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मंदिरों की राजधानी में प्रबंधकों की मौज…समन्वय के लिए हुई थी नियुक्तियां, बन बैठे अधिकारी

locationउज्जैनPublished: May 03, 2019 09:42:29 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

शासन के आधिपत्य वाले शहर के प्रमुख मंदिरों में प्रबंधक-प्रशासक पद सवैतनिक मानसेवियों की नियुक्तियां की गई थी।

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उज्जैन. महाकाल मंदिर को छोड़कर शहर में प्रमुख शासकीय मंदिरों में समन्वय और व्यवस्थाओं के संचालन के लिए प्रशासन स्तर पर प्रबंधक नियुक्त किए थे। इनमें से ज्यादातर को इन पदों पर लम्बा समय हो गया है। हालात यह है कि सभी अधिकारी बनकर काम कर रहे हैं और इनके काम की समीक्षा नहीं हो रही है।

शासन के आधिपत्य वाले शहर के प्रमुख मंदिरों में प्रबंधक-प्रशासक पद सवैतनिक मानसेवियों की नियुक्तियां की गई थी। महाकाल मंदिर में मंदिर अधिनियम के तहत राजस्व अधिकारी को प्रशासन-उप प्रशासक के तौर पर पदस्थ किया जाता है। अन्य शासकीय मंदिरों में प्रबंध समिति तो है, लेकिन इनका अधिनियम नहीं होने से प्रशासक/प्रबंधक की नियुक्तियों का कोई अलग से प्रावधान नहीं है। वर्षों पहले शहर के प्रमुख मंदिर मंगलनाथ, चिंतामण गणेश मंदिर, हरसिद्धि मंदिर की व्यवस्थाओं के साथ पंडित-पुजारी और श्रद्धालुओं के साथ मंदिर के कार्योँ में प्रशासन स्तर पर समन्वय के लिए प्रशासन ने अपने अधिकारों का उपयोग कर मंदिरों में प्रबंधकों को नियुक्त किया गया था। इसमें सेवानिवृत्त राजस्व अधिकारी को जिम्मेदारी देने का निर्णय लिया गया था। मंगलनाथ मंदिर में तो सेवानिवृत्त राजस्व निरीक्षक को यह दायित्व दिया गया, लेकिन चिंतामण गणेश मंदिर, हरसिद्धि मंदिर में गैर शासकीय व्यक्ति को प्रबंध बना दिया गया। शनि मंदिर, काल भैरव मंदिर में पदेन पटवारी को प्रबंधक की जिम्मेदारी दी जाती है। इसमें समय-समय पर बदलाव भी होते हैं। बहरहाल मंगलनाथ, चिंतामण गणेश मंदिर, हरसिद्धि मंदिर में प्रबंधकों की नियुक्ति को लम्बा समय हो गया है और स्थित यह है कि मानसेवी तौर पर बनाए गए प्रबंधक मंदिरों में खुद को न केवल अधिकारी के तौर पर प्रस्तुत करते हैं, साथ ही व्यवस्थाओं का अपनी सुविधा और हित से संचालित करते हैं।

प्रशासन को गुमराह किया जाता है
मंगलनाथ, चिंतामण गणेश मंदिर, हरसिद्धि मंदिर प्रबंध समिति में संबंधित अनुभाग के पदेन एसडीएम अध्यक्ष और पदेन तहसीलदार सचिव होते हैं। प्रबंधक पर इन दोनों का नियंत्रण होता है, लेकिन कुछ समय से व्यस्तता या अन्य कारणों से मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष/सचिव अवसर विशेष को छोड़कर मंदिरों की व्यवस्थाओं पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। नतीजतन प्रबंधक न केवल मंदिरों की व्यवस्थाएं अपने हिसाब से तो संचालित करते हैं, बल्कि प्रशासन को गुमराह भी कर दिया जाता है। इसके अनेक मामले सामने आ चुके हैं।

बड़ी अनियमितता आ चुकी है सामने

लम्बे समय से प्रबंधक पद पर काबिज व्यक्ति की अनियमितता का बड़ा मामला मंगलनाथ मंदिर में करीब १० माह पहले सामने आ चुका है। उस वक्त मंगलनाथ मंदिर के प्रबंधक कार्यालय की जांच के दौरान गंभीर आर्थिक गड़बडिय़ां मिलने पर जिला प्रशासन ने सख्त कार्रवाई करते हुए प्रबंधक त्रिलोकविजय सक्सेना को तत्काल पद से हटाकर पुलिस के हवाले कर दिया था। एक दिन पहले ही प्रबंधक कार्यालय को सील किया था। इसके बाद जांच के दौरान हिसाब मिलान के लिए दानराशि की गिनती के समय सक्सेना की जेब से 1.32 लाख रुपए मिले थे। दान में प्राप्त आभूषणों का रिकॉर्ड भी दर्ज नहीं पाया गया। इसके बाद अन्य मंदिरों में नियुक्त प्रबंधकों के कार्यों की समीक्षा के साथ कार्यकाल अवधि की पड़ताल की बात कही गई थी। प्रशासनिक बदलाव के बाद इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके अलावा चिंतामण गणेश मंदिर, हरसिद्धि मंदिर के प्रबंधकों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए जाते हैं पर कार्रवाई नहीं होती है।

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