रणथम्भौर नेशनल पार्क में 4 लोगों का शिकार करने के वाले टाइगर टी-24 यानी ‘उस्ताद’ को नरभक्षी करार दे दिया गया था। इसके कारण तब राज्य सरकार ने इंसानों के लिए खतरा बन चुके टाइगर टी-24 को शिफ्ट करने का फैसला लिया। वर्ष 2015 में आखिर टाइगर टी-24 को उदयपुर के सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में शिफ्ट कर दिया गया। यहां आने के बाद उसे रणथम्भौर जैसी आजादी नहीं मिली। मिला तो केवल एक बड़ा एनक्लोजर। जो कभी 5 हजार हैक्टेयर के क्षेत्र में घूमा करता था, वह एक छोटे से क्षेत्र तक सीमित होकर रह गया।
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. सतीश शर्मा के अनुसार मेवाड़ में पहले कभी बहुत टाइगर हुआ करते थे। इसका प्रमाण मेवाड़ में जगह-जगह पहाडिय़ों पर बनी ओदियां या शूटिंग बॉक्स है, जिसे खासकर शिकार के लिए ही बनाया जाता था। इसे मूल कहा जाता था। ये ओदियां खासकर टाइगर्स, पैंथर और हिरण के शिकार के लिए ही बनाई गई थीं। कभी-कभी सांभर व चीतल का भी शिकार होता था। 1972 से पहले टाइगर्स या बाघों के शिकार पर कोई कानून नहीं बना था तो ये गैर कानूनी नहीं था। 1972 में एक्ट बनने के बाद वन्यजीवों के शिकार पर रोक लग गई। शर्मा ने बताया कि राजसमंद के रावली रेस्ट हाउस में ब्रिटिशकाल की एक एंट्री बुक मिली है, जिसमें वहां किन लोगों ने शिकार किया, किस टाइगर का और बंदूकों का विवरण भी दर्ज है। अब इस दस्तावेज को बहुमूल्य प्रमाण मानते हुए सुरक्षित रख दिया गया है। उदयपुर व आसपास के क्षेत्र में 100 से अधिक महलनुमा ओदियां हैं।
उस्ताद का रणथम्भौर से उदयपुर का सफर – 16 मई 2015 को लाए
– 23 नवंबर 2015 को ‘उस्ताद’ को कब्ज की शिकायत सामने आई – 28 नवम्बर, 2015 को चिकित्सकों की टीम ने जांच में पाया कि ‘उस्ताद’ ने बीमारी की वजह से आहार लेना छोड़ दिया।
– 04 दिसम्बर, 2015 को ‘उस्ताद’ की बीमारी का ऑपरेशन हुआ।
– अप्रेल, 2019 में भी उसकी तबीयत खराब हुई। – अब तक ‘उस्ताद’ को नॉन डिस्प्ले एरिया में ही रखा गया है।
– 2016 में चैन्नई से सफेद बाघ रामा को लाया गया, 2018 में किडनी फे ल होने से मौत हो गई। – जनवरी, 2020 में बाघिन दामिनी को नर बाघ कुमार ने हमला कर मार दिया। अब केवल कुमार ही बायो पार्क के डिस्प्ले में है।
– जल्द ही चेन्नई से बाघों को लाने की तैयारी है।