—— प्राचार्य डॉ पोसवाल की पत्नी डॉ पुनम पोसवाल: प्राचार्य बनने के बाद काम काफी बढ़ गया है, खासकर कोविड-19 को लेकर। वह सुबह आठ से साढ़े आठ बजे कॉलेज के लिए निकल जाते हैं, और देर रात करीब 11 से 12 बजे तक घर लौटते है, कुछ दिनों से साढ़े नौ बजे तक आने लगे हैं, लेकिन पिछले तीन माह से वह काफी देर से लौटते रहे। बकौल डॉ पूनम पति डॉ पोसवाल से कोई पारिवारिक चर्चा नहीं हो पाती, क्योंकि उनके पास समय नहीं होता है, हल्की फुल्की बातचीत कभी कभार रात्रि के भोजन के दौरान होती थी, कोशिश रहती थी कि रात का खाना जरूर साथ खा ले है। बच्चे देर से उठने के कारण सुबह उनका मिलना बच्चों से नहीं होता था। कई बार ऐसा होता है कि पूरा परिवार सो जाता है, तब वह लौटते है, टेबल पर खाना रखा होता है, जिन्हें वह गर्म कर खाते हैं। घर के किसी भी काम की उन्हें कोई जानकारी नहीं रहती, पूरा काम डॉ पूनम देखती हैं। डॉ पूनम का कहना है कि दोनों चिकित्सक है तो वे जिम्मेदारी समझती हैं।
—— एमबी अधीक्षक डॉ आरएल सुमन की पत्नी शीला रामेश्वर: एमबी हॉस्पिटल के अधीक्षक डॉ आरएल सुमन की पत्नी शीला रामेश्वर ने पत्रिका को बताया कि उनका गंभीरता से काम करना लोगों के लिए बेहद जरूरी है। बकौल रामेश्वर उनके अधीक्षक बनने के कुछ दिनों बात ही कोविड-19 संक्रमण सामने आ गया था, ऐसे में वह पहले से काफी अधिक व्यस्त हो गए। पिछले तीन महीनों में वह सुबह नौ से दस बजे के बीच घर से निकलकर रात को दो-दो बजे तक घर लौटे हैं। कोविड संक्रमण के शुरुआती दौर में एमबी हॉस्पिटल संभाग का सबसे बड़ा हॉस्पिटल होने के कारण पूरी व्यवस्थाओं से लेकर मरीजों की देखरेख का जिम्मा यहां का था, ऐसे में उनका काम लगातार बढ़ता गया। पिछले कुछ दिनों से जरूर कुछ राहत है। हालांकि उनके पास परिवार के लिए ज्यादातर समय नहीं रहता, लेकिन रात का खाना कोशिश करते है कि पूरा परिवार साथ खाए। कई बार तो सभी ने 12 बजे बाद भी मिल कर खाया है। उनके काम की कद्र पूरा परिवार करता है, हम सभी उनके काम में सहयोग करने का प्रयास करते हैं।शीला रामेश्वर यूनिसेफ की डिविजनल कॉर्डिनेटर हैं।
—– संतोष मीणा, सीएमएचओ डॉ दिनेश खराड़ी की पत्नी ..जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ दिनेश खराड़ी की पत्नी संतोष मीणा बिजनेस वुमन है। वह मानती है कि काम को कमतर नहीं आंका जा सकता। बकौल मीणा डॉ खराड़ी सुबह दस बजे घर से रवाना होकर देर रात 11 व 12 बजे तक लौटते है। हम प्रयास करते थे कि पूरा परिवार रात को खाना साथ बैठकर खाए। वह उनके काम की सराहना करती हुई कहती है कि जिले की जिम्मेदारी उन पर है तो ये जरूरी है कि वह इसे निभाएं। घर में वह परिवार और बच्चों को बेहद कम समय दे पाते हैं, लेकिन अब लोगों की समस्याओं और हालात को देखते हुए सभी समझने लगे है कि उन्हें गंभीरता से काम करना होता है। परिवार के सारे काम मीणा ही देखती हैं। संतोष मीणा पहले शिक्षिका थी, लेकिन बाद में उन्होंने बतौर बिजनेस वुमन खुद को स्थापित किया, वह अपनी गैस एजेन्सी चलाती हैं।
.सुबह दस बजे निकलते थे, रात को कई बार 12 बजे तक लौटते है। सुबह साथ खाने का मौका तो नहीं मिलता था, लेेकिन पूरे उदयपुर की जिम्मेदारी उन पर थी तो पूरी मेहनत से काम करना जरूरी है। रात को खाना खाने के लिए इन्तजार करते थे। संतोष मीणा, बिजनेस वुमन