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ये पत्थर सबूत है की 180 करोड़ साल पहले थार मरुस्थल की जगह था समुद्र

locationउदयपुरPublished: Nov 21, 2019 08:00:54 pm

उदयपुर की धरोहर है प्रदेश का सबसे पुराना भू-विज्ञान संग्रहालय, म्यूजियम देखने देशभर से आते हैं विद्यार्थी

ये पत्थर सबूत है की 180 करोड़ साल पहले थार मरुस्थल की जगह था समुद्र

ये पत्थर सबूत है की 180 करोड़ साल पहले थार मरुस्थल की जगह था समुद्र

पंकज वैष्णव . उदयपुर . पर्यटन, झीलें और विरासत के नाम से विख्यात झीलों की नगरी अपने में और भी कई महत्व समेटे हुए हैं। उन्हीं छिपे हुए महत्वों में से एक है भू-विज्ञान संग्रहालय। ज्यादातर शहरवासी नहीं जानते की यहां स्थित भू विज्ञान संग्रहालय प्रदेश का सबसे पुराना म्यूजियम और पृथ्वी विज्ञान की बड़ी धरोहर है। यहां प्रदेश ही नहीं, वरन देश-दुनिया की बेशकीमती धरोहर है। यहां कई तरह के खनीज, जीवाश्म, शैवाल, चट्टानें हैं, जो पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान तक भू-गर्भ के हालात बयां करते हैं।वर्ष 1950 में उदयपुर में भू विज्ञान विभाग का गठन हुआ था। स्थापना तत्कालीन प्रोफेसर केपी. रोडे ने की। लिहाजा यहां स्थापित संग्राहलय का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है। मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के सांइस कॉलेज के साथ चलने वाले भू विज्ञान विभाग का ‘रोडे म्यूजियम’ प्रदेश का सबसे पुराना भू विज्ञान संग्रहालय है। भू विज्ञान विषय पढऩे वाले विद्यार्थियों के लिए रोडे म्यूजियम का इतना महत्व है कि देशभर से विद्यार्थी अवलोकन करने आते हैं। मानते हैं कि उदयपुर के इस म्यूजियम का अवलोकन नहीं किया तो भू विज्ञान की पढ़ाई ही अधूरी है।
उल्कापिण्ड
म्यूजियम में उल्कापिण्ड के दो टुकड़े रखे हैं। एक 20 जून 1996 को पाली जिले के पिपलिया गांव में किसान प्रभुलाल चौधरी के खेत में गिरा था। विभाग के पीएस राणावत, एमएस शेखावत ने इसकी पुष्टि की। दूसरा उल्कापिंड नाथद्वारा (राजसमंद) के पास धान्यला की भागल गांव में 25 दिसम्बर 2012 को गिरा। इसे प्रो. विनोद अग्रवाल ने प्राप्त करके म्यूजियम में रखा। खास बात ये कि दोनों उल्कापिंड हमारे सौर मंडल के नहीं, बल्कि किसी दूर ग्रह के हैं। भू वैज्ञानिकों की ओर से जांच में इसकी पुष्टि हुई।
जीवाश्म
म्यूजियम में बड़ी संख्या में जीवाश्म खण्ड रखे हैं। यहां रखे जीवाश्म जैसलमेर और कच्छ (गुजरात) से मिले, जो करोड़ों सालों का इतिहास बयां करते हैं। बताते हैं कि दोनों जगह से मिले जिवाश्म 180 करोड़ साल पुराने हैं। इन पत्थरों की बनावट समुद्री जीवों जैसी है, जो उस समय जीव थे, जो अब पत्थर रूप में हैं। ये इस बात की पुष्टि करते हैं कि यहां करोड़ों साल पहले समुद्र था। धरती संरचना में आए बदलाव के चलते अब यहां थार का मरुस्थल है। जैसलमेर के पास ही अकल नामक जगह से 180 करोड़ साल पुराना ही जिवाश्म मिला, जो किसी पेड़ से बना पाया गया। इस पत्थर में पेड़े के तने में बनने वाली परतों जैसी बनावट है, जो ये साबित करता है कि सागर के एक किनारे घने पेड़ थे। इसी तरह से यहां एक जिवाश्म रखा है, जो हाथी के मुंह के समान है, यह 6 करोड़ साल पुराना बताया जाता है। इसी तरह से हिमाचल प्रदेश के भी जिवाश्म रखे हैं।
जावर में लकड़ी के सहारे खनन
उदयपुर जिले के जावर में मिले लकड़ी के खंभे भी म्यूजियम में रखे हैं, जो ढाई हजार साल पुराने हैं। बताते हैं कि उस समय भी जावर में रॉक फॉस्फेट खनन होता था। तकनीक की कमी के चलते लकड़ी के खंभों का सहारा बनाया जाता था। उस समय खंभे धरती में दफन हो गए, जो बीते सालों में खुदाई के दौरान मिले।
प्रदेश के अन्य म्यूजियम यहां
बांगड़ महाविद्यालय डिडवाना, अजमेर विवि
डूंगर महाविद्यालय बीकानेर, महाराजा गंगासिंह विवि
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
‘रोडे म्यूजियम’ में है यह
300 तरह के खनीज
200 तरह की चट्टानें
400 तरह के जीवाश्म
125 तरह के रत्न स्टोन
02 उल्कापिंड के टुकड़े
पर्यटन स्थल जैसी हो पहचान
उदयपुर स्थित भू विज्ञान विभाग और यहां के म्यूजियम के महत्व का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अब तक यहां पढ़े और सेवाएं दे चुके 16 जनों को प्रतिष्ठित ‘राष्ट्रीय भू विज्ञान पुरस्कारÓ मिल चुका है। यहां के म्यूजियम को पर्यटन स्थल के रूप में प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है।
एसआर जाखर, विभागाध्यक्ष, भू विज्ञान विभाग
बच्चों को मिले ज्ञानसालभर बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे म्यूजियम का विजिट करते हैं। हालांकि स्कूल शिक्षा में भू विज्ञान विभाग को महत्व नहीं मिल पाया है। बीते दो-तीन सालों में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने भू विज्ञान विषय पर पुस्तक तैयार की, लेकिन बच्चों को यह विषय पढऩे को नहीं मिल रहा है। हमनें कई बार सरकार से इसकी शुरुआत की मांग की।
प्रो. विनोद अग्रवाल, पूर्व विभागध्यक्ष, भू विज्ञान विभाग

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