वन विभाग ने सुझाव दिया कि विभाग ने शहर के आसपास जो पार्क विकसित किए है उसी तरह इस पार्क को विकसित किया जाए, इसमें वन विभाग की वन सुरक्षा एवं प्रबंध समितियों की मदद भी ली सकती है।
पानी की टंकी तो बनेगी पर जमीन का सीमांकन होगा
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में वहां पर पानी की टंकी बनाने का कार्य हो रहा था, वन विभाग ने इसको लेकर कई आपत्तियां जता रखी थी। विभाग का कहना था कि वर्ष .1970 में 112 बीघा जमीन जलदाय विभाग को दी गई थी, यह जमीन वहां पर पानी की टंकी, कार्यालय बनाने के लिए दी थी। विभाग की आपत्ति थी कि जो भी निर्माण किया जा रहा है उससे पहले जमीन का सीमांकन किया जाए क्योंकि वन विभाग की पास की जमीन पर कोई निर्माण नहीं हो जाए। इस विवाद का संभागीय आयुक्त देथा ने निर्णय करते हुए निर्देश दिया कि जो जमीन आवंटित की वहां टंकी बनाई जाए लेनिक वन विभाग, स्मार्ट सिटी कंपनी व नगर निगम के अफसर साथ बैठकर ही इस कार्य को आगे बढ़ाए। साथ ही उन्होंने वन विभाग और अन्य विभाग साथ रहकर जमीन का सीमांकन करने के भी निर्देश दिए। बैठक में जिला कलक्टर आनंदी, यूआईटी सचिव उज्ज्वल राठौड़, स्मार्ट सिटी सीईओ कमर चौधरी, नगर निगम आयुक्त ओपी बुनकर, मुख्य वन संरक्षक आईपीएस मथारू, उप वन संरक्षक अजय चित्तौड़ा (दक्षिण) आदि उपस्थित थे।
डीसी सर, दूसरे पार्कोँ में भी बंद कराओ दुकानें
इधर, पर्यावरण प्रेमियों और कांग्रेस ने इस निर्णय का स्वागत किया लेकिन साथ के साथ संभागीय आयुक्त से यह भी आग्रह किया कि शहर में स्थित पार्कों में जो अन्य गविविधियां और दुकानें चल रही है उसको बंद करवाया जाए। जिन पार्कों का दूसर उपयोग में लिया जा रहा है उनको चिन्ह्ति कर बंद कराया जाए।
पत्रिका व्यू…..अफसर ऐसे गुमराह नहीं करें, अब निकले ऑफिस से
स्मार्ट सिटी का माणिक्यलाल वर्मा पार्क में एडवेंचर जोन के रूप में विकसित करने का जो अनुबंध तैयार किया गया उसमें ब्रांडेड आउटलेट का साफ उल्लेख था लेकिन अफसर गुमराह कर रहे थे कि ऐसा नहीं था। स्मार्ट सिटी कंपनी ने 2018-19/04 क्रमांक की जो एनआईटी 26 जुलाई 2018 को निकाली थी उसमें स्कॉप ऑफ वर्क के बिन्दु संख्या 1.7.8 पृष्ठ संख्या 77 पर साफ अंकित कर रख था कि संबंधित फर्म पांच अतिरिक्त कियोस्क ब्राडेंड आउटलेट (दो राज्यों के दो बड़े शहरों में हो) को ऑपरेट करेगा। पत्रिका ने खबर छापी तो अफसरों ने यह जरूर जवाब दिए कि ऐसा कोई प्लान नहीं है, अगर वास्तव में वह बोल रहे वह सच था तो वह इसकी सच्चाई अपने हस्ताक्षर से जारी कर बताते। सवाल यह था कि अगर ऐसा कुछ नहीं था तो उसे एनआईटी में शामिल ही क्यों किया जब हाईकोर्ट ने साफ शब्दों में कह दिया था कि पार्कों में व्यवसायिक गतिविधियां नहीं होगी। पत्रिका की खबर के बाद शहर में जनता ने सवाल उठाए, कांग्रेस ने आंदोलन का मन बनाया और सब तरफ थू-थू होने लगी तब मन ही मन उनको भी लगा कि गलत कर लिया लेकिन अपने ही फैसले को वे गलत कैसे कहेंगे। बरहाल अफसर हो या चुने हुए जनप्रतिनिधि सबको ऑक्सीजन पॉकेट वाले जंगल व पार्कों को तो बचाने के लिए आगे आना चाहिए। संभागीय आयुक्त के निर्देश ने ऑक्सीजन पॉकेट को भी ऑक्सीजन मिला है। अब जरूरत है कि शहर के जिन पार्कों में जो भी दूसरी गतिविधियां चल रही है उस पर भी अभियान चलाकर बचाया जाए, अफसरों को ऑफिस छोड़कर ऐसे पार्कों से व्यवसायिक गतिविधियां बंद करवा कर उन पार्कों में ऑक्सीजन देने वाले पौधे लगाए और कॉलोनी-समितियां उनको बचाए।