासकर महिलाएं व युवतियां अपने परिवार, दोस्तों व बच्चों के साथ पहुंचतीं और मेले में लगने वाली स्टॉल्स पर खरीदारी करती तो व्यंजन के लुत्फ भी लेतीं। कई लोग परिवार सहित बाग में बैठकर कई तरह के खेल खेलते और खाने-पीने का आनंद लेते।
————– 1950 से आई सखियां सोमवार मेले में रौनक
सन 1881 में महाराणा सज्जनसिंह ने सज्जन निवास बाग का निर्माण कराया। इसे ही गुलाबबाग कहा जाने लगा। इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू के अनुसार, 1885 के आसपास यहां लोगों का आना जाना शुरू हुआ। पहले रियासत व सामंतों के लोग ही आते थे। मेले की रौनक 1950 से आई। इसे सुखिया या सखियां सोमवार का मेला कहा जाता है क्योंकि सावन में प्रसन्न होता है, जीवन सुखी होता है। सावन में सात सुख हैं- सावन, सोमवार, शिव सान्निध्य, सरिता, सागर, संगम, सौभाग्यवती। ये सब जब एक साथ मिलते हैं तो जीवन का आनंद बढ़ जाता है। इसी सोच से इस मेले में लोग आनंद लेने आने लगे। महिलाएं सखियां और परिवार के साथ आने लगीं।
सन 1881 में महाराणा सज्जनसिंह ने सज्जन निवास बाग का निर्माण कराया। इसे ही गुलाबबाग कहा जाने लगा। इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू के अनुसार, 1885 के आसपास यहां लोगों का आना जाना शुरू हुआ। पहले रियासत व सामंतों के लोग ही आते थे। मेले की रौनक 1950 से आई। इसे सुखिया या सखियां सोमवार का मेला कहा जाता है क्योंकि सावन में प्रसन्न होता है, जीवन सुखी होता है। सावन में सात सुख हैं- सावन, सोमवार, शिव सान्निध्य, सरिता, सागर, संगम, सौभाग्यवती। ये सब जब एक साथ मिलते हैं तो जीवन का आनंद बढ़ जाता है। इसी सोच से इस मेले में लोग आनंद लेने आने लगे। महिलाएं सखियां और परिवार के साथ आने लगीं।