एक पद्मभूषण की कहानी: दस साल की उम्र में खोया हाथ, कई दिनों तक नहीं निकले घर से बाहर, लोगों ने कहा मर जाना चाहिए
महाराणा प्रताप को पढ़ा तो पता चला कि भाला क्या होता है
भाला फेंक में पेराऑलम्पियन पद्मभूषण झाझरिया से बातचीत
बोले- राजस्थान पत्रिका में पहली खबर प्रकाशित होने के बाद हौसले हुए बुलंद
उदयपुर
Published: March 26, 2022 09:03:09 am
भुवनेश पंड्या उदयपुर. पेरा ऑलम्पियन पद्मभूषण भाला फेंक के ख्यात खिलाड़ी देवेन्द्र झाझरिया ने कहा कि किसी भी पेरा खिलाड़ी के लिए भाला फेंक चुनौती भरा खेल है, लेकिन मन में ठान लिया जाए तो कुछ भी मुश्किल नहीं। उन्होंने राजस्थान पत्रिका का आभार जताते हुए कहा कि उनकी सफलता में पत्रिका का बहुत बड़ा हाथ है, क्योंकि उनकी पहली खबर पत्रिका ने प्रकाशित कर उनमें जोश भर दिया था। मूलत: चूरू जिले के निवासी झाझरिया शुक्रवार को महाराणा प्रताप खेल गांव में शुरू हुई प्रतियोगिता में उद्घाटन करने बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। पत्रिका से विशेष बातचीत में झाझरिया ने कहा कि वह जिस खेल में आज देश दुनिया में नाम कर रहे हैं, उस भाले को पहली बार प्रात: स्मरणीय महाराणा प्रताप के हाथों में ही देखा था। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रतियोगिताओं के कारण अब पेरा खेलों में लगातार बदलाव आ रहा है। उन्होंने भाले के बारे में कहा कि भाला उनका जुनून व उनकी जिंदगी है, उसके बिना तो वह कुछ सोच ही नहीं सकते। दस साल की उम्र में उन्होंने एक हाथ गंवाया, इसके बाद वह जब लौटकर घर गए तो सोच रहे थे कि घर से बाहर कैसे निकलेंगे। हाथ खोने के बाद उन्होंने लोगों की फब्तियां सुनना शुरू किया, लोग कहते थे कि इसकी जिंदगी बर्बाद हो गई, ये क्या करेगा अब, इसने घर वालों की जिदंगी बर्बाद कर दी है, लोगों ने यहां तक कहा कि इसे तो मर जाना चाहिए। स्कूल के मैदान में पहली बार पहुंचा तो वहां से ये कहकर निकाल दिया कि आपका यहां क्या काम है, जाओ कक्षा में जाकर पढ़ाई करो। उन्होंने कहा कि इस iरििस्थति में माता-पिता ने खूब मदद की। सरकारी स्कूल में पढ़कर वे इस मुकाम तक पहुंचे। कुछ बच्चे जो एथलेटिक्व करते थे, उनके बीच पहुंचा तो लोगों ने सुनाया कि यहां क्या करोगे तब घर पर ही भाला बनाया। इससे प्रशिक्षण लेता रहा। उस ट्रेनिंग ने मुझे पद्मभूषण दिलाया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में कहा कि उन्होंने पेरा खिलाडि़यों को खूब सहयोग किया है। हर घर में हर व्यक्ति को ये समझना होगा। झाझरिया ने कहा कि सबसे पहले समाज में बदलाव की जरूरत है, आधारभूत सुविधाओं को बेहतर करना होगा, इसे लेकर उन्होंने खेल मंत्री अशोक चांदना से भी बात की है। गांवों-गांवों से अलग-अलग खेलों के खिलाड़ी निकालने होंगे, उन्हें सुविधाएं देनी होगी। आम खिलाड़ी की तरह हमारा भाला भी 800 ग्राम का ही होता है, हमारी ट्रेनिंग उनसे ज्यादा मुश्किल होती है। वे अक्टूबर में चीन में होने वाले पेरा एशियन खेल में स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीद के साथ प्रेक्टि्स कर रहे हैं।

एक पद्मभूषण की कहानी: दस साल की उम्र में खोया हाथ, कई दिनों तक नहीं निकले घर से बाहर, लोगों ने कहा मर जाना चाहिए
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