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फैसला आते-आते उठ गए कई जनाजे, आया तो उड़ गए होश, जानें पूरी कहानी

locationउदयपुरPublished: Apr 28, 2019 11:03:51 am

Submitted by:

Mohammed illiyas

तीस वर्ष जिस हक के फैसले की राह तकी, उसका निर्णय आते-आते न केवल कई जनाजे उठ गए बल्कि जो जीवित थे उनके होश उड़ गए।

मोहम्मद इलियास/उदयपुर . तीस वर्ष जिस हक के फैसले की राह तकी, उसका निर्णय आते-आते न केवल कई जनाजे उठ गए बल्कि जो जीवित थे उनके होश उड़ गए। मामला शहर के बीचोंबीच हाथीपोल क्षेत्र में स्थित बेशकीमती सम्पत्ति का है जिस पर बने मर्दाना व जनाना ढूंढ़े को सिलावटान समाज ने अपना बताते हुए वहां अतिक्रमी को पाबंद करने का वाद दायर किया था।
पत्रावली पर मिले साक्ष्य व दस्तावेजों के आधार पर सिविल न्यायालय शहर उत्तर के पीठासीन अधिकारी रूपेन्द्र चौहान ने सम्पत्ति को निगम की मानी तथा वाद को आंशिक स्वीकार करते हुए अतिक्रमी को पाबंद किया तो वह अगर मकान की दीवार विवादित स्थल की तरफ बनाने से पहले सक्षम अधिकारी से स्वीकृति प्राप्त करेगा। न्यायालय ने यह निर्णय सिलावटवाड़ी निवासी मोइनुद्दीन, अय्याज व 22 अन्य समाजजनों की ओर से अली मोहम्मद वहीदुद्दीन, जमालुद्दीन तथा नगर परिषद जरिये आयुक्त की ओर से दायर वाद में दिया था। समाज के प्रतिनिधियों ने यह वाद 10 जून 1988 को विपक्षियों को स्थायी निषेधाज्ञा से पाबंद करने के लिए दायर किया था।
समाज ने रखा अपना पक्ष
वादियों का कहना था कि पंच सिलावटान के आधिपत्य का एक बाड़ा है, जहां पर मर्दाना व जनाना ढूंढा बना हुआ है। पूर्व में यह शौच के काम आ रहा था। घरों में शौचालय बनने से इसका उपयोग कम हो गया। समाज ने 19 मार्च 1958 को खालसा ऑफिसर से एक पट्टा प्राप्त कर उसकी रकम भी जमा करवाई, तब से समाज का इस सम्पत्ति पर कब्जा है। प्लॉट के पूर्व में वहीदुद्दीन व सिराज के दो मंजिला मकान हैं। इन मकान के पूर्व दिशा में इनके रास्ते हैं, लेकिन ये लोग प्लॉट की तरफ दीवार गिराकर रास्ता निकाल कर दरवाजा लगा रहे हैं। प्रतिवादी नगर निगम में नौकर है और उसने वहां से स्वीकृति भी नहीं ली। इस सम्पत्ति को समाज का हर व्यक्ति काम में ले रहा है। रास्ता निकालने एवं निर्माण कराने का प्रतिवादी को कोई अधिकार नहीं है। विपक्षी ने जवाब दिया कि यह भूखंड सिलावटान का नहीं होकर सार्वजनिक स्थल है, यहां पर रोडी बनाकर लोग कचरा डाल रहे हैं। नगर निगम ने यहां पर सार्वजनिक शौचालय बना रखा है। इस परिसर के आसपास क ई लोगों के 200 साल पुराने मकान हैं जिन्होंने खिडक़ी, जाले, छज्जे सब निकाल रखे हैं।

निगम ने जवाब दिया कि यह विवादित स्थल सिलावटान का न होकर उसका है। निगम ने स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए इस पर शौचालय की व्यवस्था कर रखी है। सार्वजनिक ढूंढे पर किसी का कब्जा नहीं हो सकता है। नगर निगम के स्वामित्व का ढूंढा है जिसे निगम सार्वजनिक हित में अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकती है। समाज के पास कोई दस्तावेज नहीं है। खालसा ऑफिसर का जो असल पट्टा पेश किया लेकिन संपत्ति का मालिकाना हक पेश करना आवश्यक है। खालसा पट्टा 1958 का है जिसका आदेश अपूर्ण है क्योंकि जिला कलक्टर से उसकी स्वीकृति प्राप्त ही नहीं की गई, ना ही पट्टे के लिए कोई राशि जमा की गई। अगर यहां नगर निगम की स्वीकृति के बिना निर्माण करवाया जा रहा है तो उसके विरूद्ध राजस्थान अधिनियम 1959 की धारा 170 के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी। जो दीवार वहां बनी हुई है, उसे विपक्षी गिरा नहीं सकता है। निगम अपनी संपत्ति पर किसी को भी अतिक्रमी नहीं बनने देगा।
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