चित्तौड़़ग़ढ से करीब 41 किलोमीटर दूर मण्डपिया गांव में स्थित भगवान सांवलिया सेठ के इस मंदिर में दर्शनों के लिए पूरे वर्ष श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
बबूल के पेड़ को काटकर खोदा तो वहां से निकलींं भगवान कृष्ण की 3 प्रतिमाएं, बस यहीं बना मेवाड़ का ये प्रसिद्ध मंदिर
चित्तौडगढ़़. मेवाड़ के प्रख्यात कृष्णधाम श्रीसांवलियाजी मंदिर जन-जन की आस्था का केन्द्र बन चुका है। कृष्ण जन्माष्टमी से पहले मंदिर पर भव्य सजावट हो चुकी हैै तो जन्माष्टमी पर शनिवार को दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ेगी। चित्तौड़ग़ढ़ से करीब 41 किलोमीटर दूर मण्डपिया गांव में स्थित भगवान सांवलिया सेठ के इस मंदिर में दर्शनों के लिए पूरे वर्ष श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। हर वर्ग व उम्र के लोग पूरी श्रद्धा से यहां आते हैंं। उदयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर भादसोड़ा चौराहे से सात किलोमीटर अंदर मण्डपिया गांव में ये मंदिर स्थित है।
सांवलिया सेठ की 3 प्रतिमाओं के पीछे की अनूठी है कहानी इस मंदिर में सांवलिया सेठ की 3 प्रतिमाओं से जुड़ा भी अपना इतिहास है। सन 1840 में तत्कालीन मेवाड़़ राज्य में उदयपुर से चित्तौड़़ जाने के लिए बनने वाली कच्ची सडक़ के निर्माण में बागुन्ड गाँव में बाधा बन रहे बबूल के वृक्ष को काटकर खोदने पर वहांं से भगवान कृष्ण की सांवलिया स्वरुप 3 प्रतिमाएं निकली। 1978 में विशाल जनसमूह की उपस्थिति में मंदिर पर ध्वजारोहण किया गया। 1961 से मंदिर के निर्माण,विस्तार व सोंदर्यकरण का जो कार्य शुरू हुआ है वह अब तक चालू है। इस स्थल पर अब एक अत्यंत ही नयनाभिराम एवं विशाल मंदिर बन चुका है। वर्ष 1961 से ही इस प्रसिद्ध स्थान पर देवझूलनी एकादशी विशाल मेले का आयोजन हो रहा है। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशमी, एकादशी व द्वादशी को 3 दिवसीय विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। प्रतिमाह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सांवलियाजी का दानपात्र भंडार खोला जाता है और अगले दिन यानी अमावस्या को शाम को महाप्रसाद का वितरण किया जाता है।
अब तक हो चुका तीन बार मंदिर का विस्तार सांवलियाजी मंदिर का अब तक तीन बार विस्तार हो चुका है। यहां वर्ष 2018 में 25 जून को स्वर्ण कलश स्थापना का दूसरा समारोह तथा ध्वजादण्ड स्थापना का तीसरा कार्यक्रम हुआ। भगवान सांवलिया सेठ की प्रतिमा प्रारम्भिक वर्षो में एक खुले चबूतरे पर स्थापित की गई। 19वीं शताब्दी के शुरूआती वर्षो में यहां पर एक छोटे मंदिर का निर्माण किया गया था, उस समय ध्वजादण्ड तथा कलश स्थापना के साथ मंदिर की प्रतिष्ठा भी हुई थी। मंदिर का दूसरा विस्तार 1970 के दशक में हुआ था, इसमें मुख्य मंदिर तथा शिखर को यथा स्थिती में रखते हुए मंदिर का विस्तार किया गया था। इसके बाद लगातार वर्षो में कलश व शिखर तो उसी स्थिती में रहा, लेकिन पूराने शिखर ध्वजादण्ड टूट जाने की वजह से सांवलियाजी मंदिर अधिग्रहण के बाद 1993 में तत्कालीन मंदिर मण्डल प्रशासक एवं जिला कलक्टर पीके आनंद तथा मुख्य निष्पादन अधिकारी ओपी हर्ष तथा तत्कालीन सिंचाई मंत्री विजयसिंह झाला की उपस्थिती में ध्वजादण्ड की स्थापना की गई थी।