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मौसम में बदलाव को लेकर कृषि विभाग की हिदायत, रिकॉर्ड तोड़ तापमान में खेतों को तैयार नहीं करें….

locationउज्जैनPublished: May 24, 2018 07:03:47 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

वर्तमान में तापमान 44 डिग्री के नीचे नहीं जा रहा, ऐसे में यदि किसान जुताई करेंगे तो खेतों की उर्वरता क्षमता कम जाएगी।

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नागदा. पिछले १६ वर्षों का रिकार्ड तोड़ चुके तापमान को लेकर कृषि विभाग चिंतित हो गया है। कारण आगामी दिनों में मानसून आने के पूर्व ही नागदा-खाचरौद विकासखंड के धरती पूत्रों द्वारा खेतों को तैयार किया जाना है। परेशानी यह है, कि वर्तमान में तापमान ४४ डिग्री सेल्सियस के नीचे नहीं जा रहा है, ऐसे में यदि किसान खेतों की जुताई करेंगे तो खेतों की उर्वरकता क्षमता कम जाएगी। इतना ही नहीं खेतों में मौजूद प्राकृतिक तत्व भी गर्मी से नष्ट होंगे। मौसम में हुए बदलाव को लेकर कृषि विभाग आगामी फसलों की बुवाई में जैविक खेती किए जाने की हिदायत दे रहा है। कारण एकाएक बढ़े तापमान द्वारा मानसून सिस्टम को कमजोर किया जाना है। ऐसे में प्री-मानसून की बारिश भी खेतों के लिए नुकसान दायक साबित होगी।
हालांकि कृषि विभाग कृषकों को खेतों को तैयार करने की चिंता के बजाए तापमान के समान्य होने तक इंतजार करने की सलाह दे
रहा है।
क्या है मौसम सामान्य होना
गेहूं की कटाई कर चुके किसान अगली फसल सोयाबीन की बुवाई के लिए खेतों को तैयार कर रहे हैं। किसानों की मंशा है, कि प्री-मानसून की बारिश के बाद ही फसलों की बुवाई शुरूकर दी जाए। लेकिन किसानों को नुकसानी से बचाने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा मौसम के सामान्य होने तक खेतों को तैयार नहीं करने की सलाह दी जा रही है। इतना ही कृषि विभाग के अफसरों का तर्क है, कि अनियमित हुए तापामन के दौरान किसान जैविक खादों को तैयार कर सकते हैं। वहीं मानसून सिस्टम की आहट के बाद खेतों को तैयार करना बेहतर होगा।
क्या है जैविक खेती
जैविक खेती प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग कर किए जाने वाली खेती है। जिसके अंतर्गत किसान नाडेप, बायोगैस स्लरी, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद, जैव उर्वरक (कल्चर), गोबर की खाद, नाडेप फास्फो कम्पोस्ट, पिट कम्पोस्ट (इंदौर विधि), मुर्गी का खाद आदि का प्रयोग फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए कर सकते है। खादों को तैयार करने की विधि जानने के लिए संबंधित कृषि विभाग में संपर्क कर सकते है। जैविक खेती की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन देती है, जैविक खेती मृदा की उर्वरता एवं कृषकों की उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णत: सहायक है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक खेती की विधि और भी अधिक लाभदायक है।
&वर्तमान में तापमान ४४ डिग्री सेल्सियस के नीचे नहीं जा रहा है, ऐसे में यदि किसान खेतों की जुताई करेंगे तो खेतों की उर्वरकता क्षमता कम होगी। इतना ही नहीं खेतों में मौजूद प्राकृतिक तत्व भी गर्मी से नष्ट हो सकते हैं। मौसम में हुए बदलाव को देखते हुए किसानों को जैविक खेती की और कदम बढ़ाना चाहिए।
डॉ. आके दीक्षित, कृषि वैज्ञानिक

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