उसे सायरा अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद उदयपुर के एमबी चिकित्सालय ले गए। वहां कई माह तक इलाज चला और तीन बार ऑपरेशन किए गए। 6 जनवरी 2014 को श्रवण की इलाज के दौरान मौत हो गई। वादिया का कहना था कि उसके पुत्र के इलाज में करीब 1 लाख से अधिक का खर्च आया। हाथ व पूरा शरीर जलने से वह समस्त कार्य करने में असमर्थ हो गया। करंट से झुलसने से मृत्यु होने तक शरीर में शत-प्रतिशत अर्जन क्षमता का हृास हुआ और वह हमेशा के लिए विकलांग हो गया। इसकी सायरा थाने में अलग से रिपोर्ट दर्ज करवाई थी।
सुनवाई के बाद अपर जिला एवं सत्र न्यायालय क्रम-5 के पीठासीन अधिकारी योगेश शर्मा ने मामले में माना कि टेलीफोन की लाइन वर्तमान में उपयोग में नहीं आ रही थी और 11 केवी की विद्युत लाइन ही चल रही थी। करंट विद्युत तारों में होता हुआ टेलीफोन के तारों में प्रवाहित हुआ और वह टूटकर रजके के खेत में गिरा, जिसके छूने से श्रवण की मौत होना प्रमाणित हुई। इस कारण कठोर दायित्व का सिद्धांत विद्युत निगम का ही होता है क्योंकि विद्युत निगम के तारों में ही करंट प्रवाहित होने से टेलीफोन तार में करंट प्रवाहित हुआ। न्यायालय ने सुनवाई के बाद विद्युत निगम के विरुद्ध 5 लाख 4 हजार 36 रुपए की डिक्री पारित की। इस राशि पर दावा दायरी से वसूली की दिनांक तक 9 प्रतिशत ब्याज भी देने के आदेश दिए।
READ MORE: PATRIKA IMPACT: राधिका चाइल्ड केयर सेन्टर को लेकर हुआ नया खुलासा, दूधमुंही बच्ची को लेकर ये बात आयी सामने
पुलिस ने महज दुर्घटना माना, विवेक नहीं लिया काम में
पुलिस ने मौका नक्शा बनाया, जिसमें स्पष्ट हुआ कि टेलीफोन की लाइन पर एवीएनएल की विद्युत लाइन के छूने से वह टूट गई और उसमें भी करंट प्रभावित हुआ। परिवादी के अधिवक्ता पराग अग्रवाल ने कहा कि जांच अधिकारी ने उसे दुर्घटना माना, जबकि उस बिन्दु पर जांच नहीं की कि शिकायत दर्ज न होने के बाद भी विद्युत निगम के कर्मचारियों का यह कत्र्तव्य था कि तार ढीले न हो, तारों का ढीला होकर छू जाना ही लापरवाही का द्योतक है।
पुलिस ने महज दुर्घटना माना, विवेक नहीं लिया काम में
पुलिस ने मौका नक्शा बनाया, जिसमें स्पष्ट हुआ कि टेलीफोन की लाइन पर एवीएनएल की विद्युत लाइन के छूने से वह टूट गई और उसमें भी करंट प्रभावित हुआ। परिवादी के अधिवक्ता पराग अग्रवाल ने कहा कि जांच अधिकारी ने उसे दुर्घटना माना, जबकि उस बिन्दु पर जांच नहीं की कि शिकायत दर्ज न होने के बाद भी विद्युत निगम के कर्मचारियों का यह कत्र्तव्य था कि तार ढीले न हो, तारों का ढीला होकर छू जाना ही लापरवाही का द्योतक है।
जांच में सामान्य बुद्धि व विवेक का उपयोग नहीं किया गया और केवल दुर्घटना का माना, जबकि भारतीय विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत उक्त विद्युत आपूर्ति लाइन डाली गई, जिसकी नियमानुसार रोड क्लीयरेंस न होने से वह टेलीफोन लाइन के छू गई। विद्युत लाइन के नीचे टेलीफोन की लाइन निकालने की अनुमति देना भी नियम विरुद्ध और घोर लापरवाही दर्शाता है, जो इस दुर्घटना का कारण भी है।