छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्य देव की बहन हैं और सूर्योपासना करने से छठ माता प्रसन्न होकर घर परिवार में सुख-शांति व धन-धान्य प्रदान करती हैं। सूर्य की आराधना का यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है, चैत्र शुक्ल की षष्ठी व कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को। चैत्र शुक्ल की षष्ठी को काफी कम लोग यह पर्व मनाते हैं, लेकिन कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पर्व मुख्य माना जाता है।
चार दिनों तक चलने वाले कार्तिक छठ पूजा का विशेष महत्व है। कार्तिक अमावस्या के बाद छठ पर्व मनाया जाता है। मुख्यत: यह भाईदूज के तीसरे दिन से शुरू होता है। शुक्ल की षष्ठी को यह पर्व मनाए जाने के कारण इसका नाम छठ पूजा पड़ा। इस दौरान व्रत रखने वाले लोग 36 घंटों तक उपवास रखते हैं। छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिए की जाती है। भगवान भास्कर की कृपा से सेहत अच्छी रहती है और घर में धन धान्य की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए भी छठ पूजन का विशेष महत्व है।
चार दिनों तक चलती है छठ पूजा
छठ पूजा चार दिनों तक चलती है और इसे विधि-विधान वाला पर्व माना जाता है। रविवार का छठ पूजा व्रत की शुरुआत नहाय-खाय नामक रस्म से हुई। व्रत के पहले दिन घर की साफ.-सफाई कर पवित्र किया गया। इस दिन व्रत रखने वालों ने कद्दू की सब्जी, दाल-चावल ही ग्रहण किया।
खरना में बांटते हैं प्रसाद
छठ पूजा व्रत का दूसरा दिन कार्तिक मास की शुक्ल पंचमी सोमवार को पूरे दिन उपवास रखा जाएगा। शाम को खाना ग्रहण किया जाएगा। इसे खरना रस्म कहते हैं। इसके तहत अपने पड़ोसियों एवं जान-पहचान के लोगों को प्रसाद ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। प्रसाद में गन्नों के रस एवं दूध के साथ बनी चावल की खीर, चावल का पीठा और घी लगाई हुइ रोटियां शामिल होती हैं। भोजन में नमक एवं चीनी का उपयोग बिल्कुल भी नहीं किया जाएगा।
सूर्य को अघ्र्य
छठ पूजा व्रत का तीसरे दिन कार्तिक मास की षष्ठी मंगलवार 13 नवंबर की शाम के समय व्रतधारी किसी नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य देव को दूध और जल से अघ्र्य प्रदान किया जाएगा। एक बांस की टोकरी में मैदे से बना ठेकुआ, चावल के लड्डू, गन्ना, मूली व अन्य सब्जियों और फलों को रख प्रसाद को अघ्र्य के बाद सूर्य देव और छठी माईं को अर्पण किया जाएगा। इसी प्रकार चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी बुधवार 14 नवंबर को सुबह उदीयमान सूर्य को अघ्र्य उसी स्थान पर दिया जाएगा, जहां शाम को अघ्र्य दिया था। शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।