कुंभलगढ़ इसलिए आबाद पैंथर से
कुम्भलगढ़ क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से अत्यधिक समृद्घ है। वहां पर पैन्थर, भालू, जंगली सूअर, चीतल, सांभर, चिंकारा, भेडिय़े, लोमड़ी, जंगली बिल्ली, सियार एवं चौसिंगा आदि के साथ ही सरीसृप और विविध प्रकार के पक्षी काफी संख्या में है। वहां पर पैंथरों की संख्या वैसे भी 80 से ज्यादा ही गणना में आती रही है।
कुम्भलगढ़ क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से अत्यधिक समृद्घ है। वहां पर पैन्थर, भालू, जंगली सूअर, चीतल, सांभर, चिंकारा, भेडिय़े, लोमड़ी, जंगली बिल्ली, सियार एवं चौसिंगा आदि के साथ ही सरीसृप और विविध प्रकार के पक्षी काफी संख्या में है। वहां पर पैंथरों की संख्या वैसे भी 80 से ज्यादा ही गणना में आती रही है।
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– एक ही पैंथर दो बार भी पानी पीने आ सकता है। ऐसे में उसकी दो बार गणना हो जाती है
– एक ही पैंथर दो अलग-अलग जगहों पर भी पानी पीने जा सकता है। ऐसे में भी दोहराव हो सकता है।
– कई बार अच्छी बारिश होने से जंगलों व अभयारण्यों में कुछ जगहों पर भी थोड़ा बहुत पानी जमा हो जाता है, जहां गणना के दौरान वनकर्मी तैनात नहीं होते। ऐसे में वहां पानी पीने आने वाले पैंथर की गणना नहीं हो पाती है।
– कोई पैंथर गणना के दिन किसी अन्य स्थान या इलाके में है तो वह क्षेत्र में पानी पी लेता है तो वह उन जलस्रोतों पर नहीं जाता है।
– एक ही पैंथर दो बार भी पानी पीने आ सकता है। ऐसे में उसकी दो बार गणना हो जाती है
– एक ही पैंथर दो अलग-अलग जगहों पर भी पानी पीने जा सकता है। ऐसे में भी दोहराव हो सकता है।
– कई बार अच्छी बारिश होने से जंगलों व अभयारण्यों में कुछ जगहों पर भी थोड़ा बहुत पानी जमा हो जाता है, जहां गणना के दौरान वनकर्मी तैनात नहीं होते। ऐसे में वहां पानी पीने आने वाले पैंथर की गणना नहीं हो पाती है।
– कोई पैंथर गणना के दिन किसी अन्य स्थान या इलाके में है तो वह क्षेत्र में पानी पी लेता है तो वह उन जलस्रोतों पर नहीं जाता है।