scriptमहाभारत काल से जुड़ी है इस मंदिर की कहानी, जानिए क्या है यहाँ की विशेषता | gadkalika temple ujjain, Devotees come here in Navratri | Patrika News

महाभारत काल से जुड़ी है इस मंदिर की कहानी, जानिए क्या है यहाँ की विशेषता

locationउज्जैनPublished: Sep 30, 2019 12:21:22 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

Ujjain News: तंत्र-मंत्र की देवी के नाम से प्रसिद्ध मां गढ़कालिका देवी का प्राचीन मंदिर उज्जैन के कालीघाट स्थित है। कालिका माता के प्राचीन मंदिर को गढ़ कालिका के नाम से भी जाना जाता है।

gadkalika temple ujjain, Devotees come here in Navratri

Ujjain News: तंत्र-मंत्र की देवी के नाम से प्रसिद्ध मां गढ़कालिका देवी का प्राचीन मंदिर उज्जैन के कालीघाट स्थित है। कालिका माता के प्राचीन मंदिर को गढ़ कालिका के नाम से भी जाना जाता है।

उज्जैन। तंत्र-मंत्र की देवी के नाम से प्रसिद्ध मां गढ़कालिका देवी का प्राचीन मंदिर उज्जैन के कालीघाट स्थित है। कालिका माता के प्राचीन मंदिर को गढ़ कालिका के नाम से भी जाना जाता है। देवियों में तंत्र साधना के लिए कालिका को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। गढ़ कालिका के मंदिर में मां कालिका के दर्शन के लिए रोज हजारों भक्त आते हैं। नवरात्रि में गढ़कालिका देवी के दर्शन मात्र से ही अपार सफलता मिलती है।

मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता

तांत्रिकों की देवी कालिका के इस मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता, माना जाता है कि इनकी स्थापना महाभारतकाल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की है। बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है। स्टेटकाल में ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण कराया। कालिकाजी के इस स्थान पर गोपाल मंदिर से सीधे यहां जाया जा सकता है। गढ़ नामक स्थान पर होने के कारण गढ़ कालिका हो गया है। मंदिर के प्रवेश-द्वार के आगे ही सिंह वाहन की प्रतिमा बनी हुई है। आसपास दो तरफ धर्मशालाएं हैं। इसके बीच में देवीजी का मंदिर है। मंदिर के कुछ अंश का जीर्णोद्धार ई.सं. 606 के लगभग सम्राट हर्षवर्धन ने करवाया था। शक्ति-संगम-तंत्र में अवन्ति संज्ञ के देश कालिका तंत्र विष्ठति कालिका का उल्लेख मिलता है।

शक्तिपीठ में शामिल नहीं है यह मंदिर
वैसे तो गढ़कालिका का मंदिर शक्तिपीठ में शामिल नहीं है, किंतु उज्जैन क्षेत्र में मां हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व बढ़ जाता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे। लिंगपुराण में कथा है कि जिस समय रामचंद्रजी युद्ध में विजयी होकर अयोध्या जा रहे थे, वे रुद्रसागर तट के निकट ठहरे थे। इसी रात्रि को भगवती कालिका भक्ष्य की शोध में निकली और इधर आ पहुंचीं। हनुमानजी को पकडऩे का प्रयास किया, परंतु हनुमान ने महान भीषण रूप धारण कर लिया। तब देवी डरकर भागीं। उस समय अंश गालित होकर पड़ गया। जो अंश पड़ा रह गया, वही स्थान कालिका के नाम से विख्यात है।

मंदिर के निकट है गणेशजी का प्राचीन मंदिर
इसी मंदिर के निकट लगा हुआ स्थिर गणेश का प्राचीन और पौराणिक मंदिर है। इसी प्रकार गणेश मंदिर के सामने भी एक हनुमान मंदिर प्राचीन है, वहीं विष्णु की सुंदर चतुर्मुख प्रतिमा है। खेत के बीच में गौरे भैरव का स्थान भी प्राचीन है। गणेशजी के निकट ही से थोड़ी दूरी पर शिप्रा की पुनीत धारा बह रही है। इस घाट पर अनेक सती की मूर्तियां हैं। उज्जैन में जो सतियां हुई हैं, उनका स्मारक स्थापित है। नदी के उस पार ओखलेश्वर नामक प्रसिद्ध श्मशान-स्थल है।

यज्ञ-हवन का आयोजन
यहां पर नवरात्रि में लगने वाले मेले के अलावा भिन्न-भिन्न मौकों पर उत्सवों और यज्ञ-हवन के आयोजन होते रहते हैं। मां कालिका के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

कैसे पहुंचें यहां तक
वायुमार्ग : उज्जैन से इंदौर एअरपोर्ट लगभग 65 किलोमीटर दूर है।
रेलमार्ग : उज्जैन से मक्सी-भोपाल मार्ग (दिल्ली-नागपुर लाइन), उज्जैन-नागदा-रतलाम मार्ग (मुंबई-दिल्ली लाइन) द्वारा आप आसानी से उज्जैन पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग : उज्जैन-आगरा-कोटा-जयपुर मार्ग, उज्जैन-बदनावर-रतलाम-चित्तौड़ मार्ग, उज्जैन-मक्सी-शाजापुर-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग, उज्जैन-देवास-भोपाल मार्ग आदि देश के किसी भी हिस्से से आप बस या टैक्सी द्वारा यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो