इस तालाब में बबूल के पेड़ खड़े है जिनके चारों ओर पॉलीथिन व कचरे की चादर बिछी हुई है। आसपास के रहने वाले और सडक़ के किनारे गुजरने वाले लोग इस तालाब को कूड़ा पात्र मान चुके हैं।
इस तालाब में सुखेर की पहाडिय़ों और स्कूल की तरफ से बरसाती पानी बहकर आता था। जल प्रवाह मार्ग में जगह जगह निर्माण होने और उसे पाट देने से तालाब में पानी आसानी से नहीं पहुंच पाता है। इसके पश्चिम में कुछ मकान बने, जिनके लिए भराव डालकर कच्ची सडक़ बना दी गई। तालाब की कच्ची पाल को भी संरक्षित नहीं किया जा रहा है।
धाबाई जी का तालाब पहले हमेशा भरा रहता था लेकिन अब इसकी गहराई कम होने से पानी कम ठहरता है। यूआईटी ने इस तालाब को बचाने की दिशा में जल्द ही कदम नहीं उठाए तो यह भी दूसरे तालाबों की तरह अस्तित्व खो देगा।