मैं बड़ा हूं मुझे कमाने दो साब… नहीं तो भाई-बहन मर जाएंगें भूखे
उदयपुरPublished: Oct 21, 2019 01:33:04 pm
मैं बड़ा हूं मुझे कमाने दो साब… नहीं तो भाई-बहन मर जाएंगें भूखे
मोहम्मद इलियास/उदयपुर
साब! मैं 16 साल का हूं। पिता नहीं है, सभी भाई-बहन छोटे है। मैं नहीं कमाऊंगा तो परिवार का पेट कौन भरेगा, मेरी मजबूरी है। जिम्मेदारी के चलते नवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी, मुझे कमाने दो…। यह पीड़ा उस गरीब की है, जिसे दो दिन पहले पुलिस ने बाल श्रमिक के लिए चलाए ‘आशा अभियान’ के तहत पकड़ा था। पुलिस ने जब इस बालक को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया तो उनके समक्ष भी रोता बिलखता रहा। उसे पकड़ में आने से ज्यादा दुख उसके भाई-बहन का था और वह बार-बार एक ही बात कह रहा था कि मैं नहीं कमाऊंगा तो उन्हें निवाला कौन करेगा। यह जिम्मेदारी भरी पीड़ा कागमदारड़ा खमनोर निवासी देवीसिंह पुत्र वदनसिंह की थी। जिसे सुनकर उसे पकडऩे वाली टीम व सीडब्ल्यूसी सदस्य अवाक रह गए। इस बालक की पीड़ा गरीबी के साथ ही अभियान के नाम पर की जाने वाली इस खानापूर्ति की भी पोल दी जिसमें मुक्त करवाए जाने वाले बालश्रमिकों के लिए सिर्फ धरपकड़ के अलावा आगे कोई काम नहीं हुआ।
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दो केस और बने सभी बच्चे 14 से 16 के बीच
मानव तस्करी के विरोधी यूनिट के सीआई श्यामसिंह, कांस्टेबल भानूप्रताप सिंह, आसरा विकास संस्थान के संस्थापक भोजराजसिंह ने गुरुवार को ऑपरेशन आशा के तहत सुखेर स्थित लक्ष्मी भोजनालय से तीन बाल श्रमिक मोखी गोगुन्दा निवासी लालाराम पुत्र लोजाराम दाहिमा, नाला मोखी निवासी सुखा पुत्र भग्गा गमेती व बंशी पुत्र सवा गमेती को मुक्त करवाया। तीनों बाल श्रमिकों ने बताया कि वह यहां पर सुबह 9 से रात 10 बजे तक रोटी बनाने, खाना परोसने व बर्तन धोने का काम करते है। उन्हें मासिक चार हजार रुपए तनख्वाह मिलती है। टीम ने भोजनालय मालिक सुखेर निवासी मोहन पुत्र नंदा डांगी के खिलाफ मामला दर्ज किया। इसी तरह चीरवा मार्ग पर अम्बेरी स्थित केजीएन बैट्री एंड इलेक्ट्रीकल्स पर गरीब नवाज कॉलोनी निवासी अब्दुल मुस्तफा पुत्र गुलाम नबी को मुक्त करवाया। पूछताछ में बालक ने एक माह से ही दुकान पर साफ सफाई व बेट्री का काम करना बताया। टीम ने दुकान मालिक मोहम्मद अशफाक पुत्र सद्दीक खां के विरुद्ध मामला दर्ज किया। इसी तरह दो दिन पूर्व अम्बामाता थानाक्षेत्र में भी तीन बालश्रमिकों को मुक्त करवाया गया।
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अम्बामाता क्षेत्र में पकड़ में आए बाल श्रमिक ने अपने परिवार की मजबूरी बताते रोने लगा था। एक बार उसे समझाइश कर घर भेजा गया।बी.के.गुप्ता, बाल कल्याण समिति सदस्य