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जायका पुराने शहर का : 40 सालों से कायम है पालीवाल ब्रदर्स की कचौरी का वही स्वाद और अंदाज..उदयपुर आएं तो यहां जाना ना भूलें

locationउदयपुरPublished: Feb 03, 2023 04:26:26 pm

Submitted by:

madhulika singh

उदयपुर का नाम आते ही खूबसूरत झीलें, पहाड़, हवेलियां, महल आदि आंखों के सामने तैर जाते हैं। लेकिन, उदयपुर का सफर केवल यहीं तक ही नहीं सिमटा हुआ है। यहां के चटपटे, मजेदार, लजीज खानों के बिना पुराने शहर की तंग गलियों का सफर तो अधूरा ही कहलाता है। पुराने शहर का स्वाद भी उसकी उम्र की ही तरह पुराना है लेकिन नौजवान पीढि़यों को ये यहां तक खींच लाता है। साथ ही जो लोग खाने के शौकीन हैं उनके कदम तो यहां की खुशबू और स्वाद के कारण खुद – ब- खुद आ जाते हैं। उदयपुर अब स्मार्ट सिटी में तब्दील होता जा रहा है लेकिन असली धरोहर पुराने शहर में ही है।

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कभी 25 पैसे में भी मिलती थी कचौरी, शहरवासियों के साथ पर्यटक भी मुरीदजगदीश चौक की तंग गलियों में घूमते हुए जब कहीं से कचौरियों, समोसे की महक आने लगे तो समझ जाइए कि पालीवाल कचौरी सेंटर की दुकान आसपास ही है। कचौरियों की खुशबू आपको उस दुकान तक ले ही जाएगी और वहां कड़ाहे में गर्मागर्म खौलते तेल में बनती हींग व मूंग दाल की कचौरियां आपके मुंह में पानी ले आएंगी। कचौरियां आप तक कब पहुंचेंगी और आप उसका स्वाद ले पाएंगे, ये इंतजार आपको बेचैन करता रहेगा। इन कचौरियां की खासियत यह है कि पिछले 40 सालों से इनका स्वाद व अंदाज वही का वही है। साल 80 के दशक में तीन भाइयों मांगीलाल , सत्यनारायण और हरीश पालीवाल ने इस दुकान को शुरू किया था। सत्यनारायण पालीवाल ने बताया कि इन कचौरियों से केवल उनका ही नहीं बल्कि पूरे शहरवासियों और यहां आने वाले पर्यटकों का भी एक रिश्ता सा है। कई पर्यटक ऐसे हैं जो जब भी उदयपुर आते हैं, दुकान पर आना नहीं भूलते। इनमें दिल्ली के हरीश बाली और गुजरात के कमलेश मोदी ऐसे ही मुरीद हैं, जो यहां आकर कचौरी खाते हैं और घरवालों के लिए भी ले जाते हैं।
सुबह 4 बजे उठकर जुटते हैं तैयारी में, हर दिन बनाते 700 से 800 कचौरियां

सत्यनारायण पालीवाल ने बताया कि उनके पिताजी नाथूलाल पालीवाल जडि़यों की ओल में चाय की दुकान चलाते थे। तीनों भाइयों ने दसवीं तक पढ़ाई की और फिर कचौरी की दुकान शुरू की। उनके चाचा उदयलाल पालीवाल ने कचौरी बनाना सिखाया था और बाद में इसमें उन्होंने अपने हिसाब के मसालोें से फेमस बनाया। आज तक तीनों भाई खुद ही कचौरी और उसका मसाला बनाते आए हैं, उन्होंने किसी कारीगर को साथ नहीं रखा। उनके साथ उनका भतीजा दिलीप पालीवाल भी उनकी मदद करता है। इसके लिए वे सुबह 4 बजे उठ जाते हैं और दिन में दो-ढाई बजे तक कचौरियां बनाते हैं। हर दिन करीब 700 से 800 कचौरियां बना लेते हैं और रविवार के दिन ये संख्या बढ़कर 1500 के करीब हो जाती है। कचौरियों के अलावा वे समोसे, मिर्ची बड़ा, आलू बड़ा, देसी घी की जलेबी भी बनाते हैं।—————-
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