पुलिस का दावा है कि अक्सर लोगों के मोबाइल कहीं गिर जाते हैं या गुम हो जाते हैं। ऐसी दशा में पुलिस के लिए मोबाइल की तलाश करना संभव ही नहीं हैं। इतना स्टाफ भी नहीं है। पूरे अमले को केवल मोबाइल की जांच के लिए भी झोंका नहीं जा सकता, वहीं थानों से क्राइम संबंधित मामलों में भी मोबाइल के लॉट रोजाना ट्रेस होते हैं।
15 अप्रेल से 15 मई तक यह है शहर के थानों की स्थिति, सभी मोबाइल गुम बताए
महाकाल थाना 60
देवासगेट थाना 25
नीलगंगा 15
जीवाजीगंज 12
चिमनगंज 03
पंवासा 14
माधवनगर 27
नागझिरी 16
नानाखेड़ा 9
कोतवाली 11
चिंतामण 5
पुलिस का दावा- मोबाइल रखने वाले करते हैं चूक
इधर, साइबर और पुलिस यह भी दावा करती है कि अक्सर मोबाइल चोरी नहीं होते, वे अक्सर इसके लिए इनपुट लेते रहते हैं। जिसमें 90 फीसदी मामलों में चूक मोबाइल धारक ही करता है। मोबाइल धारक अक्सर मोबाइल कहीं रख देता है और भूल जाता है या गाड़ी चलाते समय रास्ते में कहीं गिर जाता है। जबकि हर व्यक्ति थाने पहुंचता है तो वह चोरी की शिकायत करता है।
गुम मोबाइल का शहर के थानों में रिकॉर्ड ही नहीं
गुम मोबाइल की शिकायतों का थानों में कोई अधिकृत रिकॉर्ड नहीं रखा जाता। शहर के ज्यादातर थानों में इनके रिकॉर्ड ही नहीं हैं। शिकायत कर्ता भी सिर्फ सिम ब्लॉक कराने और दूसरी सिम निकलवाने के लिए शिकायत की रिसिव कॉपी का इस्तेमाल करते हैं। थाने की इसी कॉपी के आधार पर दूसरी सिम मिल जाती है। उसके अलावा कोई काम नहीं। थानों में भी इसे रिकॉर्ड में नहीं चढ़ाया जाता है।
फर्जी क्लेम के लिए झूठी शिकायत भी
साइबर और पुलिस का यह भी कहना है कि कई बार मोबाइल धारक फर्जी तौर पर क्लेम लेने के चक्कर में भी मोबाइल चोरी होना लिखवाता है ताकि उसे मोबाइल का क्लेम मिल जाए। गुम हुआ तो एफआइआर नहीं: बाइक में जाते समय गिर जाए। शॉपिंग के दौरान भूल जाने पर। ट्रेन में मोबाइल सीट पर छोड़ देने पर।
इन मामलों में होगा केस दर्ज
मोबाइल को छीनकर भागने पर। घर से पर्स और जेवर के साथ मोबाइल चोरी होने पर। पॉकेटमारी के दौरान मोबाइल चोरी होने पर। मोबाइल कहीं छोड़ा और उठाने वाला सीसीटीवी कैमरे में कैद होने पर।