scriptमाइनस 16 डिग्री में भी बुलंद रहे हौसलेे और केदारकंठ पर उदयपुर के युवाओं ने फहराया तिरंगा | Youth of Udaipur hoisted the tricolor on Kedarkanth, Uttarkashi | Patrika News

माइनस 16 डिग्री में भी बुलंद रहे हौसलेे और केदारकंठ पर उदयपुर के युवाओं ने फहराया तिरंगा

locationउदयपुरPublished: Jan 26, 2021 02:08:32 pm

Submitted by:

madhulika singh

उत्तरकाशी स्थित केदारकंठ पर्वत पर 4 दोस्तों ने पाई फतह, 12, 500 फीट ऊंचा है पर्वत, 9 दिन में पूरी की चढ़ाई

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उदयपुर. माइनस 16 डिग्री के तापमान में जहां सर्दी कभी भी मौत का रूप ले सकती है और ऊंचाई पर चढ़ाई से सांसें भी साथ छोड़ सकती है, ऐसे में भी बिना रुके अपनी मंजिल तक पहुंचना और चोटी पर पहुंच कर हाथ में तिरंगा लेकर लहराना और उसे चोटी पर फहराना एक अलग ही जोश भर देता है। उस मुकाम पर ऐसा लगता है कि जैसे पूरी दुनिया जीत ली हो, सारी थकान और दर्द कुछ पलों के लिए तो गायब हो जाती है। ये कहना है उन युवाओं का, जो उत्तरकाशी स्थित केदारकंठ (केदारकांठा) की चोटी पर तिरंगा फहरा कर लौटे हैं। केदारकंठ की ऊंचाई 12 हजार 500 फीट है।

तीन महीने के अभ्यास में मानसिक व शारीरिक तौर पर तैयार हुए

कोरोना काल में घर बैठे-बैठे चार दोस्त प्रशांत कुमावत, यश जैन, अभय शर्मा और रौनक जैन ने तय किया कि कोरोना का प्रभाव कम होने पर एक ऐसे मिशन के लिए निकलना है जो किसी चुनौती से कम न हो। हालांकि तीन महीने के लगातार अभ्यास के बाद इन चारों दोस्तों ने खुद को इसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार किया। वे बताते हैं कि केदारकंठ शिखर पर तिरंगा फहराने की यह यात्रा 24 दिसम्बर को आरंभ हुई, जो मजबूत इरादों और बुलंद हौसलों के साथ 1 जनवरी को माइनस 16 डिग्री के तापमान और पूरी तरह से विपरीत परिस्थितियों से दो-दो हाथ करते हुए समाप्त हुई। चारों दोस्तों ने बताया कि यदि वे नियमित अभ्यास करते रहे और दृढ़ इच्छा शक्ति रही तो लद्दाख में भी तिरंगा फ हराने जाएंगे।

जैसे-जैसे ऊंचाई पर चढ़े हवा कठोर और ऑक्सीजन कम होती गई
वे बताते हैं कि पर्वतारोहण एक खतरनाक खेल है, जिसे किसी भी परिस्थिति में नकारा नहीं जा सकता। जरा सी चूक जीवन के लिए खतरा बन जाती है। उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे वे ऊंचाई पर चढ़ते गए वैसे-वैसे हवा और अधिक कठोर होती गई तथा ऑक्सीजन की कमी के कारण सांस लेना मुश्किल होने लगा, लेकिन मन में देश प्रेम का जज्बा हो तो कोई काम मुश्किल नहीं होता। बस, इसी सोच से चारों ने विपरीत हालात में भी आगे बढ़ते हुए चोटी पर पहुंच तिरंगा फहराया दिया।
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