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मां मुझे पढऩा है… मैं नहीं बीनूंगी सडक़ से कूड़ा-कचरा

locationउदयपुरPublished: Jan 28, 2020 12:50:49 pm

Submitted by:

Mohammed illiyas

मां मुझे पढऩा है… मैं नहीं बीनूंगी सडक़ से कूड़ा-कचरा

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मोहम्मद इलियास/उदयपुर
‘मां मुझे पढऩा है, मैं नहीं बीनूंगी कूड़ा-कचरा। तुझसे एक पैसा भी नहीं लूंगी, बस तू मुझे स्कूल भेजती रहना।’ पढ़ाई के लिए बच्ची की चाह को देख मां ने उसकी इच्छा को पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। छह बच्चों के लालन-पोषण व तमाम मुश्किलों के बावजूद वह बच्ची को स्कूल की दहलीज चढ़ा रही है, लेकिन बच्ची उसी के डेरे के लोगों की ओर से दिए जाने वाले ताने के कारण डरी व सहमी हुई है। वह कहती है मैं पढ़ लिखकर कुछ करना चाहती हूं, मुझे बस स्कूल ही जाना है। स्कूल में सब कुछ मिलने के बावजूद समाज का कोई नहीं पढ़ता, सभी बस चूल्हा चौंके के अलावा कूड़ा-कचरा बीनने का दबाव बनाते हैं।यहां जिक्र कर रहे हैं कालबेलिया समाज की कक्षा सात में पढऩी वाली १२ साल की दीपिका (बदला हुआ नाम) का। दीपिका अपने छह भाई-बहनों से चौथे नम्बर की है। उससे बड़ी दो बहनों का झामरकोटड़ा में विवाह हो गया। एक बड़ी बहन व एक छोटी बहन के अलावा वह इकलौते भाई के साथ रामपुरा स्थित डेरे में रहती है। छोटे भाई बहन को छोड़ मां सहित सभी जने कूड़ा-कचरा बीनकर पेट पालते हैं। उसके पिता दूसरी मां के साथ राजसमंद रहता है, जो कभी-कभार आकर ताने मारते हुए मारपीट करता है।– रोज मिलते हंै ताने, फिर भी हंसती है वहदीपिका का कहना है कि उसकी हमउम्र की सभी बालिकाएं अपने-अपने घर की महिलाओं के साथ तडक़े पांच बजे कंधे पर प्लास्टिक का थैला लटकाकर शहर की अलग-अलग गलियों में कूड़ा-कचरा बीनने के लिए निकलती है। इस कचरे के ढेर में प्लास्टिक, लोहा व कबाड़ ढूंढक़र लाती है। कबाड़ को बेचने पर ही उनका पेट भरता है। डेरे से एक साथ इन बालिकाओं को देखकर हर कोई उसे भी साथ जाने के लिए कहता है। मना करने पर स्कूल जाने के दौरान ताने मारते हैं। इन सब तानों को दरकिनार कर यह बच्ची अभी अकेली रामपुरा संस्कृत स्कूल जाती है। अध्यापक भी उसकी पढ़ाई में ललक को देखकर उसकी पूरी मदद करते हैं। स्कूल नहीं आने पर बराबर उसके बारे में पूछताछ करते हैं।– मां के जेल जाने पर दो दिन नहीं खाया खानाबच्ची का कहना है कि कूड़ा-कचरा उठाने के दौरान कई बार तो पुलिस उनके डेरों पर छापा मारती है। एक बार सिर्फ मां के लोहे का सामान लाने पर उसे जेल भेज दिया गया। चार दिन अंदर रहने के दौरान उसने दो दिन तक खाना भी नहीं खाया। मां जब डेरे पर लौटी तो उसने टोका तो वह भी बच्ची को गले लगाकर रो पड़ी।

१२ साल की यह बच्ची अपने समाज की इकलौती बच्ची है, जो स्कूल आती है। इसकी हमउम्र व छोटे बच्चों का स्कूलों में दाखिला भी है लेकिन वे अक्सर गायब रहते हैं। यह बच्ची पढ़ाई में काफी होनहार है और हर बार वह आगे पढऩे के लिए कहती है।
शीला शर्मा, प्राचार्य,संस्कृत विद्यालय, रामपुरा
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