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कोरोना ने छीनी मावे की मिठास, त्योहार पर भी लगा ग्राहकी का‘ग्रहण’

locationउदयपुरPublished: Oct 14, 2020 09:52:28 am

Submitted by:

Mohammed illiyas

कोरोना ने छीनी मावे की मिठास, त्योहार पर भी लगा ग्राहकी का‘ग्रहण’

कोरोना ने छीनी मावे की मिठास, त्योहार पर भी लगा ग्राहकी का‘ग्रहण’

कोरोना ने छीनी मावे की मिठास, त्योहार पर भी लगा ग्राहकी का‘ग्रहण’

मोहम्मद इलियास/उदयपुर
कोरोना महामारी से प्रभावित हुए व्यवसाय के साथ ही त्योहारी सीजन में मावा भी पूरी तरह से फीका पड़ गया है। पहले नकली और अब कोरोना के चलते लोगों ने मावे से पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया है। त्योहार में अग्रिम बुकिंग के लिए लाइन में लगने वाले व्यवसायियों का कारोबार भी धड़ाम से नीचे आ गिरा। लगातार मंदी के चलते शहर में कुछ व्यवसासियों ने दुकानों पर ताले लटका दिए, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में मावा उत्पादकों ने सात से आठ भट्टियां बंद कर दी।नवरात्र से पहले होती थी डिमांड मावा व्यवसायियों व उत्पादकों का कहना है कि प्रतिदिन जिले में करीब 5-6 क्विंटल मावे की खपत थी। नवरात्र शुरू होने से पहले सीजन में यह मांग 13 से 14 क्विंटल होती थी। लगातार भट्टियां चलने के बावजूद इस मांग की पूर्ति करना संभव नहीं हो पाता था इस कारण व्यवसायियों की अग्रिम बुकिंग चलती थी, लेकिन अभी तो मावा उत्पादकों के हालात ऐसे हो गए कि भट्टियां बंद कर बेकार बैठे हंै।

बाहर से आता था नकली मावा
त्योहारी सीजन में भरतपुर, धौलपुर से काफी मात्रा में मिलावटी मावा आने से वल्लभनगर के मावे की काफी मांग रहती थी। नकली की आंशका में कई बाद रसद विभाग व पुलिस की टीमों ने मावों को पकड़ा था, लेकिन अभी हालात ऐसे है कि स्थानीय मावा भी पूरी तरह से खप नहीं पा रहा है। गांवों में मावे के उत्पादन के लिए दूध सप्लाई करने वाले पशुपालक भी दूध को सस्ते में इधर-उधर खपा रहे हैं।

कई गांवों के लोग हुए बेरोजगार
मावे के व्यवसाय से वल्लभनगर के धमानिया, तारावट, विजयपुरा, बड़लिया, भूपालपुरा, रूपावली, महाराज की खेड़ी, मोरझर, सरजना गांव के कई लोग जुड़े हुए थे। इन गांवों की डिमांड के अनुसार दो से तीन भट्टियां चलाते थे, उनमें कई लोग जुड़े रहते थे लेकिन कोरोना ने मावे का स्वाद फीका कर दिया। कई लोग बेरोजगार होकर बैठे हैं।
-त्योहारी सीजन में स्थानीय क्षेत्र से मावा आता था
-13 से 14 क्ंिवटल प्रतिदिनवर्तमान में सीजन में आ रहा मावा
– डेढ़ से दो क्ंिवटलसीजन के अलावा प्रतिदिन की थी खपत
– 4 क्ंिवटलमावे के लिए सभी पशु पालकों से खरीदते हुए दूध
– करीब 5000 लीटरपशुपालक अभी 32 से 33 रुपए में डेयरी संचालकों को बेच रहे दूध

कहते हैं मावा उत्पादक व व्यवसायी वल्लनगर के एक मावा उत्पादक नाथूलाल डांगी ने बताया कि त्योहारी सीजन में फुर्सत ही नहीं मिलती थी। इस समय इतनी खपत थी कि एक-एक उत्पादक दो से तीन भट्टियां लगाने पर मांग की पूर्ति नहीं कर पा रहा है। लेकिन कोरोना ने ऐसे हाल कर दिए कि कइयों ने उत्पादन बंद कर दिया तो कुछ बहुत कम बना रहे है।

मावा व्यवसायी ने बताया कि त्योहारी सीजन में भी धंधा बिल्कुल मंदा है। बहुत कम लोग मावा ले जा रहे हैं। मिठाई के जो दुकानदार है, वहां से भी कम डिमांड आ रही है।

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