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इस ज्ञान से हम हो जाएँगे सफल : आज़मा कर देखिए

locationउदयपुरPublished: Jan 21, 2019 09:25:43 am

Submitted by:

Bhuvnesh

राजस्थान विद्यापीठ डिम्ड टू बी विश्वविद्यालय एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली

राजस्थान विद्यापीठ डिम्ड टू बी विश्वविद्यालय एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली

राजस्थान विद्यापीठ डिम्ड टू बी विश्वविद्यालय एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली

भुवनेश पण्ड्या

उदयपुर. पांचवीं और छठी शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय में ऐसा क्या था कि वहां दुनियाभर से विद्यार्थी पढ़ने आते थे। ऐसे रोल मॉडल आज हमें क्यों नहीं दिखाई देते। शिक्षा का वह कौनसा स्तर था जिसे हम उस सदी में पा गए थे लेकिन उसकी पुर्नप्राप्ति के लिए आज तक संघर्ष कर रहे है। तब के प्रतीकों से आज की तुलना करने पर हम पाते हैं कि ह्वेनसांग जैसे जिज्ञासु विद्यार्थी क्या आज कहीं मिल सकते हैं जो चीन से हजारों किलोमीटर की कठिन यात्रा कर सिर्फ ज्ञान प्राप्त करने नालंदा आया था। क्या आज शीलभद्र जैसे शिक्षक कहीं मिल सकते हैं कि जिन्होंने बीमार होते हुए भी ह्वेनसांग जैसे शिष्य को आश्रय देकर उस पर ज्ञान का खजाना लुटा दिया। हम चिंतन करें कि क्या आज कोई ऐसा टीचर है? एडमिशन प्रोसेस को देखें तो क्या आज नालंदा जैसे गेटकीपर हैं जो छात्र को बहुत कठिन परीक्षा के बाद ही उच्च स्तरीय शोध में प्रवेश की अनुमति देते हैं? क्योंकि तब नालंदा के प्रमुख खुद विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर बैठा करते थे। तब भी शिक्षा मुुुपत थी, आज भी है मगर गुणवत्ता से समझौता क्यों हुआ? उक्त विचार राजस्थान विद्यापीठ डिम्ड टू बी विश्वविद्यालय एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के साझे में ‘‘इनटेएक्च्यमल हिस्टोरी एंड चेनजिंग रिलेटाईज- इंडिया इन 21 सेन्चुरी’’ विषय पर हुई नोर्थन रिजनल सोशल साइंस कांग्रेस के तीसरे व अंतिम दिन रविवार को समापन सत्र में साउथ एशियन यूनिवर्सिटी नई दिल्ली की प्रेसिडेंड प्रो कविता शर्मा ने व्यक्त किए।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति कर्नल प्रो. एस.एस सारंगदेवोत ने कहा कि हमारे देश का इतिहास समृद्ध है और हमें उसी इतिहास में अपने भविष्य की संभावनाओं को तलाश कर पूरे विश्व को दिशा दिखानी है। आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना के साथ ही देश का जो सांस्कृतिक एकीकरण किया उसी के बाद वृहद भारत का सपना साकार हो सका। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में जाकर पूरी दुनिया को बताया कि भारत सांप-बिच्छुओं और सपेरों का देश नहीं बल्कि ध्यानी-ज्ञानियों का देश है। यहां ज्ञान का निर्झर सदियों से अनवरत है। उसके बाद से दुनिया के लोगों ने हमारी संस्कृति के मूल्यों को अपनाना शुरू कर दिया। हमारी पहचान हमारी सभ्यता और संस्कृति है जिसके मूल में विज्ञान है तो आत्म तत्व में पूरा ब्रह्माण्ड समाहित है। हमें मानवीय मूल्यों पर चिंतन-मनन करते हुए उन्हें व्यावहारिक जीवन में उनकी पुनर्स्थापना का महता प्रयास करना है। श्रेष्ठ मानव, श्रेष्ठ अध्येता बनना है तथा सफलता के नए शिखरों पर पहुंचना है तो पुरातन मूल्यों को साथ लेकर चलना होगा। हम चिंतन करें कि क्या आज हम एक भी नालंदा जैसा विश्वविद्यालय बनाने की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं?
जेएनयू के रजिस्ट्रार डॉ प्रमोद कुमार ने कहा कि हमारे देश में मौलिक शोध के स्तर पर समुचित प्रयासों का अभाव दिखाई देता है। शिक्षाविद अधिक से अधिक गुणात्मक शोध पर जोर दें। डिग्री और रिसर्च के बीच का जो अंतराल है, उसे पूर्ण करने का प्रयास करें। जेएनयू में शैक्षणिक सत्र से पहले शिक्षक खुद अपना सिलेबस बनाते हैं और उसे संबंधित अथॉरिटी से पारित करवा कर पढाते है। इससे मौलिकता,जिज्ञासा और शोध की प्रवृत्ति का स्वतः विकास हो जाता है। दूसरे विश्वविद्यालय के शिक्षक भी अपना सिलेबस खुद तयकर सकते हैं।
पूर्णिया विश्वविद्यालय बिहार के वाइस चांसलर राजेश सिंह ने कहा कि तकनीकी रूप से समाज दिनोंदिन मजबूत हो रहा है। सामाजिक ढांचा बदल रहा है लेकिन लोग मानवता को भूल रहे हैं। प्राचीन भारतीय संस्कृति के मूल्यों का हमें संरक्षण कर उन्हें नए परिप्रेक्ष्य में अपनाना होगा। विशिष्ट अतिथि एनआरसी-आईसीएसएसआर के मानद निदेशक प्रो कोशल किशोर शर्मा ने कहा कि वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित भारतीय मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए सबको सामूहिक प्रयास करने होंगे। प्रोद्योगिकी के समय में वर्तमान समय विश्व में तेजी से परिवर्तन हो रहे है आज जीवन का दर्शन नए मूल्यों और दृष्टिकोण के संदर्भ में किया जा रहा है। इस कारण भारतीय समाज और संस्कृति की प्राचीन विशेषताए परिवर्तित हो रही है। और उनके स्थान पर नई विशेषताएं प्रतिस्थापना और परिलक्षित हो रही है। विशिष्ट अतिथि गोविन्द गुरू जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.कैलाश सोडानी ने कहा कि वर्तमान में हमे इतिहास से सीखने की महती आवश्यकता है। सन् 1947 में भारत, चीन और जापान एक साथ आजाद हुए थे चीन की इकोनोमी जहां 22 फीसदी हो चुकी है हम आज भी 2.5 फीसदी परही है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा वर्तमान परिपेक्ष में इस तरह की सेमिनार काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। जब हमें इतिहास को दौहराने की आवश्कताएं महसूस होती है जरूरी है हम हमारे पुरातन और ऐतिहासिक महत्व को नहीं भूले। समय समय पर उनका मूल्यांकन करते हुए आगे बढे ।
संचालन हीना खान ने किया व धन्यवाद जेएनयू के प्रो सुधीर प्रताप सिंह ने ज्ञापित किया। आयोजन सचिव डॉ युवराजसिंह राठौड ने बताया कि तीन दिवसीय सेमिनार में 90 तकनीकी सत्रों में 350 पत्रों का वाचन किया गया। उन्होंने बताया कि शोधपत्रों तथा विद्वानों के सुझावों के आधार पर प्रतिवेदन सरकार को भेजे जाएंगे तथा चयनित शोधपत्रों का प्रकाशन भी किया जाएगा। सेमिनार में देश के विभिन्न राज्यों के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, पूर्व कुलपति, विभागाध्यक्ष, शिक्षाविद्, शोधार्थी ने हिस्सा लिया
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