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दवा की बजाय यहां मिलता है दर्द…उदयपुर संभाग के सबसे बड़े टीबी अस्‍पताल के ये हैं हाल..

locationउदयपुरPublished: Oct 26, 2018 04:18:55 pm

Submitted by:

madhulika singh

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दवा की बजाय यहां मिलता है दर्द…उदयपुर संभाग के सबसे बड़े टीबी अस्‍पताल के ये हैं हाल..

भुवनेश पंड्या/ उदयपुर. आंकड़ों के अनुसार टीबी मरीज को सही चिकित्सा नहीं मिलने पर 50 प्रतिशत से अधिक प्रतिवर्ष मौत के मुंह में समा जाते हैं। लेकिन, मरीज अस्पताल पहुंचे और वहां दवा की जगह दर्द मिले तो क्या कहेंगे? ऐसा ही हो रहा है संभाग के सबसे बड़े टीबी अस्पताल में। यहां बड़ी के टीबी अस्पताल को ही इलाज की जरूरत है। कई मशीनें खराब हैं तो पद रिक्त होने से जांच व उपचार कार्य भी प्रभावित हो रहा है। इधर-उधर भटकते व तड़पते मरीजों की खोज-खबर लेने वाले भी कोई नहीं है। पत्रिका टीम ने बुधवार को यहां पड़ताल की तो स्थितियां गंभीर मिली।

उपचार को तड़पता रहा मरीज

बड़ी हॉस्पिटल के बरामदे में 65 वर्षीय मांगीलाल उपचार के लिए बाहर एम्बुलेंस में तड़प रहा था, लेकिन उसे इसलिए अन्दर नहीं लिया गया क्योंकि उसका पंजीयन फार्म नहीं भरा गया था।
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मशीन एक साल से बंद
यहां टीबी की जांच करने वाली सीबी नोट मशीन अर्से से बंद पड़ी है। मशीन इसलिए बंद है क्योंकि इसे चलाने वाला कोई नहीं। ऐसे में अब यहां से जांच के लिए स्पूटम हाथी पोल स्थित टीबी हॉस्पिटल में भेजा जाता है। आरएनटीसीपी (रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबर क्लासिस कन्ट्रोल प्रोग्राम) के नोडल प्रभारी डॉ मनोज आर्य और डॉ महेश महीच ने बताया कि मार्च 2017 में मशीन मिली। पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एक लैब टेक्नीशियन लगाया था, लेकिन वह कुछ दिन कार्य कर चला गया, इसके बाद रेजिडेंट डॉ गोविन्द ने इस मशीन को कुछ दिन चलाया, लेकिन बाद में इसे फिर से बंद कर दिया गया। अब इसे लेकर पत्र सीएमएचओ को भेजा गया है, जल्द ही वहां से टेक्नीशियन लगाने के लिए कहा है।

यह भी मिली खामियां

– हॉस्पिटल में सफाई भी बेहतर नहीं – आउटडोर में मरीजों के लिए पीने का पानी उपलब्ध नहीं
– वाटर कूलर बंद पड़ा है

– आरोग्य ऑनलाइन से जुड़ी मशीन भी दिखाने की रह गई है।
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यहां मरीजों के परिजन खींचते दिखे स्ट्रेचर

– बुरई गांव की चवनिया को वार्ड से स्ट्रेचर पर उसके परिजन खींचकर आउटडोर में ला रहे थे। काफी देर तक बीच राह उसे रोक ऑक्सीजन सिलेंडर ठीक करने में लगाया गया। पूछने पर परिजन ज्यादा कुछ नहीं बोले सिर्फ इतना कहा कि बीमार है।
– देवली के भैंसाकुंडल से अपने पिता लादूराम की टीबी का उपचार करवाने आए युवक और परिजन गोपाल खुद स्ट्रेचर आउटडोर में ले जाते नजर आए, पत्रिका टीम ने जब पूछा तो बताया कि वह खुद ही अपने पिता को भर्ती करवाने के लिए स्ट्रेचर पर ले गए थे, स्टाफ वालों ने कहा कि फिर से रखकर आओ, इसलिए वापस आए हैं।
एक ही रेडियोग्राफर पर बोझ

यहां गंगाराम डांगी एक मात्र रेडियोग्राफर है। उन्होंने अपनी पीड़ा रखते हुए बताया कि दिन के 50 से ज्यादा एक्सरे करते हैं। कोई दूसरा स्टाफ नहीं है, इसलिए काम में बेहद परेशानी हो रही है।
केवल तीन पढ़ाने वाले रेजिडेंट्स को

यहां दो असिस्टेंट प्रोफेसर व एक प्रोफसर है, जबकि पद कुल नौ शिक्षकों के है, इसमें चार असिस्टेंट प्रोफेसर, तीन एसोसिएट व दो प्रोफेसर की स्वीकृत पोस्ट है। ऐसे में कक्षाएं भी प्रभावित हो रही हैं। हॉस्पिटल में 14 रेजिडेंट अध्ययनरत है, सीट 15 की है।
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फैक्ट फाइल

यहां पर रोजाना करीब 100 टीबी के मरीज आ रहे हैं, तो सीओपीड़ी, अस्थमा व अन्य बीमारियों के 20 मरीज आते हैं।
यह काम आता है सीबी नोट मशीन

सीबी नोट मशीन जो बड़ी में अर्से से बंद पड़ा है, वह टीबी के स्पूटम की जांच करता है। ये मशीन कम्प्यूटर से जुड़ी होती है, इसमें स्पूटम को एक रासायनिक सोल्यूशन में मिलाकर मशीन में रखा जाता है, जिसकी रिपोर्ट दो घंटे बाद पता चल जाती है कि उसे टीबी है या नहीं। इसमें भी टीबी की 1. आर रजिस्टेंट 2. सेंसेटिव व 3. एमटीबी नोट (बीमारी नहीं होना) पता चलता है। इसमें अंतिम रिपोर्ट के लिए नमूना अजमेर लैब भेजा जाता है, जो जिला टीबी प्रभारी के माध्यम से भेजा जाता है। हालांकि डॉक्टर अपने विवेक से दवाई देना शुरू कर देते हैं।
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सलूम्बर में भी बंद है मशीन

वर्तमान में सीबी नोट मशीन बड़ी हॉस्पिटल के साथ-साथ हाथी पोल टीबी हॉस्पिटल, पेसिफिक उमरड़ा और सलूम्बर में लगाया गया है, लेकिन सलूम्बर वाला भी बंद पड़ा है। इसलिए कि सलूम्बर में भी लैब टेक्नीशियन उपलब्ध नहीं है।

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