तट पर दिखने लगी अभी से तैयारियां
पर्व को लेकर चंबल के तटों पर तैयारियां दिखने लगी है। उपासक परिवार के लोग घाटों पर पहुंचकर पूजन स्थल की सफाई और लिपाई पुताई के साथ मिट्टी के मंदिर बनाने के काम शुरू कर दिए हैं। छट पर्व की पूजा के लिए बाजार से पूजन सामग्री की खरीदी शुरू हो गई है। स्थानीय प्रशासन ने भी सफाई शुरू करवा दी है।
कुलदीपक की सलामती व परिवार की समृद्धि के लिए होती है पूजा
मान्यता है कि दीपावली के बाद आने वाले छट पर्व पर सूर्य देवता की पूजा करने से घर के चीराग पर आने वाली विपत्तियों से छुटकारा मिलता है और वह दिर्घायु होता है। इसके अलावा परिवार में भी सुख-समृद्धि का वास होता है। उपासक इस पर्व के दौरान 72 घंटे की पूजा व 36 घंटे का उपवास रखते है। कई उपासक तो पर्व के दौरान शाम को नदी पहुंच कर पानी में खड़े रहकर शाम को डूबते सूरज को अर्ध देने के बाद यही पर रतजगा भी करेगे और सूबह उगते सूरज की पूजा के बाद व्रत तोड़ेगे।
मेले जैसा होगा माहौल
औद्योगिक शहर होने के कारण शहर में बड़ी संख्या में उत्तरभारतीय परिवार निवास करते है। यही कारण छटपर्व की रौनक भी शहर में दीपावली और अन्य पर्वो की तरह रहती है। हजारों की संख्या में शहरवासी छट पर्व की पूजा के लिए चंबल के विभिन्न घाटों पर पहुंचते है। और दो दिनों तक यहां मैले जैसा माहौल निर्मित रहता है।
यह है मान्यता
छठ व्रत को लेकर अनेक पौराणीक व ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित है। इन्ही में से एक कथा महाभारतकाल की भी है कहा जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए मे हार गए तब द्रोपदी ने छठ मैया का व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और हारा हुआ पुरा साम्राज्य पांडवों को वापस मिल गया था। इसी प्रकार सूर्य पुत्र कर्ण ने भी अपनी खोई प्रतिष्ठा इसी व्रत के आधार पर प्राप्त की थी। ज्योतिषियों के मुताबिक भी सूर्य के स्वभाव का असर व्यक्ति पर पड़ता है और इसी कारण छठ पर्व पर सूर्य की पूजा का महत्व है।