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उदयपुर में यूआईटी की सबसे बड़ी कार्रवाई, पचास करोड़ की बेशकीमती जमीन से हटाया कब्जा

locationउदयपुरPublished: Feb 08, 2018 07:47:14 am

Submitted by:

Jyoti Jain

-यूआईटी ने शहर की जग प्रसिद्ध फतहसागर झील के किनारे करीब पचास करोड़ रुपए की बेशकीमती जमीन पर बुधवार को कार्रवाई करते हुए अतिक्रमण हटाया

UIT's biggest operation in Udaipur
उदयपुर . यूआईटी ने शहर की जग प्रसिद्ध फतहसागर झील के किनारे करीब पचास करोड़ रुपए की बेशकीमती जमीन पर बुधवार को कार्रवाई करते हुए अतिक्रमण हटाया। खास बात यह है कि ग्राम न्यायालय में चल रहे मामले में इस जमीन की कीमत मात्र 800 रुपए बताई गई थी।
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यूआईटी ने रानी रोड पर राजीव गांधी पार्क से सटे और हवाला गांव की सडक़ के पास से सुबह ऑपरेशन शुरू किया। इस जमीन पर बने कच्चे-पक्के निर्माण को ध्वस्त किया। मौके की स्थिति से वहां पर रिसोर्ट और मांगलिक आयोजनों को लेकर वाटिका बनाई जा रही थी। कार्रवाई के दौरान जमीन पर दावा करने वाले के परिवार ने विरोध जताते हुए कहा कि यूआईटी ग्राम न्यायालय की अवहेलना कर रही है।
जवाब में यूआईटी सचिव रामनिवास मेहता ने कहा कि यूआईटी ने पूरी कार्रवाई विधिक प्रक्रिया अपनाने के बाद ही की है। मोड़ा पुत्र काना भील निवासी हवाला खुर्द ने ग्राम न्यायालय दावा पेश किया था जिस पर कोर्ट ने 16 सितम्बर 2017 को दोनों पक्षों के लिए यथास्थिति के आदेश दिए थे लेकिन इसके बाद से इस भूमि पर मोड़ा भील की आड़ में शहर के भू व्यवसायियों ने इस खसरे की पुरानी आबादी को छोड़ते हुए शेष भूमि पौने पांच बीघा भूमि में से 61757 वर्गफीट (सवा दो बीघा) पहाड़ी भूमि को नए सिरे से काटकर समतल करते हुए चारदीवारी बनाई एवं फतहसागर झील से सटे हिस्से में ट्यूबवेल लगाकर इस राजकीय भूमि पर रिसोर्ट निर्माण का प्रयास किया। मेहता ने बताया कि फतहसागर पाल पर सैर करने आने वाले कई शहरवासियों ने इस अवैध रिसोर्ट निर्माण को लेकर यूआईटी, कलक्टर, तहसील सहित कई स्थानों पर शिकायतें की।
मोड़ा के दावे में ये दिए साक्ष्य
हवाला खुर्द की भूमि खसरा नम्बर 1183, 1184 एवं 1185 जिसका कुल रकबा साढ़े पन्द्रह बीघा है, इसमें से मोड़ा पुत्र काना भील निवासी हवालाखुर्द ने ग्राम न्यायालय उदयपुर में एक दावा सितम्बर 2017 में किया जिसमें कहा कि उसका परिवार गत चार पीढिय़ों से खसरा नम्बर 1183 की 61757 वर्गफीट भूमि पर निवासरत है, इसका प्रमाण भाटो की बहियां हैं। दावे में बताया कि इस भूमि पर 100 अन्य व्यक्ति भी निवासरत हैं, परन्तु इसके बावजूद नगर विकास प्रन्यास उसका घर तोडऩे पर उतारू है। पटवारी बड़ी ने उसके पुश्तैनी कब्जे का अंकन भी रिपोर्ट में कर रखा है एवं एडवर्स पजेशन से वह इस सरकारी भूमि का मालिक हो चुका है एवं ग्राम पंचायत बड़ी से राशन कार्ड आदि भी बना रखे है।
बेवजह परेशान करने का आरोप
मोड़ा के परिजनों का आरोप है कि उनके पास ग्राम पंचायत, पटवारी की रिपोर्ट और बिजली के बिल हैं। बरसों पुरानी जमीन पर उनका कब्जा है लेकिन यूआईटी ने बेवजह कार्रवाई की। परिजनों ने यूआईटी पर ग्राम न्यायालय के
स्टे की अवमानना के आरोप भी लगाए।
ग्रीन व इको सेंसिटिव जोन में निर्माण
मेहता ने बताया कि खसरा नम्बर 1183 के न्यायालय में बताए गए क्षेत्र 61757 वर्गफीट क्षेत्र में निवासरत मोडा एवं उसके परिजन एवं अन्य आदिवासियों के आवासों को क्षति पहुंचाए बिना अवैध रिसोर्ट के निर्माण के प्रयासों को विफल किया है। उन्होंने बताया कि यह भूमि थूर मगरा नामक वन भूमि से सटी होकर प्रभावी मास्टर प्लान के अनुसार भू-उपयोग ग्रीन जोन हैं।
यह फतहसागर के निर्माण निषेध क्षेत्र में होने के साथ ही सज्जनगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (इकोसेंसिटीव जोन) में भी अधिसूचित है। साथ ही राजस्थान उच्च न्यायालय के राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी बनाम सरकार जनहित याचिका में दिए आदेश के तहत इस भूमि का उपयोग पौधरोपण एवं खुला स्थान के अतिरिक्त संभव ही नहीं है।
कलक्टर के निर्देश पर कार्रवाई
जिला कलक्टर ने 3 जनवरी 2018 को उप वन संरक्षक (उत्तर) को इस भूमि को थूर मगरी की वन भूमि की सुरक्षित कर वन खाते दर्ज करने के लिए विभाग के इस आशय की सहमति चाही थी, लेकिन वन विभाग ने इस भूमि पर ताजा अतिक्रमण का हवाला देकर सहमति से इनकार कर दिया। इस पर जिला कलक्टर ने इसकी सुरक्षा के लिए यूआईटी यह भूमि सुपुर्द की।
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