scriptvideo: लोक गीतों व नृत्यों पर थिरकने लगा शिल्पग्राम, नगाड़े पर डंके की थाप से राज्यपाल ने किया शुभारंभ | Shilpgram Utsav Starts At Udaipur | Patrika News

video: लोक गीतों व नृत्यों पर थिरकने लगा शिल्पग्राम, नगाड़े पर डंके की थाप से राज्यपाल ने किया शुभारंभ

locationउदयपुरPublished: Dec 22, 2017 01:55:15 pm

Submitted by:

rajdeep sharma

प्रथम कोमल कोठारी स्मृति लोककला पुरस्कार मूर्धन्य कलाकार बंशीलाल खिलाड़ी को

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उदयपुर . ‘कला के इस परिसर में कदम रखते ही बरबस ग्रामीण संस्कृति से साक्षात्कार होता है। लोक कला और शिल्प के इस महामेले में देश के कोने-कोने से आए शिल्पकार और कलाकार इस देश की कला और संस्कृति की पहचान को बचाए रखने तथा घर-घर तक पहुंचाने की ईमानदार कोशिश में लगे नजर आते हैं। ऐसे में हर आमजन का यह दायित्व बनता है कि वे जब भी इस मेले आएं तो यहां से एक न एक कलात्मक वस्तु अवश्य खरीदकर धरोहर के रूप में साथ ले जाएं ताकि इसी बहाने कला और शिल्प के विकास को बल मिल सके।’

यह बात गुरुवार को पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित राष्ट्रीय हस्त शिल्प एवं लोक कला उत्सव के उद्घाटन अवसर पर राज्यपाल कल्याणसिंह ने कही। इस मौके पर उनके साथ गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया के अलावा केंद्र निदेशक मोहम्मद फुरकान खान, सुखाडिय़ा विवि के कुलपति जेपी शर्मा, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के कुलपति डॉ. उमाशंकर शर्मा एवं जिला प्रमुख शांतिलाल मेघवाल भी उपस्थित थे। राज्यपाल सहित अतिथियों ने दीप प्रज्वलन के बाद नगाड़ा वादन उत्सव का आगाज किया।
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समारोह में राज्यपाल ने राजस्थान के लोककला मर्मज्ञ पद्मभूषण डॉ. कोठारी की स्मृति में नागौर के कुचामनी ख्याल के कलाकार बंशीलाल खिलाड़ी को लाइफ टाइम अचीवमेन्ट पुरस्कार से सम्मानित भी किया। उन्हें पुरस्कार स्वरूप 2 लाख 51 हजार का ड्राफ्ट, रजत पट्टिका व शॉल प्रदान की गई। इस मौके पर डॉ.कोठारी की धर्मपत्नी इंदिरा कोठारी का भी शॉल ओढ़ाकर अभिनंदन किया गया।

‘तमाशा’ का विमोचन
इस अवसर पर राज्पाल सिंह एवं अतिथियों ने तमाशा कलाकार एवं लोक नाट्य निर्देशक दिलीप भट्ट की जयपुर की तमाशा शैली पर आधारित पुस्तक ‘तमाशा’ का विमोचन किया।


उमडऩे लगा रैला
पहले दिन दोपहर बाद प्रवेश नि:शुल्क होने के कारण औपचारिक शुरुआत से पूर्व ही मेलार्थियों की भीड़ शिल्पग्राम पहुंच गई। जहां दिन भर उन्होंने हाट बाजार में देश के कोन-कोने से आए शिल्पकारों की कलात्मक वस्तुओं की खरीद की। इसके अलावा कला परिसर में हर जगह पारम्परिक लोक कलाकारों की प्रस्तुतियों का लुत्फ भी उठाया।
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