उज्जैन

Video 97 वर्षीय जैन संत आज भी है यूथ, जानिए कैसे रहते हैं फिट

९७ साल की उम्र। नाम जैनाचार्य दौलतसागर सूरीश्वरजी। नाखून में रोग नहीं, बीपी-शुगर हृदय सबकुछ सामान्य।

उज्जैनOct 17, 2017 / 07:52 pm

Gopal Bajpai

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राहुल कटारिया@उज्जैन. ९७ साल की उम्र। नाम जैनाचार्य दौलतसागर सूरीश्वरजी। नाखून में रोग नहीं, बीपी-शुगर हृदय सबकुछ सामान्य। आंखों पर चश्मा नहीं। नेत्र ज्योति भी इतनी तेज कि अखबार व किताब पढऩे में भी कोई परेशानी नहीं होती है। वह ७७ साल की दीक्षा अवधि में देश के विभिन्न हिस्सों में २ लाख किमी पैदल यात्रा कर चुके हैं। ३५ साल बाद वे उज्जैन के ऋषभदेव छगनीराम पेढ़ी खाराकुआं जैन मंदिर में चातुर्मास के लिए आए हैं। अब भी वॉकर के सहारे खुद का काम खुद करते हैं।

गुजरात के मैहसाणा के पास जैतपुर गांव में जन्मे आचार्य दौलतसागरजी ने १९४० में जैन दीक्षा ग्रहण की थी। ७७ साल से वे संयम जीवन में हैं। छोटी-मोटी बीमारियों को छोड़ दें तो वे पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हैं। इतनी अवस्था के बावजूद सुनने व देखने में कोई बाधा नहीं। प्राकृत भाषा के कई कठिन आगम ग्रंथ उन्हें कंठस्थ हैं। इसके अलावा जो भी मिलने आए उसे पहचान लेते हैं।

पटेल परिवार में जन्म, बने गच्छाधिपति

आचार्य दौलतसागरजी जन्म से जैन नहीं है। उनका जन्म पटेल परिवार में हुआ था। वह १४ साल की आयु में आचार्य देवेंद्रसागर सूरी के संपर्क में आए और २० की आयु में जैन दीक्षा अंगीकार की। अब वे १०५० साधु-साध्वी के सागर समुदाय (श्वेतांबर जैन) के गच्छाधिपति है। इतिहास में यह पहली बार है जब जैन से अलावा किसी को यह ओहदा मिला हों। बैंगलुरु, कलकत्ता, लखनऊ, मुंबई, अहमदाबाद, पूणे सहित कई बड़े शहरों में पैदल विहार कर चातुर्मास कर चुके हैं।

संयम से जीना ही जीवन

आचार्य ने बताया कि जो संयम व नियम से जीता है। उसके जीवन में दु:ख कम आते हैं। जो भी तीर्थंकर हुए उन्होंने संयम व तप के बूते मोक्ष पाया। धर्म, शास्त्र व ज्ञानियों की देशना का अनुसरण जो करता है वह कभी परेशान नहीं रहता। अपने जीवन का कोई मूल उद्देश्य तो बोले गुजरात के लिमड़ी, पाटन व मप्र के रतलाम में आगम मंदिर निर्माण कराना है।

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