उदयपुर

#Shardiya Navratri मेवाड़ के शक्तिपीठ: अद्भुत है मां का चमत्कार, यहां नीम के पेड़ से प्रकटी थीं, video

उदयपुर में देवी मन्दिरों की बड़ी शृंखला

उदयपुरSep 21, 2017 / 08:10 pm

Dhirendra Joshi

उदयपुर . वीरता, त्याग और बलिदान की कहानी तो हमेशा से मेवाड़ की धरती कहती आई है लेकिन यह शक्ति और भक्ति की भूमि भी है। यहां कई शक्तिपीठ हैं जो लोगों की आस्थाओं से जुड़े हुए हैं। मंदिरों में स्थापित मां दुर्गा के विविध रूप के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। मां के दर्शनों से कई रोग निवारण होते हैं तो लोगों के कष्टों को भी मां हरती है। नवरात्रा में भक्तों की आस्था देखने लायक होती है। कोई सैकड़ों किमी. दूर से पैदल चला आ रहा है तो कोई लोटते हुए दर्शनों के लिए पहुंच रहा है। कोई मांगी गई मन्नतों के लिए अनुष्ठान करवा रहा है तो कोई सोने-चांदी के चढ़ावे कर रहा है। यह सब लोगों की आस्था व श्रद्धा ही है जिसके कारण इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है।
 

नीम के पेड़ से प्रकटीं थी नीमज माता
शहर के दक्षिण में देवाली के निकट लगभग 85 मीटर की ऊंचाई पर जन जन की आस्था का केन्द्र है। इसे उदयपुर की वैष्णो देवी भी कहा जाता है। नीमजमाता के बारे में मान्यता है कि इसकी उत्पति नीम पेड़ से होने के कारण इसका नाम नीमज माता रखा गया है। इसे नीमच माता भी पुकारा जाता है। लोक आस्था के अनुसार आज भी आस पास के गांवों में नीम के पेड़ के नीचे माता को स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि नीम से उत्पन्न होने के कारण देवी की आराधना जहां होगी वहां दाद खाज जैसे चर्म रोग नहीं होंगे। कहा जाता है कि पहले माता का मंदिर देवाली तालाब के पेटे में था बाद में तालाब का विस्तार होने से पर्वत के शिखर पर मंदिर बनवा कर देवी प्रतिमा स्थापित की गई। मंदिर के गर्भगृह में नीमज माता की आदमकद प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के समीप ही भैरुजी विराजमान है।
 

ambamata
मेवाड़ का प्राचीन शक्तिपीठ अम्बामाता
मेवाड़ के प्राचीन शक्तिपीठों में उदयपुर का अंबामाता मंदिर ख्यात है। यह मंदिर लगभग साढ़े तीन सौ साल पूर्व आबू की पहाडिय़ों में स्थित अंबामाता की मेवाड़ पर कृपा का है। नवरात्र में मंदिर में विशेष पूजा-आराधना के आयोजन होते हैं। एेसी मान्यता है कि मेवाड़ के कलाप्रिय शासक महाराणा राजसिंह को नेत्र विकार हुआ तो दरबारियों ने आबू की पहाडिय़ों में स्थित अंबामाता के दर्शनार्थ जाने का परामर्श दिया। इसी बीच एक रात स्वप्न में उन्हें देवी के उदयपुर में ही प्रादुर्भाव का संकेत मिला। देवी के निर्दिष्ट स्थान पर जब खुदाई की गई तो प्रतिमा निकली जिसकी ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत 1721 को प्रतिष्ठा कर मंदिर बनाया गया। देवी ने जहां अपना पहला स्थान लिया, वहां आज चरण पादुका स्थल है और मूल मंदिर में खुदाई से निकली प्रतिमा सहित अंबामाता की चतुर्भुज आयुध युक्तप्रस्तरांकित प्रतिमा भी स्थापित है। यहीं पर चौथ माता का स्थानक भी है। मंदिर में महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के कार्यकाल में बनाए गए प्राचीन भित्ति चित्र भी मनोहारी है।
 

READ MORE: sharadiya navratra 2017: नवरात्र के अनुष्ठान शुरू, श्रद्धा के साथ जगजननी की अगवानी, देखें video

 

अरावली की चोटी पर विराजी हैं सोनार माता
सलूंबर कस्बे की उत्तर दिशा में अरावली पर्वतमाला की चोटी पर सोनार महारानी का मंदिर 10 वीं सदी से स्थापित बताया जाता है। क्षेत्रवासियों की आराध्य सोनार मां के प्रति वनवासी समाज की अटूट श्रद्धा है। भादवी सातम के मेले में आने वाली जनमेदिनी इसकी प्रमाण है, जब हजारों श्रद्धालु आते हैं। कहते हैं, मंदिर मार्ग पर छोटे पत्थरों से छोटे घरौंदे बनाने वालों आशियाने का सपना सोनार माता पूरा करती है। पहाड़ी पर जगह-जगह श्रद्धा के ऐसे उदाहरण मिलते हैं। पहाड़ पर विराजी सोनार माता मेवाड़ क्षेत्र की वैष्णो देवी भी कही जाती हैं।

Home / Udaipur / #Shardiya Navratri मेवाड़ के शक्तिपीठ: अद्भुत है मां का चमत्कार, यहां नीम के पेड़ से प्रकटी थीं, video

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.