उदयपुर

उदयपुर में यहां कलक्टर ने पेश की मिसाल, कुष्ठ रोगी बच्चे को दुलार करते हुए कहा कुष्ठ रोग छूत की बीमारी नहीं

उदयपुर. कलक्टर ने कुष्ठ रोग से पीडि़त एक बच्चे को देखा तो वहां रुके…

उदयपुरJan 31, 2018 / 01:16 pm

Mukesh Hingar

उदयपुर . कलक्टर ने कुष्ठ रोग से पीडि़त एक बच्चे को देखा तो वहां रुके…बच्चे के गाल को छूकर बोले कि इस पर तो अब रोग का कोई असर नहीं दिख रहा…बच्चे को फिर दुलारा। कुष्ठ रोग को अभिशाप मानते हुए ऐसे रोगी का स्पर्श भी नहीं किया जाता रहा है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। यह कोई छूत की बीमारी नहीं है, इसका ईलाज संभव है। यही संदेश उपस्थितजनों को देने के लिए कलक्टर ने मंगलवार को इस तरह से पहल की।
 

चिकित्सा विभाग एवं जिला प्रशासन समाज के ऐसे तबके के रोगियों से दूरी बनाने की बजाय ‘स्पर्श’ करने की जागरुकता के लिए पखवाड़ा चला रहा है। आगाज मंगलवार को जिला कलक्टर विष्णुचरण मल्लिक ने किया। यहां 19 कुष्ठ रोगियों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर अतिरिक्त जिला कलक्टर सीआर देवासी एवं सुभाषचंद्र शर्मा, मुख्य चिकित्सा एवं स्वाथ्य अधिकारी डॉ. संजीव टाक, जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ. मनोहरसिंह यादव, अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. रागिनी अग्रवाल, डिप्टी सीएमएचओ डॉ. राघवेंद्र राय सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। जागरुकता वाहनों को यहां से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया।
 

 

अनदेखा किया तो फिर…

हकीकत में कुष्ठ रोग, चमड़ी और तंत्रिका तंत्र की खामियों वाला रोग है। जीवाणुओं से फैलने वाले रोग का पहला लक्षण मानव अंगों पर धब्बे एवं चकते के तौर पर आता है। रोग का शिकार व्यक्ति की चमड़ी संवेदनता छोड़ देती है। कटने एवं घाव होने का आभास व्यक्ति को नहीं होता। समस्या से रोगी के हाथ-पैर और आंखों में विकृतियां आने लगती हैं। आंखों की रोशनी तक चली जाती है। ऐसे रोगियों को पसीना नहीं आने के लक्षण होते हैं। अधिकांश मौकों पर साधारण से दिखने वाले चकतों की आदमी अनदेखी कर देता है और ऐसे में बीमारी बढ़ जाती है।
 

 

वर्ष वार चिन्हित रोगी और मिला उपचार

वित्तीय वर्ष, उदयपुर की आबादी रोगी लक्ष्य उपचारित रोगी
2011-12 30,67, 549 72 69
2012-13 31,27,673 80 74
2013-14 31,88,975 80 74
2014-15 36,53,910 74 75
2015-16 38,17,240 70 70
2016-17 39,87,871 76 70
2017-18 38,87,871 80 55
 

 

संभव है उपचार

कुष्ठ रोग के दो प्रकार होते हैं। प्राथमिक स्तर पर बीमारी चिन्हित होने वाले रोगी को पीबी (पोसिवेसिलरी बेसिलरी) एवं गंभीर हो चुकी बीमारी को एमबी (मल्टी बेसिलरी) से परिभाषित किया जाता है। प्राथमिक स्तर पर व्यक्ति की लापरवाही से उदयपुर में द्वितीय स्तर पर वाले रोगियों की संख्या अधिक है। प्राथमिक पीबी का समय पर उपचार मिलने पर 6 माह में उपचार से समाधान हो जाता है, जबकि गंभीर बीमारी के उपचार में एक साल तक दवाइयां चलती है।

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