दीवार की तरह बाबा से दूर करते हैं बैरिकेड्स
शाम चार बजे बाबा महाकाल के नगर भ्रमण का समय, घंटों पहले से राह में हजारों श्रद्धालु, सबके मन में सिर्फ यही आस… बस एक बार बाबा के दर्शन हो जाएं, पालकी में विराजित राजाधिराज महाकाल प्रजा के पास पहुंचने के लिए मंदिर से निकलते हैं लेकिन प्रजा का उनके पास पहुंचना तो दूर, दर्शन की आस भी पूरी नहीं हो पाती.. सावन-भादौ में बाबा तो दर्शन देने आए, श्रद्धालु झलक पाने भी पहुंचे लेकिन भीड़ प्रबंधन के लिए की गई व्यवस्था ने इस देव-भक्त के मिलन को ही अव्यवस्थित कर दिया… यह पूर्व सवारी में दर्शन व्यवस्था की हकीकत है।
सवारी निकलने से पूर्व पुलिस-प्रशासन लगभग मार्ग पर सड़क के दोनों तरफ लोहे के बैरिकेड्स लगाता है। इनकी ऊंचाई आम व्यक्ति की लंबाई से अधिक करीब 6 फीट है। एेसे में बैरिकेड्स के पीछे खड़े श्रद्धालु जालियों में तांकते हुए बाबा की झलक पाने की कोशिश करते हैं। सवारी निकलने के दौरान बैरिकेड्स से 50 फीट पीछे तक श्रद्धालु खड़े रहते हैं। सवारी निकलने के दौरान पहले ही पालकी सुरक्षाकर्मियों, मंडलियों, श्रद्धालु आदि से घिरी रहती है और एेसे में बैरिकेड्स के पीछे खड़े रहने वालों को बमुश्किल ही दर्शन हो पाते हैं। इस पर भी बैरिकेड्स की ऊंचाई अधिक होने के कारण पहली-दूसरी पंक्ति में खड़े श्रद्धालुओं को ही हल्की-सी झलक मिल पाती है, उनके पीछे खड़े लोगों को तो पालकी का ऊपरी हिस्सा ही नजर आता है। इसके विपरीत बैरिकेड्स की ऊंचाई कम हो तो काफी पीछे तक के श्रद्धालुओं को दर्शन लाभ मिल सकता है।
1. महिला-बच्चों को ज्यादा दिक्कत
सवारी निकलने से दो घंटे पहले ही श्रद्धालु सड़क किनारे लगे बैरिकेड्स के पास खड़े होना शुरू हो जाते हैं। दो-तीन पंक्ति के बाद भी श्रद्धालु इस आस में पीछे खड़े होते रहते हैं कि उनको बाबा के दर्शन हो जाएंगे, लेकिन उन्हें बैरिकेड्स और आगे खड़े लोगों के कारण सड़क पर कुछ नजर ही नही आता है। एेसी स्थिति में कई लोग वहां से लौटकर अन्य स्थान से दर्शन करने का मन भी बनाते हैं लेकिन तब तक उनके पीछे भीड़ जमा हो चुकी रहती है और वे वहां से बाहर निकलने की स्थिति में भी नहीं बचते। सबसे अधिक महिला, बच्चे व बजुर्ग परेशान होते हैं। उन्हें या तो भीड़ से जूझते हुए बाहर निकलना पड़ता है या फिर बिना दर्शन के ही सवारी गुजरने तक लोगों के बीच दबकर खड़ा रहना पड़ता है। पिछले वर्ष सवारी में एेसे नजारे आम थे।
2. बैरिकेड्स पर चढऩे का जोखिम
ऊंचे बैरिकेड्स जब दर्शन में बाधा बनते हैं तो कई युवा इन पर चढऩे का जोखिम भी उठाते हैं। सवारी नजदीक आने पर कई लोग उत्साह में बैरिकेड्स पर चढऩा शुरू कर देते हैं। इससे हादसे का डर तो बनता ही है, पुलिस जवानों को भी सवारी व्यवस्था छोड़, बैरिकेड्स संभालने व भीड़ नियंत्रण में जुटना पड़ता है। कई बार बैरिकेड्स गिरने की स्थिति भी बनती है। इसके अलावा बैरिकेड्स के पीछे खड़े विशेष लोगों को अंदर प्रवेश करवाने में भी परेशानी होती है। पिछले वर्ष सवारी के दौरान किन्नर अखाड़े के सदस्यों को ६ फीट ऊंचे बैरिकेड्स फांदकर अंदर जाना पड़ा था।
3. ऊंचाई के लिए बनाते मंच, बढ़ता खतरा
सवारी के स्वागत के लिए जगह-जगह मंच भी बनाए जाते हैं। बैरिकेड्स ऊंचे होने और दर्शन नहीं हो पाने के कारण मंच पर वांछित लोगों के अलावा दर्जनों अन्य लोग भी बिना मंजूरी के ही चढ़ जाते हैं। चढऩे वालों की भीड़ इस तरह होती है कि स्वागतकर्ता भी उन्हें मंच से नहीं उतार पाते। एेसी स्थिति में कई बार अधिक वजन होने के कारण मंच टूट जाते हैं। पिछले वर्ष सवारी में महाकाल घाटी चौराहे पर एक मंच टूट गया था, जिसमें बच्ची सहित अन्य घायल हो गए थे।
सिंहस्थ 2016 में आए थे बैैरिकेड्स
सिंहस्थ पूर्व की सवारियों में भीड़ नियंत्रण के लिए सड़क किनारे पाइप की रैलिंग और छोटे बैरिकेड्स लगाए जाते थे। उनकी ऊंचाई आम व्यक्ति की लंबाई से कम होती थी, जिसके कारण पीछे तक के लोगों को सवारी के दर्शन हो पाते थे। सिंहस्थ में पुलिस प्रशासन ने बड़ी संख्या में ऊंचे बैरिकेड्स लिए। सिंहस्थ में इनका उपयोग स्टॉपर के साथ ही सड़कों पर बैरिकेडिंग करने में हुआ। तब इन बैरिकेड्स के पीछे जनता के खड़े होने जैसी स्थिति नहीं बनती थी। इनके जरिए सड़क-घाटों पर कॉरिडोर अधिक बनाए गए ताकि आने-जाने वालों की कतार अलग-अलग रहे और बैरिकेड्स कूदकर कोई इधर से उधर न हो सके। सिंहस्थ में इसका लाभ भी मिला। सिंहस्थ के बाद अब इन बैरिकेड्स का उपयोग लगभग सभी बड़े धार्मिक आयोजनों में होता है। अन्य में इनसे इतनी परेशानी नहीं होती जितनी महाकाल सवारी में दर्शन नहीं हो पाने की होती है।