यह हाल शहर के राजकीय प्राथमिक विद्यालय, रामपुरा का। राजस्थान पत्रिका की टीम शनिवार को जब इस स्कूल की पड़ताल पर पहुंची तो दोपहर 12.10 ही वहां ताले लटके मिले जबकि छुट्टी का समय एक बजे है। पड़ोसियों से पूछा तो वे भी हंस पड़े और बोले कि बच्चे सडक़ों पर भीख मांग रहे होंगे मास्साब घर पर होंगे। पत्रिका टीम जब विद्यालय के उन बच्चों तक पहुंची तो वे देखते ही भागने लगे। दो बच्चे लारी में कबाड़ी का सामान भरकर खींचते नजर आए तो कुछ कमंडल लेकर बाजार में भीख मांगते दिखे।
— बच्चे बोले-नशे में आते हैं सर
लारी खींचते इस स्कूल के तीसरी कक्षा के बच्चे से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि 12 बजे ही छुट्टी कर मैडम घर चली गई। सर तो आते ही चले गए, वैसे वे तो आधे टाइम नशे में रहते हैं। बच्चों की इस बेबाक बात पर वहां खड़े एक युवक ने भी स्कूल की पोल खोल दी। उसका कहना था कि खाली नाम का स्कूल है, स्टॉफ मुफ्त की तनख्वाह ले रहा है। स्कूल के बच्चे पढ़ाई के टाइम सडक़ों पर भीख मांगते हैं। महीने में कई दिन गायब रहते हैं फिर भी स्कूल का स्टॉफ कुछ नहीं करता है क्योंकि इसमें उनकी मौज है।
लारी खींचते इस स्कूल के तीसरी कक्षा के बच्चे से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि 12 बजे ही छुट्टी कर मैडम घर चली गई। सर तो आते ही चले गए, वैसे वे तो आधे टाइम नशे में रहते हैं। बच्चों की इस बेबाक बात पर वहां खड़े एक युवक ने भी स्कूल की पोल खोल दी। उसका कहना था कि खाली नाम का स्कूल है, स्टॉफ मुफ्त की तनख्वाह ले रहा है। स्कूल के बच्चे पढ़ाई के टाइम सडक़ों पर भीख मांगते हैं। महीने में कई दिन गायब रहते हैं फिर भी स्कूल का स्टॉफ कुछ नहीं करता है क्योंकि इसमें उनकी मौज है।
— 53 का नामांकन 16 की उपस्थिति
विद्यालय में महज 53 बच्चों का नामांकन है। रंगास्वामी, नाथ, कालबेलिया और आदिवासी समाज के गरीब बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। विद्यालय में एक प्रधानाध्यापक, एक अध्यापिका व सहायिका है। इन सभी को भारी-भरकम वेतन मिलता है लेकिन बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखने में और बच्चों को भिक्षावृत्ति से रोकने में इनका कोई योगदान नजर नहीं आता है।
विद्यालय में महज 53 बच्चों का नामांकन है। रंगास्वामी, नाथ, कालबेलिया और आदिवासी समाज के गरीब बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। विद्यालय में एक प्रधानाध्यापक, एक अध्यापिका व सहायिका है। इन सभी को भारी-भरकम वेतन मिलता है लेकिन बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखने में और बच्चों को भिक्षावृत्ति से रोकने में इनका कोई योगदान नजर नहीं आता है।
— अध्यापिका बोली हम क्या करे?
स्कूल पर ताला लगा देखकर मौके से ही 12.10 से 1 बजे के बीच प्रधानाध्यापक अशोक सुथार को कई कॉल किए तो उसने कॉल नहीं उठाया। अध्यापिका वर्षा शर्मा से बातचीत की तो उसने खुद ही 12.20 बजे स्कूल से घर आने की बात कही जबकि छुट्टी का टाइम एक बजे का था। उसने माना कि स्कूल के बच्चे भिक्षावृत्ति से जुड़े हुए हैं। शनिवार व मंगलवार के अलावा खास दिनों में वे छुट्टी मार जाते हैं, हम भी क्या करें?
स्कूल पर ताला लगा देखकर मौके से ही 12.10 से 1 बजे के बीच प्रधानाध्यापक अशोक सुथार को कई कॉल किए तो उसने कॉल नहीं उठाया। अध्यापिका वर्षा शर्मा से बातचीत की तो उसने खुद ही 12.20 बजे स्कूल से घर आने की बात कही जबकि छुट्टी का टाइम एक बजे का था। उसने माना कि स्कूल के बच्चे भिक्षावृत्ति से जुड़े हुए हैं। शनिवार व मंगलवार के अलावा खास दिनों में वे छुट्टी मार जाते हैं, हम भी क्या करें?
— बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं और भिक्षावृति से जुड़े हैं तो यह गंभीर मामला है। बच्चों को स्कूल से जोड़े रखने की पूरी जिम्मेदारी स्टॉफ की है लेकिन वे खुद भी जल्दी छुट्टी कर भाग रहे तो इनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। जरूरत हुई तो वहां से मौजूदा स्टॉफ हटाया जाएगा।
भरत मेहता, संयुक्त निदेशक स्कूल शिक्षा उदयपुर