मैं आपसे वह संवाद करना चाहता हूं
कोठारी ने विद्यार्थियों से कहा- मैं आपसे वह संवाद करना चाहता हूं जो किताबों में नहीं हैं। आज की शिक्षा व्यवस्था सिर्फ नंबर गेम और कॅरियर बनाने तक सीमित है। आपके जीवन का पहला सपना आपकी आत्मा से जुड़ा होना चाहिए। हमारी दिक्कत है हम शब्द पकड़ते हंैं उनके अर्थों पर ध्यान नहीं देते हैं। पेड़ के नीचे दबे बीज की तरह क्यों हम दूसरों के लिए नहीं जी सकते हैं। जिस तरह पेड़ का कोई भी हिस्सा खुद के लिए नहीं जीता वैसा इंसान क्यों नहीं कर सकता। जीवन में यदि कुछ सार्थक करना है तो पेड़ बनने का सपना देखो।
हर व्यक्ति का भगवान से अलग रिश्ता
कोठारी ने कृष्ण और गीता दर्शन के आधार पर शब्द ब्रह्म का महत्व विद्यार्थियों को बताया। उन्होंने कहा हर व्यक्ति का भगवान से अलग रिश्ता होता है। कोई भगवान को पिता मानता है, कोई मां, कोई भाई और कोई दोस्त। कोई भी दो लोगों का धर्म एक नहीं हो सकता। उन्होंने कहा हिंदू, मुस्लिम तो संप्रदाए हैं।
क्या संतान का निर्माण मां के पेट में होता है?
कोठारी ने संस्कारों का महत्व बताते हुए कहा कौन कहता है कि संतान का निर्माण मां के पेट में होता है, मेरा सोचना है निर्माण तो पैदा होने के बाद होता है जब मां बच्चे को संस्कार देती है। उन्होंने कहां मां से बड़ा कोई गुरु नहीं होता है। मां, पिता और गुरू ही असली देवता है। उन्होंने कहा हर व्यक्ति को ईश्वर ने कोई न कोई शक्ति दी है जिसे पहचानने की जरूरत है। सभी के मन में एक सोच होना चाहिए कि दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं है जो मैं नहीं कर सकता।
शब्द ब्रह्म है…
कोठारी ने कहा शब्द ब्रह्म है, ध्वनि कभी नष्ट नहीं होती। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा आप दो पानी की बोतल अलग-अलग कमरों में रखिए। बिना छुए एक ेंके समक्ष जाकर अराधना कीजिए जबकि दूसरी के समक्ष अपशब्द कहिए। कुछ दिन बाद देखेंगे जहां अराधना की गई वहां महक आ रही होगी जबकि दूसरी के पास से बदबू, यही ताकत शब्दों की है।
जो काम करो मन लगाकर करो
कोठारी ने कहा यदि सफलता हासिल करना है तो जो भी काम करो पूरा मन लगाकर करो। उन्होंने कहा आजकल तो लोग खाना भी मन लगाकर नहीं खाते। भोजन करते समय हाथ में मोबाइल होता है, ऐसा करना खाना बनाने वाले और खाना दोनों का अपमान है। जिंदगी में सबसे बड़ी ताकत मन की है। उन्होंने कहा जिंदगी अगर जीना है तो सोचना होगा मैं ही ईश्वर हूं।
इससे पहले गुलाब कोठारी ने वाघ देवी के चित्र पर माल्यार्पण किया। छात्राओं ने विश्वविद्यालय का कुल गान गाया। अध्यक्षता कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने की। कुलसचिव प्रो. डीके बग्गा भी विशेष रूप से मौजूद थे। अतिथियों का स्वागत डीेएसडबल्यू आरके अहिरवार, डीएम कुमावत, पूर्व कुलपति पीके वर्मा, पत्रिका के राज्य संपादक विजय चौधरी, इंदौर संपादक राजेश त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम में विधायक महेश परमार, ज्योतिर्विद आनंद शंकर व्यास, प्रशासक जिला सहकारी बैंक अजीतसिंह, डॉ. प्रशांत पुराणिक, डॉ. कानिया मेड़ा, डॉ. डीडी बेदिया, डॉ. धर्मेंद्र मेहता, डॉ. एचपी सिंह, डॉ. गीता नायक, डॉ. देवेंद्र जोशी, प्रवीण गार्गव, राजीव पाहवा, अर्जुन सिंह चंदेल, विशाल हाडा मौजूद थे। संवाद से पूर्व कलेक्टर शशांक मिश्रा, एसपी सचिन अतुलकर सहित प्रबुद्धजनों ने कोठारी से मुलाकात कर चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र शर्मा ने किया। संवाद के दौरान विभिन्न अध्ययन शालाओं के शोधार्थी एवं विभागाध्यक्ष तथा शिक्षण स्टॉफ भी मौजूद था।
आत्मचिंतन आधारित संवाद में किया जिज्ञासा का समाधान
आत्मचिंतन पर आधारित संवाद में सहभागिता करने वाले विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान, सुधि श्रोताओं ने पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी से विषय आधारित प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा का समाधान किया। किसी ने मन और बुद्धि के द्वंद को लेकर प्रश्न पूछा तो किसी ने मीडिया की वर्तमान दशा को लेकर सवाल किया। कोई कर्म बंधन से मोक्ष मार्ग का प्रश्न लेकर खड़ा हुआ तो कोई गीता दर्शन में श्रीकृष्ण की भूमिका की जिज्ञासा लेकर हाजिर हुआ। कोठारी ने संदर्भों और उदाहरणों के साथ सभी के प्रश्नों का उत्तर देकर उनकी जिज्ञासा का समाधान किया।
सवाल -शहर के निबंधकार प्रवीण गार्गव ने पूछा कि मन और बुद्धि में सामंजस्य कैसे हो। मन लगाकर काम करना क्या आवश्यक है। किस तरह ध्यान केंद्रित किया जाए। यह कैसे तय होगा कि हम जो कर रहे हैं वह ध्यान से हो रहा है।
जवाब– कोठारी ने कहा कि मन और काम एक ही होना चाहिए। यह तभी संभव है जब खुद से तादात्मय स्थापित हो, जो खुद तक पहुंच जाता है उसका मन और काम एक हो जाता है।
रिटायर्ड इंजीनियर अशोक जोशी ने पूछा कि आपने जो राधा-कृष्ण का माॢमक प्रसंग सुनाया तो क्या आपका भी ऐसा कुछ निजी अनुभव रहा।
जवाब- कोठारी ने कहा कि अनुभव तो कई हुए हंै लेकिन मूल यही है कि जब तक हम खुद से खुद के बारे में बात नहीं करेंगे तब तक ऐसा अनुभव नहीं आएगा। अनुभूति बुद्धि से अलग है। हमें खुद की तस्वीर खुद में देखनी चाहिए। इसके लिए रोज खुद को दस मिनट देना होगा। इन दस मिनट में बस खुद में खुद को देखना है।
सवाल – हिंदी लेखक देवेंद्र जोशी ने पूछा कि मन, जीवन संदर्भ और आत्मा की जो बातें आपने बताई वे नि:संदेह सत्य है किंतु आज के दौर में युवा तरुणाई में तकनीक का आतंक है। इससे दिशा भ्रम हो रहा है। समाज मूल्यों के पतन की ओर जा रहा है। भौतिकता को सबसे बड़ा माना जाता है और व्यक्ति के बड़े-छोटे का आकलन भौतिकता, सुख-सुविधा से किया जाता है। यह आज के विद्यार्थियों के लिए भी चुनौती है,इस पर मार्गदर्शन चाहता हूं।
जवाब-कोठारी ने कहा कि इन सभी सवालों के जवाब तभी मिल सकेंगे जब हम खुद को दस मिनट देंगे। इसका अभ्यास शुरू करेंगे। हम सभी ईश्वर के अंश हैं। अहं ब्रह्मास्मि का भाव जागृत करना होगा। हमें समझना होगा कि हम सभी में एक ही शक्ति है। इसके लिए संकल्प की जरुरत है। तकनीक की जहां तक बात है तो तकनीक हमारे हाथ में होनी चाहिए न कि हम तकनीक के हाथ में हो। हमारी खुद की स्वतंत्रता नहीं छीनी जानी चाहिए। इसका आकलन करना होगा कि हम कितने स्वतंत्र है। क्या तकनीक ने हमको गुलाम बना रखा है या हम मुक्त हैं। तकनीक सहायक तो हो सकती है लेकिन उसे मालिक नहीं होना चाहिए। विडंबना यही है कि हम तकनीक के गुलाम बनते जा रहे हैं। हमारा लक्ष्य हमें ही तय करना होगा। इसके लिए संकल्प लेना होगा। खुद में छिपी शक्ति का रोज दस मिनट ध्यान करना होगा।
सवाल – बीएड कर रहे अशोक कुमार वर्मा ने पूछा कि मैं जानना चाहता हूं कि मोक्ष प्राप्ति का सरलतम मार्ग क्या है।
कोठारी ने कहा कि जब कोई बंधन न हो तो मोक्ष है। स्वयं को मुक्त करना ही मोक्ष है। हमें यह जानना होगा कि चेतना मेरे भीतर है और बाहर जो कुछ भी है वह नश्वर है। हमारी आज की शिक्षा हमें अहंकार दे रही है। हम ज्ञान के अहंकार में जी रहे हैं। भीतर का इंसान खो गया है। ऐसे मे सुख कैसे मिल सकता है। जब आप किसी से बात करो तो उसके सामने उसकी बात करो, खुद की बात मत करो। इससे अहंकार खत्म होगा, अहंकार जीवन का रोग है।
सवाल – शोधार्थी राम ने पूछा कि साहित्यिक लेखन और पत्रकारीय लेखन में क्या अंतर है।
जवाब-कोठारी ने कहा कि मूल रूप से दोनों ही लेखन है लेकिन दोनों में दिशा का अंतर है। पाठक का अंतर है। साहित्य में दिशा तय है। विषय निर्धारित है। उसी के अनुरूप लेखक लिखता है। उसमें मन के भावों को डालता है ताकि पाठक तक मनोभाव पहुंचे और उसमें डूब जाए जबकि पत्रकारिता में ऐसा नहीं होता। पाठक की जरुरत के अनुसार लिखना होता है। इसमें लिखने वाला खुद शामिल नहीं होता। जो है उसे वैसा ही प्रस्तुत करना होता है। साहित्य में मन की गहराई होती है जबकि पत्रकारिता में तथ्यों की।
सवाल – हिन्दी की शोधार्थी नीतू चतुर्वेदी ने कहा कि व्यावहारिक जीवन में हम मन से काम लें या बुद्धि से।
जवाब-कोठारी ने कहा कि सबसे पहले तो यह पता लगाना होगा कि आप जो जी रहे हैं वह किस आधार पर जी रहे हैं। आपके सपने मन में है या बुद्धि में। दरअसल मन अकेला कुछ तय नहीं करता है, बुद्धि भी साथ होती है। दोनों एक साथ हैं। मन ईश्वर के निकट है। उसमें वात्सल्य है। भाव हैं। अपनत्व है, शीतलता है। मन सबको जोड़ता है जबकि बुद्धि इसके उलट है। बुद्धि से अहंकार उपजता है। ऊष्णता है। बुद्धि इंसान को अकेला करती है। मन का जो सूक्ष्मतम धरातल है उसे ही ईश्वर कहते हैं।
सवाल – पीजीबीटी कॉलेज केे छात्राध्यापक राजेश रघुवंशी ने पूछा कि आज के युग में संस्कार और मूल्य आधारित शिक्षा खो रही है। ऐसा क्यों है।
जवाब-कोठारी ने कहा कि यह आपके संकल्प पर निर्भर करेगा। आपको तय करना होगा कि आप क्या हो। क्या आपकी शिक्षा आपसे आपको दूर ले जा रही है। इसे पता लगाने पर इसका प्रश्न का जवाब मिल जाएगा।
सवाल– पीजीबीटी के विशाल याग्निक ने पूछा कि व्यक्ति विशेष का एक धर्म है। आपने कहा कि बीज से पेड़ और पेड़ से फल बनना है तो यह कैसे पता चलेगा कि कोई बीज पेड़ बना और फल में रूपातंरित हुआ।
जवाब-कोठारी ने कहा कि सिर्फ मनुष्यों में नहीं बल्कि में भी चार वर्ण है। वर्ण का धर्म और कर्तव्य से जुड़ाव है। वह सबमें है। हमें कर्म के लिए कौन सी भूमि मिली है इस पर बीज का पेड़ और फल बनना निर्भर करता है।
सवाल – मॉस कम्यूनिकेशन की छात्रा श्रद्धा पंचोली ने पूछा कि खोजी पत्रकारिता के बारे में जानना चाहती हूं। यह पूछना है कि आजकल मीडिया को बिकाऊ क्यों कहा जाता है।
जवाब-कोठारी ने कहा कि इसका जवाब तो इंसान को खुद ही देना होगा। हम जिस समाज में जी रहे हैं वहां किसे तरजीह दी जा रही है। शरीर के सुख के लिए जी रहे हैं तो फिर किसी से कोई लेनादेना नहीं जबकि शरीर का कोई मोल नहीं है। शरीर से तो पशु जीता है। यदि कोई इंसान बनकर जिए तो उसे कोई खरीद नहीं सकता, वह कभी बिक नहीं सकता फिर चाहे कोई भी पेशा हो। आज के दौर में तो धर्म बिक रहा है, भगवान बिक रहा है। कितने साधु-संत जेल में है। एक वजह यह भी है कि माता-पिता ने संतान के संस्कारों से मुंह मोड़ लिया। सब अपनी दुनिया में जी रहे। प्रकृति को चुनौती दे रहे हैं। बिना अस्त्र-शस्त्र के युद्ध में जा रहे हैं। जब संस्कार ही नहीं होंगे तो क्या बचेगा। खुद की नकल कभी मत करो। जो हो उसी को निखारो। खुद का श्रेष्ठतम स्वरूप तैयार करो।
सवाल – डॉ. अर्चना मेहता ने पूछा कि पत्रकारिता में महिलाएं आगे क्यों नहीं आ पाती। उनका शोषण क्यों होता है।
जवाब– कोठारी ने कहा कि मेरा अब तक का अनुभव है कि मेरे संस्थान में ऐसा कभी नहीं हुआ। आप मेरे संस्थान की किसी भी महिला का साक्षात्कार कर सकते हो। दरअसल महिलाओं की अपनी सीमाएं हंै। सामाजिक-पारिवारक जिम्मेदारियां हैं जिस कारण वे हर तरह के माहौल में नहीं ढल पाती है। महिलाओं को सम्मान और सुरक्षा का वातावरण चाहिए। हमारे संस्थान में तो महिलाएं उच्च पदों पर भी हैं।
सवाल – एमएमसी के विद्यार्थी अर्जुनसिंह चंदेल ने पूछा कि क्या देश सही दिशा में जा रहा है।
जवाब: कोठारी ने कहा कि शिक्षा के कारण यह हो रहा है। शिक्षा इंसान को खुद से दूर कर रही है । इस वजह से यह हो रहा है। आत्मचिंतन से इसका विकास होगा। मन के साथ जीना शुरू करना होगा।
आखिर में शहर के सुविख्यात ज्योतिषाचार्य पं. आनंदशंकर व्यास ने सूर्य को पिता बताने के संबंध में कही गई कोठारी की बात का ज्योतिषीय विश्लेषण किया और कहा कि सूर्य ही शक्ति का केंद्र है। सूर्य के साथ श्वासों के संबंध को बताया।
गीता में भी है संवाद की महत्ता
विक्रम विद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने डॉ. कोठारी के दिशा बोध संवाद कार्यक्रम को लेकर कहा कि उज्जैयिनी का अपना महत्व रहा है। यह श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली रही है। गीता के अंतिम अध्याय में भी संवाद शब्द बार-बार आया है। संवाद की महत्ता गीता में भी है। यह महत्वपूर्ण शब्द है। संवाद का वैशिष्ट्य यही रहता है कि इसमें वक्ता अपने अनुभव साझा करता है और श्रोता सहभागी बनते हैं। बीज की यात्रा को लेकर कोठारी ने जो कहा वह यही है कि बीज की अंतिम यात्रा बीज बनने की ही है। बीज से पेड़, पेड़ से फल और फल से फिर बीज बनता है। ठीक इसी तरह व्यक्ति में भी असंख्य संभावना है। कोठारी द्वारा मन, बुद्धि, शरीर और कर्म के साथ वर्णित किए गए आत्मतत्व, अहं ब्रह्मास्मि के भावों को आदि शंकराचार्यकृत शिव स्तुति से समझाया।
आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राणा: शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थिति:॥
संचार: पदयो: प्रदक्षिणविधि: स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम…
उक्त श्लोक के बारे में बताते हुए प्रो. शर्मा ने कहा कि शंकाराचार्य कहते हैं कि शिव आत्म तत्व है। पार्वती बुद्धि है। शरीर सहचर है, निद्रा समाधि है। संचरण प्रदक्षिणा है, जो कहता हूं वह आपकी स्तुति है, जो कर्म करता हूं उनसे आपकी आराधना करता हूं।