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उदयपुर के इन आदिवासी इलाकों की बच्चियों ने पेश की मिसाल, अपनी जिन्दगी का ऐसा सफरनामा लिखा कि सभी के लिए बन गई प्रेरणास्त्रोत

locationउदयपुरPublished: Mar 09, 2018 04:37:23 pm

Submitted by:

madhulika singh

उदयपुर – आदिवासी बहुल इलाकों की गरीब बच्चियों ने जिंदगी का ऐसा सफरनामा लिख डाला वे आज खुद अपने पैरों पर खड़ी होकर अन्य के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई।

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उदयपुर – आदिवासी बहुल इलाकों की निराश्रित व गरीब बच्चियों ने कांटों भरी डगर में जिंदगी का ऐसा सफरनामा लिख डाला वे आज खुद अपने पैरों पर खड़ी होकर अन्य के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई। किसी के बचपन में मां-बाप गुजर गए तो किसी के पिता की मौत के बाद मां नाते चली गई थी। किसी के मां-बाप जेल में है तो किसी का अता-पता नहीं।
कुछ तो गांव में स्कूल में शिक्षा पूरी नहीं होने पर यहां आ गई। ऐसी निराश्रित व होनहार बच्चियों को महिला मंडल के निराश्रितगृह का कस्तूरबा छात्रावास प्रबंधन ने आश्रय देते हुए पढ़ा-लिखा कर ऐसा सक्षम बनाया कि कई बच्चियां बालिग होने के बाद सरकारी निजी संस्थानों में नौकरी में चली गई। कुछ पुलिस में है तो कुछ नर्सिंग कर्मी बनकर लोगों को इलाज कर रही है इतना ही नहीं कुछ सरकारी स्कूलों में अध्यापिका भी है। यह बच्चियां संस्थान में आने वाली निराश्रित व गरीब नई बच्चियां के लिए प्रेरणास्त्रोत बन रही है।

राजस्थान पत्रिका टीम ने महिला दिवस पर निराश्रित गृह व कस्तूरबा छात्रावास को टटोला तो यहां से निकली कई बच्चियों के दर्द भरी दास्तां के बीच सक्षम बनने की कहानी सामने आई। बचपन ने अपनों को खोने के बाद निराश्रित गृह में पहुंची कुछ बच्चियां तो संस्थान को ही अपना घर व स्टॉफ को मां-बाप समझकर आज भी यहां मिलने आती है। संस्थान के अर्जिता पण्ड्या ने बताया कि अभी वर्तमान सीडब्ल्यूसी के माध्यम से लगातार निराश्रित बच्चियां संस्थान में आ रही है। वर्तमान में संभाग की 58 निराश्रित बच्चियां उनके पास है तो कस्तूरबा छात्रावास में 50 से ज्यादा गरीब बच्चियां अध्यनरत है।

घर की छत्रछाया मिली : निराश्रितगृह व छात्रावास में अधिकांश संभाग की आदिवासी बहुल इलाके की बच्चियां होने से वे आपस में इतनी हिल मिल गई कि उन्हें अपनों की कभी याद नहीं आई। यहां का स्टॉफ इनके मां-बाप बनकर इनके साथ रहते है। अध्ययन के साथ-साथ बच्चियों को वे खेल, जॉब व अन्य तरीके की जानकारियां देते है। बचपन में मां-बाप के प्यार से महरूम हो गई थीं तो घर और अपनों के प्यार से अनजान थीं। ऐसी बेटियों को संस्थान में घर की छत्रछाया मिली बल्कि अपनों का भरपूर प्यार-दुलार भी मिला।

पुलिस सेवा में जाने के बाद कई बच्चियों को यहां लाई
कस्तूरबा छात्रावास में पढ़ी महिला कांस्टेबल सुमित्रा रोत ने बताया कि उसके गांव मोथली (खेरवाड़ा) में बालिका के लिए अलग से कोई स्कूल नहीं होने पर वह कक्षा 9 में यहां महिला मंडल छात्रावास में आ गई। यहां 12वीं तक पढऩे के बाद कॉलेज में प्रवेश लिया। उसी समय पुलिस भर्ती में आवेदन भरा तो उसका चयन हो गया।
सुमित्रा का कहना है कि उसके निराश्रित भी कई लड़कियां स्कूल में पढ़ी। आज सभी अलग-अलग जॉब में है। पुलिस सेवा में आने के बाद वह गांव से कई लड़कियों को लाकर उसने यहां प्रवेश दिलवाया।
एक का विवाह भी करवाया : संस्थान ने एक निराश्रित बालिका को पढ़ा लिखा कर समक्ष कर उसका ब्याह भी रचाया। आज यह बालिका अपना मायका समझकर संस्थान में यदा-कदा मिलने आती है।
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