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साल दर साल घटती चरनई की जमीन और घास का घटता क्षेत्रफल पैदा कर रहा चारे की कमी

locationउज्जैनPublished: Aug 10, 2022 01:06:28 pm

Submitted by:

atul porwal

वर्ष 2011-12 में 22689 हेक्टेयर भी घास की बीड़, दस साल में घटकर रह गई 938 हेक्टेयर, इन्ही दस साल में 13 हजार हेक्टेयर घट गई चरनई की जमीन और 3104 हेक्टर पर सिमट गया चारा उत्पादन, घास उत्पादन कम होने से कम हो गई गौवंश की संख्या

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चारा बेचारा..

पत्रिका स्पॉटलाइट


अतुल पोरवाल
उज्जैन.
खेती-किसानी में नए प्रयोग से करातने वाले किसान अब खास उत्पादन में भी पिछड़ते जा रहे हैं। दरअसर चरनई की जमीन का रकबा भी हर साल कम होता जा रहा है, जिससे पशु का प्राकृतिक आहार भी प्रभावित हो रहा है। इधर घास की बीड़ के साथ चारा उत्पादन भी सिमटता जा रहा है, जिससे गौवंश में भी कमी नजर आने लगी है। पत्रिका ने कई विभागों की जानकारी पर जब इसकी हकीकत पता की तो पिछले १० वर्षों में चरनई की जमीन १३ हजार हेक्टेयर कम हो गई। वहीं दस वर्षों में घास की बीड़ २२६८९ हेक्टेयर से घटकर महज ९३८ हेक्टेयर रह गई है। इन्हीं घास उत्पादन की भूमि भी २८५५० हेक्टेयर से कम होकर ३१०४ हेक्टेयर रह गई, जिससे आने वाले समय में पशुपालन की विकट परिस्थितियां सामने आने लगी हैं। पशुपालन विभाग के अनुसार पिछली पशु गणना २०१२ में हुई थी तब गौवंश की संख्या २७२१२१ थी। इस बार की गणना २०१९ में हुई, जिसमें इसकी संख्या घटकर २६५५२१ रह गई। हालांकि इन्ही वर्षों में भैंस वंशीय संख्या ३०९३३१ से बढ़कर ३५२००४ हो गई, जिनके खान-पान के लिए पशुपालक खेतों में फसल के रकबे को कम कर वहां चरी, बरसीन आदि का उत्पादन कर रहे हैं।
इसलिए कम होती गई जमीन
चरनई हो या घास की फसलें उत्पादन वाली जमीन या फिर घास की बीड़..। इनका रकबा कम होता जा रहा है। जमीन कम होने के पीछे घास की बीड़ या घास उत्पादन वाली खाली पड़ी सरकारी जमीनों पर दबंगों, शासकीय भवनों का निर्माण या फिर इस पर अवैध रूप से कटी कॉलोनियां हैं, जो घास के उत्पादन को प्रभावित कर रही है।
भू-अभिलेख के अनुसार
वर्ष चरनई चारे की फसलें बीड़ घास
२०११-१२ ३३५२४ २८५५० २२६८९
२०१२-१३ ३३६६३ २७७३८ २२४४८
२०१३-१४ ३२२८५ २२९७४ १७३९४
२०१४-१५ ३१९६७ १९३६२ १३७३४
२०१५-१६ ३०४७३ २००२० १३७६३
२०१६-१७ २९८४० १८४८८ ७८२०
२०१७-१८ २६६९२ १५७८२ ७८१०
२०१८-१९ २१२१२ २९३९ १८८३
२०१९-२० २११०९ ३७८८ १५१८
२०२०-२१ २०५६४ ३१०४ ९३८
(भूमि के आंकड़े हेक्टेयर में)
पशु पालन विभाग से पशुगणना
पशु प्रजाती गणना वर्ष २०१२ गणना वर्ष २०१९
गौवंशीय २७२१२१ २६५५२१
भैंस वंशीय ३०९३३१ ३५२००४

कृषि उपसंचालक कार्यालय
* जिले में खेती का रकबा -५३३४७० हेक्टेयर
* वन भूमि -३१४९ हेक्टेयर
* राजस्व भूमि -७३२५५ हेक्टेयर
योग -६०९८७४ हेक्टेयर
खोती को छोड़कर जमीन
* उसर गैर मुमकिन -५७०० हेक्टेयर
* कृषि को छोड़कर अन्य कार्य की जमीन -५९४५८ हेक्टेयर
* चारागाह -२०५६४ हेक्टेयर

पड़त भूमि
* चालु पड़त -१३३५ हेक्टेयर
* पुरानी पड़त -१४२५ हेक्टेयर

खेती का रकबा ज्यादा कम नहीं हो रहा है, लेकिन उस रकबे में कितनी भूमि पर फसल उत्पादन हो रहा है इसका ग्राफ बदलता रहता है। हमारे पास घास उत्पादन वाली भूमि का रिकॉर्ड नहीं रहता है, लेकिन भूअभिलेख व राजस्व के साथ वन विभाग की जानकारी पर हम रिपोर्ट तैयार करते हैं। इसमें चारागाह की जमीन हम उसे मानते हैं, जिस खेती के रकबे पर फसल उत्पादन नहीं होता है। हमारे पास जो भी जानकारी थी, उपलब्ध कराई है। चारे का उत्पादन जरूर कम हुआ होगा, क्योंकि बीड़ और चारागाह की जमीन कम होती जा रही है।
आरपीएस नाईक, कृषि उपसंचालक
चारे के उत्पादन में कमी आने से पशुपालन पर कोई असर नहीं पड़ा है। अब चारागाह(चरनोई) या बीड़ कम होने से पशुपालक अपने खेतों में चरी, बरसीम आदि उगा लेते हैं। गौवंश में जरूर थोड़ी कमी आई, लेकिन भैंस वंशीय पशुओं की संख्या बढ़ी है।
एनके बामनिया
संयुक्त संचालक, पशुपालन विभाग
हमारो पटवारी गिरदावरी करते हैं, जिससे पता चलता है कितने रकबे पर खेती हुई और कितना रकबा खाली रहा। इसी आधार पर हम सालाना रिपोर्ट तैयार करते हैं।
प्रीति चौहान, प्रभारी अधिकारी
भू-अभिलेख कार्यालय

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