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फागोत्सव: इस बार फाल्गुन का रंग- श्रद्धा-भक्ति के संग, राजसमंद मंदिर में एक साथ होंगे चार धाम के दर्शन

locationअमेठीPublished: Mar 05, 2017 01:20:00 pm

Submitted by:

jyoti Jain

इस बार फाल्गुन रंग के रंग-गुलाल के साथ आमजन श्रद्धा-भक्ति व आनंद से सरोबार रहेंगे। क्योंकि राजसमंद में 5 मार्च के बाद श्री द्वारकाधीश प्रभु के साथ चार अन्य कृष्ण स्वरुपों के भी अलौकिक दर्शन होंगे।

इस बार फाल्गुन रंग के रंग-गुलाल के साथ आमजन श्रद्धा-भक्ति व आनंद से सरोबार रहेंगे। क्योंकि राजसमंद में 5 मार्च के बाद श्री द्वारकाधीश प्रभु के साथ चार अन्य कृष्ण स्वरुपों के भी अलौकिक दर्शन होंगे। विलास बाग से मंदिर तक ठाकुरजी की सवारी को लेकर चल रही तैयारियां अभी से उत्सवी दस्तक का अहसास करा रही है। ज्यों-ज्यों होली नजदीक आ रही है, त्यों त्यों कहीं खुशी, कहीं भक्ति, तो कहीं आनंद के रंग गहरा रहे हैं। पुरातन संस्कृति शृंखला की अनूठी कड़ी में फागोत्सव घर-घर धूमधाम से मनता है, मगर पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय के मंदिरों में फाग का महात्म्य कुछ अलग है। 
यहां दूर-दूर से आए श्रद्धालु कृष्ण भक्ति और आनंद रस में ऐसे सराबोर हो उठते हैं, मानो प्रभु से एकाकार हो गया हो। अब इस फाल्गुन में 5 मार्च से श्री द्वारकाधीश प्रभु, मथुरेश प्रभु के साथ लाडलेश और मदनमोहन भगवान के शृंगार, दर्शन, उत्सव और फाग गायन के अलौकिक नजारे आनंदित व आह्लादित करेंगे। 
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बृज संस्कृति की झलक 

राजसमंद में श्री द्वारिकाधीश के दर्शन की आतुरता में दूर-दूर से श्रद्धालु खींचे चले आते हैं और इस फाग महोत्सव के प्रति तो समूचे देशभर के लोगों का खास आकर्षण रहता है। बसंत पंचमी से प्रतिदिन राजभोग के दर्शन के वक्त मंदिर में फाग की गुलाल उड़ाई जाती है और इसी उत्सवी भाव से प्रभु का शृंगार, दर्शन और अन्य व्यवस्थाएं की जाती है। कीर्तनकार पूरे माह के दौरान फाल्गुन मास की रीतों, भगवान की रासलीलाओं और बृज संस्कृति की महिमा का गुणगान कीर्तन में करते हैं। मंदिर में धूलण्डी के दूसरे दिन डोलोत्सव पर राजभोग के अलावा अन्य चार भोग के दर्शन होते हैं। 
चौथे दर्शन के बाद रंग-गुलाल नहीं खेली जाती। विशेष उत्सव के दौरान शयन में राल के दर्शन होते हैं। कुंज एकादशी से पूर्णिमा तक खास उत्सवी माहौल में धर्मनगरी श्रद्धा के रंग में रंगी रहती है। इस तरह श्री द्वारकाधीश मंदिर में बृज संस्कृति का अहसास होगा। 
सेवा में सबकुछ प्रभु को समर्पित

पुष्टिमार्गीय परंपरा में आनंद, उल्लास व हर्ष को जन-जन तक प्रसारित कर उन्हें अपने आराध्य के श्रीचरणों में अनुरक्त बनाए रखने के लिए उत्सवों की शृंखलाबद्ध व्यवस्था है। पुष्टिमार्ग में चालीस दिवसीय फागोत्सव की सेवा में प्रभु को चौवा, चंदन, गुलाब, अबीर की सेवा धराने की अनूठी परंपरा है। डोल, राल, स्वांग, प्रदर्शन के माध्यम से ठाकुरजी खुद भक्तों के बीच रंग खेलकर आनंद का संचार करते हैं। 
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चारों स्वरुप के समक्ष रसिया गान 

इस बार श्री द्वारकाधीश मंदिर में श्री प्रभु के साथ मथुरेश, लाडलेश व मदनमोहन प्रभु समक्ष रसिया गान होगा। होली खेले रे नंद को लाला…, वृंदावन की कुंज गलिन…, ‘कान्हा धरयो रे मुगट खेले होली…’, ‘होरी खेल रहे नंदलाल वृंदावन की कुंज गलीन में…’, ‘उड़त गुलाल लाल भये बादल…’, ‘वृंदावन रचयो रे मुरारी…’ सरीखे गीत गाकर प्रभु को रिझाया जाएगा। रसिया गान का राग वृंदावन व ब्रज भाषा पर ही आधारित है। साथ ही मंदिर में ‘हो हो होरी खेलन जैइये…’, ‘आज भलो दिन है मेरी प्यारी नित सुहाग बढैये…’, ‘बाजत ताल मृदंग झांझ डफ गोरिन राग जमायो… का कीर्तन गान भी होगा। इस बीच प्रभु के समक्ष गार गायन की भी अनूठी परंपरा है। 
उत्सव पुष्टीमार्ग की देन 

सेवा और भक्ति के विधान में उत्सवों की आयोजन की एक निरन्तर कार्ययोजना पुष्टीमार्गीय आचार्यों की देन रही है। उद्देश्य आनंद, उत्साह का एक दीया उनके लिए जो अपनी आर्थिक, सामाजिक कारणों से पर्व पर भी अंधेरे की कालिमा के बीच रहने को विवश है। महलों से झोपड़ी तक खुशियों का संचार हो और मंदिर में यह अलौकिक आयोजन होने से आमजन श्रद्धा, भक्ति, सत्य, अहिंसा की ओर अग्रसर हो। 
डॉ. राकेश तैलंग, शिक्षाविद् व पुष्टीमार्ग विशेषज्ञ

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