यह है मामला
उज्जैन की रेखा का विवाह इंदौर निवासी लोकेश कोल्हे के साथ जनवरी 2016 में हुआ था। कुछ समय बाद ही रेखा अपने पति एवं सास-ससुर की प्रताडऩा से तंग आकर पति का घर छोड़कर उज्जैन आ गई थी। रेखा एवं उसके माता-पिता ने दोनों के बीच समझौते की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो सके। रेखा ने जीवन यापन के लिए एक निजी कॉलेज में सहायक प्राध्यापक की नौकरी कर ली। यहां उन्हें 20 हजार रुपए के आसपास वेतन मिलता है। पति द्वारा साथ में रखे जाने से मना करने पर रेखा ने कुटुंब न्यायालय में भरण पोषण के लिए परिवाद दायर किया। कुटुंब न्यायालय के न्यायाधीश अंजनीनंदन ने संपूर्ण साक्ष्य उपरांत फैसला सुनाया कि आवेदिका भले ही आय अर्जित कर रही हो, फिर भी आवेदिका को अनावेदक के जीवन स्तर के अनुरूप जीवन यापन करने का अधिकार है। कोर्ट में रेखा के अभिभाषक अग्निहोत्री द्वारा पति लोकेश के जीवन स्तर एवं उच्च शिक्षण को सिद्ध किया और हाइकोर्ट व सुप्रीमकोर्ट के 6 न्यायदृष्टांत को भी प्रस्तुत किया। इस पर न्यायालय ने पति लोकेश को 6 हजार रुपए प्रतिमाह भरण पोषण राशि प्रदान करने के आदेश दिए।
मिथक टूटा, नौकरी पर भी मिला सकता गुजारा भत्ता
कुटुंब न्यायालय के इस फैसले के बाद समाज में व्याप्त यह मिथक टूट गया है कि जो महिला स्वयं की आय अर्जित करती है या नौकरी करती है उसे गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। वास्तव में ऐसा नहीं है, तलाक के मामले में पत्नी स्वयं की आय की स्थिति में भी भरण पोषण प्राप्त कर सकती है।