scriptVIDEO : शिल्प के कुंभ ‘शिल्पग्राम उत्सव’ में लगी लोकवाद्यों की ‘झंकार’, देखें यह बेहतरीन वीडियो | shilpgram utsav 2018 photos and videos | Patrika News
उदयपुर

VIDEO : शिल्प के कुंभ ‘शिल्पग्राम उत्सव’ में लगी लोकवाद्यों की ‘झंकार’, देखें यह बेहतरीन वीडियो

www.patrika.com/rajasthan-news

उदयपुरDec 30, 2018 / 02:38 pm

Rakesh Rajdeep

shilpgram

VIDEO : शिल्प के कुंभ ‘शिल्पग्राम उत्सव’ में लगी लोकवाद्यों की ‘झंकार’, देखें यह बेहतरीन वीडियो

राकेश शर्मा राजदीप/उदयपुर . लोककला और शिल्प के कुंभ ‘शिल्पग्राम उत्सव’ में शनिवार की सर्द शाम कई राज्यों के लोकवाद्यों की ‘झंकार’ और मुक्ताकाशी मंच में खचाखच भरी दर्शक दीर्घा से उठती सुरताल की अनुगूंज से ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की कल्पना साकार हो उठी। इससे पूर्व पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित उत्सव में दिनभर गुनगुनी धूप का आनंद लेते मेलार्थियों ने खरीदारी खाने-पीने और सेल्फी-फोटो-वीडियो शूटिंग का लुत्फ उठाया।
इधर, रंगमंचीय कार्यक्रम की शुरूआत महाराष्ट्र के धनगरी गजा से हुई। महाराष्ट्र के चरवाहा समुदाय के कलाकारों ने त्यौहारों पर किया जाने वाला नृत्य धनगरी गजा प्रस्तुत कर अपनी संस्कृति से दर्शकों को रूबरू करवाया। इसके बाद बाड़मेर के कलाकारों ने लाल रंग की घेरदार आंगी और सिर पर साफा धारण कर ढोल की लयकारी पर मनोरम गेर नृत्य से दर्शकों को मोहित कर दिया।
READ MORE : उदयपुर की राजनीति में अब होगा कुछ ऐसा कि विधायक से ज्यादा महापौर को मिलेंगे वोट !

बाद के कार्यक्रमों की श्रृंखला में मराठी लावणी नृत्यांगना रेशमा परितकर व उनकी सखियों ने अपनी अदाओं और ठुमकों से लोगों को रिझाया। वहीं, राजस्थान का प्रसिद्ध कालबेलिया नृत्य, गुजरात की वसावा जन जाति का होली नृत्य, कर्नाटक का पूजा कुनीथा, आेडीशा का संबलपुरी, केरल का कावड़ी कडग़म, पश्चिम बंगाल का पुरूलिया छाऊ तथा असम के बिहू नृत्य प्रस्तुतियों ने मेलार्थियों को लोक रसरंग से सराबोर कर दिया।
उत्सव के नवें दिन का प्रमुख आकर्षण फोक सिम्फनी ‘झंकार’ रहा। इसमें सुर रसिकों को विभिन्न राज्यों के वाद्य यंत्रों एक साथ देखने, सुनने का अवसर मिला। झंकार में कमायचा, सिन्धी सारंगी, मोरचंग, चौतारा, चिमटा, ढोल, थाली, मटका, पुंग ढोल चोलम, ढफ, नगाड़ा, बांसुरी, तुतारी, नाल, ढोलकी, मुगरवान, ताशा, निसान, नादस्वर, तविल, गिड़दा, पम्बई, मुरली, खड़ताल आदि वाद्य एक-एक कर जुड़ते रहे और लयकारी को गति मिलती गई। प्रस्तुति के चरम पर पहुंच कर लोक कलाकारों ने लयकारी पर सामूहिक प्रस्तुति कर लोक संस्कृति की अनूठी मिसाल पेश की।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो