इनमें से अधिकांश कलाकार पहली बार झीलों की इस नगरी में आकर बेहद खुश और उत्साहित हैं। मुंबई के दिव्यांग कलाकार परमेश्वर टिप्परना सौंकाबले, जो आठ फीट के सबसे विशाल काठ के तने से शीर्षासन करते व्यक्ति को गढ़ रहे हैं कहते हैं इस शहर की खूबसूरती के बारे में जितना सुना उससे कहीं अधिक सुंदर और शांत है। बडौदा के लोकनाथ सिन्हा और आरती कदम पहले एक दफा घूमने के हिसाब से यहां आ चुके थे। लेकिन, पहली बार शिल्पग्राम आकर खासे तरंगित हुए। कारण पूछने पर कहते हैं यहां लोक कलाओं के साथ समसामयिक कलाकारों के संगम का अनूठा नजारा इसे और स्थान से अलग करता है। आरती काष्ठ शिल्प से ‘पेड़ और प्रकृति’ के साहचर्य को उकेर रही है।
READ MORE : PATRIKA IMPACT : जमनादास की पीड़ा हरने को बढ़े कई हाथ, आगे आए भामाशाह, राजस्थान पत्रिका परिवार ने भी की आर्थिक मदद दो दिन पूर्व ये सभी कलाकार कुंभलगढ़-रणकपुर भ्रमण पर भी गए। उससे जुड़े संस्मरण साझा करते आसाम (नलबारी) की सेवाली देका कहती हैं लगता है कुदरत ने मेवाड़ पर विशेष मेहरबानी की है। हर तरफ ऊंची पहाडि़यां और हरियाली के बीच सांस्कृतिक विरासत के नायाब नमूने देखकर हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। गौरतलब है कि नासिक से आए योगेश गटकल ‘सेव गर्ल’ और नलबारी की सेवाली देका ‘बर्ड विद नेचर’ जैसे सागवान वुडन स्कल्पचर्स डिजाइन कर रहे हैं। इनके अलावा बड़ौदा के पीजूष कांति पत्रा, पटना की ममता केसरी, मुंबई के रोहन सुरेश पवार और गाजियाबाद के कमल किशोर भी अपनी काठ कलाएं रच-गढ़ रहे हैं जिन्हें आमजन शिल्पग्राम मेले के दौरान और उसके बाद यहां म्यूजियम में देख सकेंगे।