गुजरात के मैहसाणा के पास जैतपुर गांव में जन्मे आचार्य दौलतसागरजी ने १९४० में जैन दीक्षा ग्रहण की थी। ७७ साल से वे संयम जीवन में हैं। छोटी-मोटी बीमारियों को छोड़ दें तो वे पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हैं। इतनी अवस्था के बावजूद सुनने व देखने में कोई बाधा नहीं। प्राकृत भाषा के कई कठिन आगम ग्रंथ उन्हें कंठस्थ हैं। इसके अलावा जो भी मिलने आए उसे पहचान लेते हैं।
पटेल परिवार में जन्म, बने गच्छाधिपति
आचार्य दौलतसागरजी जन्म से जैन नहीं है। उनका जन्म पटेल परिवार में हुआ था। वह १४ साल की आयु में आचार्य देवेंद्रसागर सूरी के संपर्क में आए और २० की आयु में जैन दीक्षा अंगीकार की। अब वे १०५० साधु-साध्वी के सागर समुदाय (श्वेतांबर जैन) के गच्छाधिपति है। इतिहास में यह पहली बार है जब जैन से अलावा किसी को यह ओहदा मिला हों। बैंगलुरु, कलकत्ता, लखनऊ, मुंबई, अहमदाबाद, पूणे सहित कई बड़े शहरों में पैदल विहार कर चातुर्मास कर चुके हैं।
संयम से जीना ही जीवन
आचार्य ने बताया कि जो संयम व नियम से जीता है। उसके जीवन में दु:ख कम आते हैं। जो भी तीर्थंकर हुए उन्होंने संयम व तप के बूते मोक्ष पाया। धर्म, शास्त्र व ज्ञानियों की देशना का अनुसरण जो करता है वह कभी परेशान नहीं रहता। अपने जीवन का कोई मूल उद्देश्य तो बोले गुजरात के लिमड़ी, पाटन व मप्र के रतलाम में आगम मंदिर निर्माण कराना है।