कैफी और मैं…की यादें अब भी ताजा हैं जेहन में साल 2002 में कैफी आजमी के निधन के बाद जावेद अख्तर ने कैफी और मैं नाम से आत्मकथा लिखी थी, जिसका 2006 में मुंबई में कैफी आजमी की चौथी बरसी पर इसी नाम के नाटक के रूप में पहली बार मंचन हुआ था। इसके बाद ये नाटक वर्ष 2009 में उदयपुर में हुआ। इस नाटक को शबाना आजमी और जावेद अख्तर ने प्रस्तुत किया था। लोककला मंडल के रंगमंच पर एक ओर अभिनेत्री शबाना आजमी बैठी थीं तो दूसरी ओर मशहूर नज्मकार जावेद अख्तर बैठे थे। शबाना के पिता कैफी आजमी के संवाद जावेद बोल रहे थे तो मां शौकत के संवाद शबाना बोल रही थीं। बीच-बीच में जसविंदर सिंह कैफी की मशहूर गजलें गाकर पूरा समां उस दौर में ले जाते थे जहां की ये बातें चल रही थीं। दर्शक भी इसका पूरा आनंद उठा रहे थे। वहीं, उदयपुर में पहले शबाना आजमी ने एक प्ले ‘तुम्हारी अमृता’ भी किया था जो बहुत पसंद किया गया था।
अब नई पीढ़ी को दे रहे प्रोत्साहन रंगकर्मी कय्यूम अली बोहरा ने बताया कि रंगकर्म के प्रति वे हमेशा से समर्पित रहे हैं। हर नाटक अपने आप में खास होता है और कोई ना कोई प्रेरणा देता है। अपने जीवन में कई नाटक किए हैं जिनमें ‘उनके दिल के करीब अंधा युग, हयवदन, कल्पना पिशाच, कथा एक कंस की, इडीपस, आषाढ़ का एक दिन’ आदि है। इन सभी को काफी सराहना और दर्शकों का प्यार मिला। अब उम्र के कारण वे इतने सक्रिय नहीं रहे हैं लेकिन नई पीढ़ी को वे प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें सिखाते भी हैं। इस वर्ष तीन किताबों पर काम चल रहा है।
रंगकर्म करता है लोगों को प्रेरित रंगकर्मी लईक हुसैन के अनुसार, रंगकर्म लोगों को प्रेरित करता है। लेकिन इस बार वे चाहकर भी लोगों को अपने रंगकर्म के माध्यम से जागरूक नहीं कर पा रहे हैं जिसका उन्हें मलाल है क्योंकि देश में कोरोना केे कारण लॉकडाउन है और सभी आईसोलेशन में हैं। दो माह से वे नाटकों की तैयारी में लगे थे जिनमें से एक नाटक ‘किश्तों में रेंगती मौत’ था और एक अन्य नाटक भी था। लेकिन अब ये संभव ही नहीं है। हुसैन ने बताया कि उन्होंने अब तक कई सारे प्ले किए हैं जिनमें शकार उनके लिए बेहद खास है। इसका मंचन वे देश में कई जगह कर चुके।
रंगमंच दिवस के लिए तैयार किए थे प्लेरंगकर्मी शिवराज सोनवाल बताते हैं कि वे अब तक कई प्ले कर चुके हैं लेकिन ये ऐसा पहला मौका है जब रंगमंच दिवस के अवसर पर कोर्ई प्ले नहीं होंगे। उन्होंने और उनकी टीम ने इस दिवस के लिए दो प्ले पहल ही तैयार कर लिए थे लेकिन अब इनका मंचन नहीं हो पाएगा। लेकिन बाद में जब हालात ठीक हो जाएंगे तब इनका मंचन जरूर करेंगे। सोनवाल ने बताया कि उदयपुर में अब तक कई सारे यादगार प्ले हो चुके हैं जिनमें ‘कल्पना पिशाच, पशु गायत्री, आषाढ़ का एक दिन, हयवदन, कथा एक कंस की, शब्दबीज, कोर्ट मार्शल, आखिर, इस मर्ज की दवा क्या है, कृष्णा’ आदि प्रमुख हैं।