घाव हो जाते हैं हरे
उदयपुरPublished: Jan 23, 2016 12:32:00 pm
कई मर्तबा लोग आते हैं… सम्मान करते हैं… कार्यक्रमों में बुलाते भी
हैं… मलाल ये कि इनसे मुश्किलें कम नहीं हुई। शहीद की एक मात्र वंशज हूं,
फिर भी सेना केंटीन का कार्ड तक नहीं। घर टूटा पड़ा है। फक्र है कि देवर
रफीक खां ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर किए। लेकिन परिस्थितियां कई बार रुला देती है
भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद
बांग्लादेश क्षेत्र में दिया था अदम्य साहस का परिचय
महज 23 साल
की उम्र में युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देते हुए
शहीद होने वाले रफीक खां अविवाहित थे। रफीक को वीर चक्र से भी नवाजा गया था।
कई मर्तबा लोग आते हैं… सम्मान करते हैं… कार्यक्रमों में बुलाते भी हैं… मलाल ये कि इनसे मुश्किलें कम नहीं हुई। शहीद की एक मात्र वंशज हूं, फिर भी सेना केंटीन का कार्ड तक नहीं। घर टूटा पड़ा है।
फक्र है कि देवर रफीक खां ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर किए। लेकिन परिस्थितियां कई बार रुला देती है।
लोग आते हैं तो घाव फिर हरे हो जाते हैं। यह कहना है वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में
शहीद हुए बीकानेर के रफीक खां की भाभी रजिया का।
शहीद रफीक खां की एकमात्र वंशज है उसकी भाभी रजिया। महज 23 साल की उम्र में युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देते हुए शहीद होने वाले रफीक खां अविवाहित थे।
रफीक को वीर चक्र से भी नवाजा गया था। शहीद रफीक की माता और भाई फेज मोहम्मद का भी इंतकाल हो गया।
देवर की शहादत और पति की मौत के बाद रजिया टूट-सी गई थी। किसी तरह हिम्मत जुटाकर अपनी पांच बेटियों को पाला-पोषा। बेटियों के विवाह भी किए।
शहीद के नाम स्मारक नहीं
रफीक खां के निकट संबंधी सरीफ समेजा कहते हैं शहीद के नाम पर स्मारक नहीं बना। इसके लिए जिला प्रशासन से कई बार अनुरोध किया, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ।
हालांकि प्रतिपक्ष नेता जावेद पडि़हार बताते हैं कि शहीद के नाम पर सड़क का नामकरण करवाया था।