यह बात अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन सचिव डॉ बीएम पांडेय ने बुधवार को राजस्थान विद्यापीठ विवि के संघटक इतिहास एवं संस्कृत विभाग व भारतीय इतिहास अनुसंधाान परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय महाराणा कुंभा: व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन अवसर पर कही। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रह कुलपति प्रो एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि महाराणा कुंभा की ओर से स्थापत्य तथा प्रतिमा विज्ञान के क्षेत्र में किए गए अभिनव प्रयोगों व मूर्ति शिल्प की वर्तमान में भी महत्ती आवश्यकता है। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष प्रो अरविंद जामखेडकर ने कहा कि भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप और महाराणा कुंभा ऐसे दो व्यक्तित्व रहे हैं, जिन्होंने सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को समानांतर रूप में लाने का प्रयास किया। मुख्य वक्ता इतिहासविद प्रो के.एस. गुप्ता ने कहा कि मेवाड ऐसा क्षेत्र हैं, जहां एक लाख साल पहले भी मानव का विचरण माना गया है। आहड सभ्यता से तुर्की तक व्यापार के संकेत मिलते हैं, यहां से जस्ता वहां भेजा जाता था। 1433 में वापस वैदिक सभ्यता स्थापित करने का कार्य महाराणा कुंभा ने ही किया है।
प्रदेश को उचित स्थान देगी यूजीसी
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव प्रो कुमार रत्नम ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उच्च शिक्षा में भी राजस्थान को उचित स्थान देने का निर्णय किया है। इसके तहत यूजीसी जो पाठयक्रम तैयार कर रहा है, उसके एक भाग में मध्यकालीन इतिहास में जहां औरंगेजेब को पढेंग़े,वहीं दूसरी भाग में महाराणा प्रताप व कुंभा भी शामिल होंगे। इससे छात्रों में स्वाभिमान की भावना भी जगेगी।
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव प्रो कुमार रत्नम ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उच्च शिक्षा में भी राजस्थान को उचित स्थान देने का निर्णय किया है। इसके तहत यूजीसी जो पाठयक्रम तैयार कर रहा है, उसके एक भाग में मध्यकालीन इतिहास में जहां औरंगेजेब को पढेंग़े,वहीं दूसरी भाग में महाराणा प्रताप व कुंभा भी शामिल होंगे। इससे छात्रों में स्वाभिमान की भावना भी जगेगी।
40 शोध पत्रों का वाचन
समन्वयक डॉ हेमेंद्र चौधरी ने बताया कि कुंभाकालीन सामाजिक स्थिति, प्रासाद व मूर्तिशिल्प, उनकी सैन्य नीति का आधार स्तंभ, कुंभलगढ़, मंदिर, धार्मिक जीवन, ज्योतिष व वास्तु शास्त्र, एकलिंग माहात्म्य में प्रतिबिंबित मेवाड़ की पारिस्थितिकी, उनकी रक्षा नीति, स्थापत्य कला आदि विषयों पर तकनीकी सत्र हुए। इन सत्रों में करीब 40 शोध पत्रों का वाचन हुआ।
समन्वयक डॉ हेमेंद्र चौधरी ने बताया कि कुंभाकालीन सामाजिक स्थिति, प्रासाद व मूर्तिशिल्प, उनकी सैन्य नीति का आधार स्तंभ, कुंभलगढ़, मंदिर, धार्मिक जीवन, ज्योतिष व वास्तु शास्त्र, एकलिंग माहात्म्य में प्रतिबिंबित मेवाड़ की पारिस्थितिकी, उनकी रक्षा नीति, स्थापत्य कला आदि विषयों पर तकनीकी सत्र हुए। इन सत्रों में करीब 40 शोध पत्रों का वाचन हुआ।
शोध पत्रिका का विमोचन
संगोष्ठी के दौरान भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की ओर से राणा कुंभा के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाशित स्मारिका का विमोचन भी अतिथियों ने किया।
संगोष्ठी के दौरान भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की ओर से राणा कुंभा के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाशित स्मारिका का विमोचन भी अतिथियों ने किया।