पत्थरबाजों को भी आतंकवादी जैसी सजा मिले
उदयपुरPublished: Jul 18, 2019 02:47:11 am
राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश ने कहा
पत्थरबाजों को भी आतंकवादी जैसी सजा मिले
उदयपुर . कमल मुनि कमलेश ने कहा कि हम हमारी सेना का सम्मान करते हैं। लोग आतंकवादियों को संरक्षण देते हैं और सेना पर पत्थर बरसाते हैं। हमारे सैनिकों पर पत्थर फैंकने वालों के साथ ही वही सुलूक होना चाहिए, जो आतंकवादियों के साथ होता है।
देश की रक्षा में जिन बहनों ने अपना सुहाग दांव पर लगाकर पति को शहीद होने के लिए समर्पित किया, उनको विधवा शब्द से संबोधित करना अन्याय और शहीदों का अपमान है। राष्ट्रसंत कमलमुनि कारगिल विजय दिवस के संबंध में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि शहीदों की पत्नियों को वीरांगना के नाम से संबोधित किया जाना चाहिए। शहीदों के परिवारों को आत्म सम्मान से जीने का अधिकार है।
पौषधशाला में आयोजित धर्म सभा में मुनि श्रुतप्रभ ने कहा कि श्रेष्ठ श्रावक क्रिया से श्रेष्ठता पाते हैं। श्रावक ज्ञानवान, क्रियावन, भद्रीक हो और साधु के सद्मार्ग में सहयोगी बने। शुद्ध भिक्षा देने का भाव रखे। जिज्ञासा जताए। धर्म चर्चा से ज्ञान प्राप्त करे। उपवास, बेला, चार उपवास, सचित जल त्याग व एक युवा जोड़े ने चातुर्मास काल के लिए शील व्रत धारण किया। चातुर्मास स्थापना पर मुनि की प्रेरणा से तेले तप की आराधन हुई, जिसमें श्री संघ से 135 तेले हुए। सामुहिक पारणे का आयोजन आयम्बिल शाला भवन में हुआ।
दादाबाड़ी में आयोजित धर्मसभा में साध्वी अभ्युदया ने कहा कि वाणी में तेज, ईमानदारी हो तो सत्यता झलकती है। विपत्ति को सहन करता है तो आत्मा परमात्मा में बदल जाती है। जो मन में चाहते हो, वो नहीं है तो दुखी हो जाते हैं। ज्ञानी पुरुष का अभाव आपके लिए हितकारी बनता है। वस्तु की चाह मत करो, अभाव का दुख खत्म हो जाएगा। दूसरा दुख वियोग का है।
आयड़ स्थित ऋषभ भवन में को सम्बोधित करते हुए आचार्य ज्ञानचंद्र ने कहा कि तीर्थंकरों का उपदेश मूल में एक समान होता है, लेकिन जिस समय जो व्यक्ति सामने होता है, उसकी पात्रता के अनुरूप शैली में परिवर्तन हो जाता है। कई बार सुनने वाले में पात्रता नहीं तो मौन भी रख लेते हैं। अध्यक्ष नरेंद्र तलेसरा ने बताया कि बसंत घरबड़ा ने तेले की तपस्या की।
मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में बुधवार को आयोजित धर्मसभा में विरागरत्न विजय ने कहा कि प्रत्येक आत्मा तथा आत्माधारी मनुष्य में अनंत शक्ति रही है। उस शक्ति का दर्शन ही आत्म दर्शन है, विराट सत्य है। जब तक मानव इस सत्य का साक्षात्कार नहीं कर पाता, तब तक वह अपने आपको निर्बल और अशक्त समझता है।
आयड़ तीर्थ आराधना भवन में साध्वी लक्षितज्ञा ने कहा कि प्रत्येक कार्य ध्यानपूर्वक करें तो लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। ध्यान दीपक के प्रकाश के समान होता है। प्रकाश में अधिक प्रकाश का समावेश होता रहता है, उसी प्रकार ध्यान में ध्यान का समावेश होता है। व्यस्त जीवन में भी आत्मा और परमात्मा का ध्यान किया जाए तो व्यवधान नहीं आता।