अटठारह वर्ष की उम्र में पहली बार अपनी मौसी के लिए रक्तदान के बाद से अब तक 36 वर्षों में कुल 81 बार स्वैच्छिक रक्तदान एवं 25 हजार से ज्यादा लोगों को इसके लिए प्रेरित कर चुके हैं। अपना जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह या फिर हो कोई इमरजेंसी, कप्पू हमेशा इस काम में आगे रहते हैं। स्वलिखित पुस्तक ‘रक्तदान-महादान्य’ नि:शुल्क बांटकर आमजन को जागरूक कर रहे रवीन्द्रपाल चाहते हैं कि इस विषय को स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रम से जोड़ दिया जाए। इसके अलावा हर व्यक्ति के लिए इसे ड्राइविंग लाइसेंस या मतदाता-आधार कार्ड की तरह अनिवार्य कर दिया जाए तो देश में कहीं भी रक्त की कमी नहीं रहेगी।
पचासों नि:शुल्क बीपी-शुगर कैंप के जरिये पांच हजार से अधिक लोगों को लाभ पहुंचाने वाले कप्पू काफी समय पूर्व मरणोपरान्त आंखें और देहदान का संकल्प भी ले चुके हैं। इसके अलावा गरीब बच्चों को शिक्षण सामग्री सहायता, चिकित्सा सुविधा व दवाएं, पौधरोपण और गर्मियों में प्याऊ लगाने जैसे सामाजिक सरोकारों से जुड़े कई कार्य भी वर्ष पर्यन्त करते रहते हैं। पिछले दो सालों से अपने जन्मदिन (25 जुलाई) को रक्तदान दिवस के रूप में ही मना कर इन्होंने एक नई मिसाल कायम की है।