चलते-फिरते रेस्टोरेंट में सबकुछ
– पानी का टेंक
– फोकस व डेकोरेटिव लाइट्स,
– प्लास्टिक की टेबल-चेयर्स
– फ्रीज या फ्रीजर
– पंखा, म्ुयजिक सिस्टम
– माइक्रोवेव, पीज्जा ओवन, टोस्टर आदि
– आवश्यकतानुसार दो से चार चुल्हे का स्टैंड।
– कीचन व अन्य सामान रखने के लिए प्लेटफार्मस
सुंदर, स्वच्छ और सुविधाजनक
– फुड ट्रक दिखने में आकर्षक होते हैं।
– यातायत बाधित न हो ऐसी खाली जगह देखकर कहीं भी इन्हें खड़ा कर सकते हैं।
– ग्राहकों के लिए ट्रक से ही टेबल-कुर्सी का परिवहन।
– तुलनात्मक सफाई अधिक रहती है। इनसे आसपास भी गंदगी नहीं होती।
– स्थायी अतिक्रमण नहीं। व्यवसाय होने के बाद इन्हें फिर घर ले जाने से जगह दोबारा खाली हो जाती है।
– किसी ठेले की तरह दुकानदार ग्राहकों से नहीं घिरा रहता है।
– ग्राहकों को भी सुविधा मिलती है।
एक गाड़ी २ से ४ लाख में बन जाती है फूड ट्रक
किसी भी लोडिंग वाहन को आसानी से अपनी जरूरत के मुताबिक फूड ट्रक में बदलाया जा सकता है। अधिकांश लोग इंदौर में फूड ट्रक तैयार करवा रहे हैं। यदि वाहन पहले से है तो दो से चार लाख रुपए के खर्च में इसे फूड ट्रक बनाया जा सकता है।
छत पर १०० लीटर का टेंक, नीचे वॉश एरिया
होटल मैनेजमेंट के छात्र रहे चंद्रशेखर मोटवानी ने लखनऊ के हयात व हेदराबाद के होटल में दो साल काम करने के बाद अपने शहर उज्जैन में फूड ट्रक डाला है। उन्होंने इसे इंदौर से विशेष रूप से तैयार करवाया है। इसमें गैस चुल्हे, ओवन, फ्रीज के साथ ही छत पर सौ लीटर का टेंक बनवाया है। ड्राइवर सीट के पीछे छोटो वॉश वेसीन भी है। चंद्रशेखर कहते हैं, पब्लिक का अच्छा रिस्पांस मिल रहा है।
छोटे काउंटर से चलती दुकान तक पहुंचे
कुछ समय पूर्व तक रविंद्र कुशवाह कोठी रोड पर छोटा फूड काउंटर लगाते थे। स्ट्रीट मार्केट के बदलते ट्रेंड को पहचानते हुए उन्होंने भी अपना व्यवसाय कांउट से फूड ट्रक पर शिफ्ट कर लिया। लोडिंग वाहन उनके पास पहले से ही था। इसे मोडिफाइ करवाया और करीब ८० वर्ग फीट का चलता-फिरता रेस्टोरेंट तैयार कर लिया। अब वे शाम को फूड ट्रक लगाते हैं और रात ११ बजे तक व्यवसाय कर ट्रक के साथ ही घर लौट जाते हैं।