मेवाड़ की प्राचीन राजधानी नागदा में खंडहर हो चुके सैकड़ों मंदिरों से मूर्तियां चुराकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तस्करी करने वालों का जी अभी भरा नहीं है। यहां मंदिरों के गर्भगृह से लेकर अन्य जगह खजाने की तलाश में खुदाई का दौर जारी है। वहीं, कुछ लोग यहां टूटी-फूटी बिखरी पड़ी मूर्तियों को बेशकीमती बताकर विदेशी पर्यटकों के साथ ठगी का गोरखधंधा कर रहे हैं। नागदा में बिखरे पुरावैभव पर समाजकंटकों की नजर को लेकर स्थानीय लोग चिंतित हैं।
शहर से 19 एवं कैलाशपुरी से 2 किलोमीटर दूर नागदा के उपेक्षित मंदिर, क्षत विक्षत कला-वैभव का अद्भुत संसार बिखरा पड़ा है, जो अपनी करुण कथा को बयां कर रहा है। शैव, वैष्णव, जैन संप्रदाय के भग्नावशेष अपनी उपेक्षा व दुर्दशा पर आंसू बहाते देखे जा सकते हैं। बप्पा रावल शिलादित्य से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक नागदा धर्म व संस्कृति का प्रमुख केंद्र रहा था। बताते हैं कि मंदिरों की इस नगरी में पूर्व में करीब दो हजार से अधिक मंदिर थे, कुछ तो पानी में डूब गए और कई खंडहर हो गए। जो बचे हैं, उनकी देखरेख भी नहीं हो पा रही।
इनकी सुध तो लो
कहते हैं कि दिल्ली के सुल्तान इल्तुमिश ने हमला कर पूरी राजधानी को जलाकर नष्ट कर दिया, लेकिन सास बहू (सहस्रबाहु) के मंदिर सहित कई मंदिरों को नष्ट नहीं किया था। उसमें से बाघेला तालाब के पास एक छोटी पहाड़ी पर शिवालय भी है, जो सडक़ मार्ग से ठीक दिखाई नहीं देता है। क्षेत्रवासी इसे खुमान रावल का देवरा भी कहते हैं। इतिहास व कलाविद् डॉ. विष्णु माली ने बताया कि पूर्व मध्यकालीन उपेक्षित शिवालय छाजन द्वार शैली में निर्मित यह मंदिर मेवाड़ राज्य के रचना विधान का उत्कृष्ट उदाहरण है। गर्भ गृह का शिखर भाग तथा जंघा मंडोवर गिर चुके हैं। हालांकि, शिवलिंग आज भी सुरक्षित है।
शराबियों का अड्डा
यहां स्थित शिवमंदिर को शराबियों ने अड्डा बना दिया है। परिसर और आसपास शराब की बोतलें बिखरी पड़ी है। पास ही पहाड़ी पर स्थित ऐसे ही निर्जन स्थान पर निर्मित जैन मंदिर में भी शराब की बोतलों को शोभा मंडप में तोड़ कर इस तरह बिखेर रखा है कि वहां पैदल चलना भी मुश्किल है।
हालांकि यह मंदिर देवस्थान के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, लेकिन इस तरह की दुर्दशा है तो सरकार के पास रखरखाव व संरक्षण को लेकर प्रस्ताव भेजेंगे। – दिनेश कोठारी, अतिरिक्त आयुक्त, देवस्थान यह पुरातत्व के अधीन नहीं है। संभवत: देवस्थान विभाग देख रहा होगा। – विनीत गोधल, अधीक्षक, पुरातत्व विभाग