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उदयपुर

पितरों के तर्पण के दिन आज से, 28 सितंबर तक रहेगा पितृ पक्ष, इन द‍िनों जरूर करें ये काम

श्राद्ध पक्ष शुक्रवार से शुरू हुुुुआ, पूर्वजों की तृप्ति के लिए श्रद्धा से किये जाने वाला कर्म श्राद्ध कहलाता है

उदयपुरSep 13, 2019 / 12:33 pm

madhulika singh

shradh  2019

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प्रमोद सोनी/उदयपुर. पितरों के लिए पूजा-पाठ को लेकर श्राद्ध पक्ष शुक्रवार से शुरू हुुुुआ। इन दिनों में पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण आदि कर्म किए जाएंगे। पूर्णिमा को पहला श्राद्ध होगा। इस दिन सुबह घरों में पितरों को भोग लगाकर तर्पण किया जाएगा। ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाएगा। वही कौओं, गाय, श्वान को भोजन खिलाया जाएगा। पं. गौरव शर्मा ने बताया कि श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए इसमें जरूरतमंदों की मदद कर पुण्य कमाया जा सकता है। पूर्वजों की तृप्ति के लिए श्रद्धा से किये जाने वाला कर्म श्राद्ध कहलाता है।
उन्होंने बताया कि श्राद्ध पक्ष पर पिंड दान, तर्पण, बाह्मण भोज के साथ ही कुछ लोग तिल का दान भी करते हैं।

तिथिवार श्राद्ध पक्ष

13 सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध

14 सितंबर को प्रतिपदा (एकम )का श्राद्ध
15 सितंबर को दूज का श्राद्ध
16 सितंबर को कोई श्राद्ध नही
17 सितंबर को तीज का श्राद्ध

18 सितंबर को चौथ का श्राद्ध
19 सितंबर को पंचमी श्राद्ध

20 सितंबर को छठ श्राद्ध
21 सितंबर को सप्तमी श्राद्ध

22 सितंबर को अष्टमी श्राद्ध
23 सितंबर को नवमी श्राद्ध
24 सितंबर को दशमी श्राद्ध
25 सितंबर को एकादशी व द्वादशी श्राद्ध

26 सितंबर को तेरस का श्राद्ध
27 सितंबर को चतुर्दशी श्राद्ध

28 सितंबर को सर्वपितृअमावस्या का श्राद्ध

आज से घरों के बाहर बनेगी सांझी
इधर, श्राद्ध पक्ष में घरों के बाहर गोबर से सांझी बनाई जाएगी। साहित्यकार डॉ. महेद्र भानावत ने बताया कि सांझी श्राद्ध पक्ष में बनाई जाती है। इस दौरान शाम को कुंवारी कन्याएं गोबर से बनाती है। सांझी पर्व भाद्रपद पूर्णिमा से अमावस्या तक मनाया जाएगा। श्राद्ध के इन सोलह दिनों में कन्याएं शाम के समय घर के बाहर दीवार पर गोबर से सांझी बनाएगी व गीत गाकर बाद में आरती करेगी। इस दौरान प्रतिदिन अलग- अलग आकृतियां बनाकर उसे फूल- पत्तियों से सजाया जाता है। इस दौरान आकृतियों में चांद – सूरज, तारे, लडका-लडकी सीढ़ी सहित कई आकृतिया बनाई जाती है। इसके बाद अंतिम दिनों में एकादशी को कोट बनाया जाता है, जिसमें 16 दिनों की आकृति को दर्शाया जाता है। कोट के बीच में बैलगाड़ी व रथ बनाया जाता है, जिसमें संझा की आकृति बनाकर बिठाया जाता है व अमावस्या पर जल में विसर्जन किया जाता है।

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