तुलसी की फसल किसी भी खेत में आसानी से उपज सकती है, इस फसल में एक या दो बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है, जो बारिश के दिनों में आसानी से हो जाती है। अलग से किसानों को सिंचाई नही करनी पड़ती है। जिससे कम खर्च होने के साथ समय की भी बचत होती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि तुलसी का पौधा अत्यधिक सुगन्धित होने से मवेशी भी इसके आस पास नहीं आते हैं। रोजड़े भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते। क्षेत्र के गांवों में गेहूं, मक्का, जौ, चना और सरसों की पारंपरिक फसलों के बजाय किसान तुलसी की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
READ MORE : हार्दिक पटेल 30 को उदयपुर के सल्लाड़ा में, किसान महापंचायत को करेंगे संबोधित … धार्मिक और औषधीय महत्व
तुलसी का वानस्पतिक नाम ओसीमम बेसिलिकम, ओसीमम एंक्टम होकर इसकी उत्पत्ति भारत से ही हुई है। तुलसी पौधा हरा एवं बैंगनी रंग का होता है, जिसको आम भाषा में श्री, कृष्णा, राम व श्याम के रूप में भी जाना जाता है। वैज्ञानिक महत्व के रूप में यह पौधा अति सुक्ष्म जैविक व विषाणु रोधी गुण रखता है, जो सामान्य बीमारियों से बचाता है। तुलसी 24 घण्टे ऑक्सीजन के उत्सर्जन में सक्षम है। इसके पौधे व बीजों से औषधियां बनती है। आयुर्वेद में इसे कफ, डायरिया, त्वचा रोग श्वासन रोग, हैजा व मलेरिया आदि के उपचार में अहम माना गया है।
तुलसी का वानस्पतिक नाम ओसीमम बेसिलिकम, ओसीमम एंक्टम होकर इसकी उत्पत्ति भारत से ही हुई है। तुलसी पौधा हरा एवं बैंगनी रंग का होता है, जिसको आम भाषा में श्री, कृष्णा, राम व श्याम के रूप में भी जाना जाता है। वैज्ञानिक महत्व के रूप में यह पौधा अति सुक्ष्म जैविक व विषाणु रोधी गुण रखता है, जो सामान्य बीमारियों से बचाता है। तुलसी 24 घण्टे ऑक्सीजन के उत्सर्जन में सक्षम है। इसके पौधे व बीजों से औषधियां बनती है। आयुर्वेद में इसे कफ, डायरिया, त्वचा रोग श्वासन रोग, हैजा व मलेरिया आदि के उपचार में अहम माना गया है।
पांच सौ हेक्टेयर में खेती
कृषि अधिकारी मदनसिंह शक्तावत ने बताया कि पंचायत समिति भीण्डर की ग्राम पंचायतों में 500 हेक्टेयर जमीन पर तुलसी की खेती की जा रही है। देखभाल में ज्यादा परेशानी नहीं होने से किसानों को तुलसी की खेती पसंद आ रही है। किसानों को एक बीघा में 2-3 क्विंटल की पैदावार होती है। बाजार मूल्य अधिक रहने पर प्रति बीघा 25-30 हजार रुपए की आय होती है।