प्रेरणा – वक्त के उस दौर में पिता के समर्पण ने बेटे को इस शिखर तक पहुंचा दिया। बेटे ने भी पिता को गरीबी के दौर में संबल दिया। इसी स्नेह व प्रेम से आज परिवार में वह सब कुछ है जो हर किसी चाह होती है।
दूसरी कहानी… संस्कृत और शास्त्रों की रक्षा के लिए समर्पित
अध्ययन और अध्यापन के माध्यम से संस्कृत और शास्त्रों की रक्षा करने में संलग्न एक नाम पद्मश्री डॉ. केशवराव सदाशिव शास्त्री मुसलगांवकर एेसा हैं, जिन्होंने नाममात्र का वेतन मिलने के बाद भी संस्कृत, शास्त्र और संस्कृति के संरक्षण को ध्यान में रखकर अपने बच्चों को संस्कृत, ज्योतिष के क्षेत्र में ही आगे बढ़ाया।
स्कूली शिक्षा विभाग में संस्कृत शिक्षक मुसलगांवकर को संस्कृत, शास्त्र की दीक्षा- शिक्षा विरासत में मिली। इन्होंने अपने बच्चों को संस्कृत और शास्त्रों की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया। ४ पुत्र और ३ पुत्रियों के पिता मुसलगांवकर को प्रारंभ के दिनों में मात्र ५० रु. वेतन प्राप्त होता था। नौकरी में अक्सर तबादले का सामना करना पड़ा। कई जिलों में सेवाएं दीं। कम वेतन और अकेले अनेक मोर्चे पर संघर्ष करते हुए मुसलगांवकर ने अपने बच्चों को संस्कृत-शास्त्र का ज्ञान प्रदान कराने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। सभी जगह बच्चों की शिक्षा की बेहत्तर व्यवस्था मिलेगी या नहीं यह सोचने के साथ बच्चों को संस्कृत दिलाने का उद्देश्य था। बच्चों का पढ़ाई प्रभावित नहीं हो, इसके लिए सभी को एक स्थान पर रखा और स्वयं नौकरी के चक्कर में अलग- अलग जिलों में रहे। दूर रहकर भी लगातार प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान कर दो लड़कों को संस्कृत में एमए, पीएचडी कराने के साथ दो लड़कों को ज्योतिष के क्षेत्र में आगे बढऩे की प्ररेणा दी। दो पुत्रियों को साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ाते हुए हिन्दी और अंग्रेजी में एमए कराया। पद्मश्री डॉ. केशवराव सदाशिव शास्त्री मुसलगांवकर के एक पुत्र राजराजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर, विक्रम विश्वविद्यालय संस्कृत, वेद, ज्योतिर्विज्ञान अध्ययनशाला में विभागाध्यक्ष हैं।
प्रेरणा: संस्कृत भाषा में संस्कार मिलते हैं। यही एक मात्र ऐसी भाषा है, जिससे एकात्मकता का भाव होता है। संस्कृत भाषा को और अधिक बढ़ावा देने के लिए देश के प्रत्येक घरों में संस्कृत का ज्ञान पहुंचाने में सबकी महति भूमिका होना चाहिए।
तीसरी कहानी…कपड़ों पर एम्ब्रायडरी कर बनाया बच्चों का भविष्य
मध्यम वर्ग के परिवार में होने के कारण केवल बी.कॉम तक पढ़ाई हो सकी। खेल में रुचि थी, मगर आर्थिक स्थिति इसमें आड़े आ गई। इसके बाद तय किया कि वे जो नहीं पा सके, वह अपने बच्चों को देंगे। नौकरी थी नहीं, सो मशीन की व्यवस्था करने के बाद एम्ब्रायडरी का कार्य प्रारंभ किया।
यह कहना है मलखंभ और योग विधा में विक्रम अवॉर्ड विजेता 21 वर्षीय चंद्रशेखर चौहान और चार राष्ट्रीय पदक विजेता 23 वर्ष की श्वेता चौहान के पिता ओमप्रकाश चौहान का, जिन्होंने अपनी आवश्यकता में कटौती कर घर चलाने के साथ दोनों बच्चों का बेहतर शिक्षा और किसी भी खेल में प्रदेश/राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए दिन-रात एक कर एम्ब्रायडरी की। कपड़ों पर एम्ब्रायडरी कर बच्चों का भविष्य डिजाइन कर दिया। चंद्रशेखर को चार वर्ष और श्वेता को 6 वर्ष की उम्र में मलखंभ कोच योगेश मालवीय को सौंप दिया। जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ी, आवश्यकता भी अधिक हुई। इसके बाद भी पिता ने घर के संचालन के साथ बच्चों के पठन-पाठन और खेल की जरूरतों में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आने दी। एक-दो अवसर तो एेसे भी आए जब चंद्रशेखर को अन्य प्रांत या जिले में खेलने के लिए खर्च का इंतजाम एम्ब्रायडरी कार्य के ऐवज में एडवांस राशि या इधर-उधर से व्यवस्था करना पड़ी। इसमें कोच योगेश मालवीय ने भी सहयोग किया। चंद्रशेखर वाणिज्यिक कर विभाग में कार्यरत हैं, तो श्वेता बीबीएड कर रही है। बच्चों के पैरों पर खडे़ होने के बाद ओमप्रकाश चौहान ने एम्ब्रायडरी का कार्य बंद कर अब निजी संस्थाओं में अकाउंट देखने का कार्य प्रारंभ किया है।
प्रेरणा: लक्ष्य यदि तय कर लिया जाए, तो हर बाधा को पार कर प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त की जा सकती है।